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03 गीता दर्शन भाग-5078
आदित्यानामहं विष्णुज्योतिषां रविरंशुमान् । | हैं, सपने में फिर उन पुरानी अवस्थाओं में पहुंच जाते हैं, जहां हम मरीचिर्मरुतामस्मि नक्षत्राणामहं शशी ।।२१।। | चित्रों से सोच सकते हैं।
वेदानां सामवेदोऽस्मि देवानामस्मि वासवः।। दुनिया की जो प्राचीनतम भाषाएं हैं, वे चित्रों वाली हैं। जैसे इन्द्रियाणां मनश्चास्मि भूतानामस्मि चेतना ।। २२ ।। चीनी है, वह चित्र की भाषा है। अभी भी उसके पास वर्णाक्षर नहीं
और हे अर्जुन, मैं अदिति के बारह पुत्रों में विष्णु और | हैं। बहुत कठिन है, क्योंकि हर चीज का चित्र, बहुत लंबी प्रक्रिया ज्योतियों में किरणों वाला सूर्य हूं तथा मैं वायु देवताओं में | | है। अगर चीनी भाषा को किसी को पढ़ना हो, तो कम से कम दस मरीचि नामक वायु देवता और नक्षत्रों में नक्षत्रों का अधिपति | वर्ष तो लग ही जाएंगे और तब भी प्राथमिक ज्ञान ही होगा। कम से चंद्रमा हूं।
कम एक लाख शब्द-चित्र तो याद होने ही चाहिए साधारण ज्ञान के और मैं वेदों में सामवेद हूं, देवों में इंद्र हूं और इंद्रियों में मन लिए भी। हर चीज का चित्र है। जो प्राचीनतम भाषा होगी, वह हं, भूत-प्राणियों में चेतनता अर्थात ज्ञान-शक्ति हूं। | चित्रों में होगी।
बच्चों का मन प्राचीनतम मन है। वे चित्रों से समझते हैं। तो हमें
कहना पड़ता है, ग गणेश का। ग से गणेश का कोई संबंध नहीं है, + नहीं कहा जा सकता, उसे भी प्रतीक से कहने के उपाय | क्योंकि ग गधे का भी उतना ही है। लेकिन गणेश का या गधे का किए जाते हैं। और जिसे बताया नहीं जा सकता, जो चित्र हम बनाएं, तो बच्चे को ग समझाना आसान हो जाता है।
अज्ञात है, उसकी ओर भी, जो हम जानते हैं उसके | पुरानी किताबों में गणेश का चित्र होता था, नई किताबों में गधे का माध्यम से इंगित किए जा सकते हैं। इस सूत्र को समझने के पहले | चित्र है, इसलिए मैं कह रहा हूं। क्योंकि सेक्युलर है गवर्नमेंट, इस बात को ठीक से समझ लेना जरूरी है।
धर्म-निरपेक्ष है राज्य। गणेश का चित्र नहीं बना सकते! तो पुरानी ईश्वर अज्ञात है। नहीं; उसका हमें कोई भी पता नहीं है। लेकिन | | किताबों में ग गणेश का होता था, नई किताबों में ग गधे का है। जो हमें पता है, क्या उसके आधार पर हम उस अज्ञात के संबंध में | ग को समझाना हो, तो गणेश को रखना पड़ता है। फिर जब कुछ इशारे भी कर पा सकते हैं या नहीं? एक छोटे बच्चे को भाषा बच्चा समझ लेगा, तो गणेश को छोड़ देगा, ग रह जाएगा। अगर पढ़ानी पड़ती है, तो भाषा तो उसे अज्ञात होती है। लेकिन कहीं से बाद में भी आप पढ़ते वक्त हर बार कहें कि ग गणेश का, तो फिर शुरू करना पड़ेगा। जो उसे ज्ञात होता है, उसके आधार पर ही शुरू पढ़ना मुश्किल हो जाएगा। फिर गणेश को भूल जाना पड़ेगा और करना पड़ेगा।
ग को याद रखना पड़ेगा। लेकिन ग को याद करने में पहले गणेश छोटे बच्चे के लिए हमें प्रतीक चुनने पड़ते हैं। अगर छोटे बच्चों का उपयोग लिया जा सकता है, लिया जाता है। और अब तक कोई की किताब आप देखते हैं, तो आपको साफ मालूम होगा, शब्द होते शिक्षा-पद्धति विकसित नहीं हो सकी, जिसमें हम बिना चित्रों का हैं कम, चित्र होते हैं ज्यादा। चित्र ही प्रमुख होते हैं, शब्द गौण होते उपयोग किए बच्चों को शब्दों का बोध करा दें। हैं। चित्रों के आधार पर ही शब्दों को समझाने की कोशिश होती है। कृष्ण ने मौलिक बात कह दी है कि मैं समस्त आत्माओं में आत्मा क्योंकि बच्चे का मन चित्र को तो समझ पाता है. शब्द को नहीं है। मैं समस्त आत्माओं का केंद्र हैं। मैं समस्त हृदयों का हृदय हैं। समझ पाता है। शब्द अभी अज्ञात है। लेकिन चित्र? चित्र बच्चा | | मेरा ही विस्तार है सब कुछ–आदि भी, मध्य भी, अंत भी। देख सकता है।
लेकिन वह बहुत गहरा भाव है और अर्जुन को भी पकड़ में नहीं मनुष्य का जो मन है, वह पहले चित्रों की भाषा में सोचता है, आएगा। इसलिए कृष्ण अब चित्रों का प्रयोग करते हैं, और चित्रों फिर शब्दों की भाषा विकसित होती है। और अभी भी रात जब आप के माध्यम से उस भाव की तरफ इशारा करते हैं। अर्जुन जो चित्र सपने देखते हैं, तो चित्रों की भाषा में देखते हैं, क्योंकि सपने में | समझ सकेगा, निश्चित ही उनका ही उपयोग किया गया है। आप अपनी शिक्षा-दीक्षा सब भूल जाते हैं। जो भाषा आपको | | कृष्ण ने कहा, और हे अर्जुन, मैं अदिति के पुत्रों में विष्णु हूं। सिखाई गई है प्रतीकों की, संकेतों की, गणित की, व्याकरण की, इस प्रतीक को हम समझें।। वह सब आप भूल जाते हैं। सपने में आप फिर प्रिमिटिव हो जाते । तीन नाम से हम निरंतर परिचित रहे हैं, ब्रह्मा, विष्णु, महेश।
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