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________________ ६ गीता दर्शन भाग-5 और भक्ति में अपने को भुलाना है पूरी तरह, सब बच जाए, मैं ही न बचूं। और मजा यह है कि दोनों एक ही जगह पहुंच जाते हैं—ये इतने विपरीत! चाहे मैं बचूं और सब खो जाए, तो भी एक बचता है। और चाहे सब बचे और मैं खो जाऊं, तो भी एक ही बचता है। और दो विपरीत छोरों से एक ही रह जाता है। द्वैत खो जाता है, और एक ही घटना घटती है। अर्जुन पूछता है, क्या है मेरी दशा ? क्या है मेरी पात्रता ? वह आप मुझे कहें। शायद वह पात्रता मेरी प्रकट हो, और मेरी संभावना मेरी वास्तविकता बन जाए, और मेरा बीज अंकुरित हो और खिल जाए । । तो आप जो कहते हैं, वह मैं समझ पाऊं, जान पाऊं। और शायद मैं आपसे एक हो जाऊं, तो आपकी समग्रता भी मेरे लिए प्रकट हो जाए। समग्रता तो तभी प्रकट होती है, जब कोई एक हो जाए। उसके पहले समग्रता प्रकट नहीं होती । यद्यपि जो एक हो गए हैं, वे भी समग्रता को कह नहीं सकते। इसलिए संतों ने गूंगे के गुड़ की बात कही है। संत गूंगे बिलकुल नहीं हैं। संतों से ज्यादा बात करने वाले लोग खोजने मुश्किल हैं। संतों ने बहुत बातें की हैं; गूंगे बिलकुल नहीं हैं। लेकिन जहां परमात्मा की बात आती है, कहते हैं, हम बिलकुल गूंगे हो जाते हैं। इतना बड़ा है। इतना विशाल है कि कहें तो गलती होती है। कहा नहीं कि गलती हो जाती है! बोले नहीं कि दिखाई पड़ती है, भूल हो गई ! सुना है मैंने कि एक कवि, एक रहस्यवादी कवि समुद्र के तट पर गया था। सुबह सूरज निकला। समुद्र की लहरों पर सूरज का जा छा गया। सुगंधित हवाएं थीं। फूलों की खुशबू थी। वृक्षों की छाया थी। वह आराम से बैठकर इस धूप और लहरों के खेल को देख रहा था। हवाएं उसके नासापुटों को लगीं। रोआं-रोआं उसका आनंद से भर उठा। उसे स्मरण आया अपनी प्रेयसी का। लेकिन उसकी प्रेयसी वहां मौजूद न थी। वह बीमार थी और दूर एक अस्पताल में थी । उसे लगा, काश, इस सुबह, इस सूरज को, इस आकाश को, इन हवाओं को, इन सागर की लहरों को - इस वातावरण में वह मेरी प्रेयसी क्षणभर को भी आ जाए, तो स्वस्थ हो जाए ! लेकिन लाना मुश्किल है। उसका खाट से भी उठना मुश्किल है। फिर सोचा उसने कि दूसरा उपाय यह हो सकता है कि मैं थोड़ा-सा यह वातावरण एक पेटी में बंद करूं और अस्पताल ले चलूं। वह एक मजबूत पेटी लाया। रोआं- रंध्र भी कहीं खुला न रह जाए पेटी का, सब तरफ मोम लगाकर बंद कर दिया; मजबूत ताले डाले। हवाएं, सूरज की रोशनी, सुगंध, सब पेटी में बंद कर दी। आकाश का छोटा-सा टुकड़ा भी बंद हो गया। ताला डालकर सब तरफ से बंद करके रंध्र, एक बहुमूल्य पत्र के साथ उसने संदेशवाहक को पेटी लेकर अस्पताल भेजा। लिखा उसने अपने पत्र में कि अनूठा है यहां सब । अदभुत है। चमत्कृत हो गया हूं। काश तू यहां होती ! लेकिन उसका कोई उपाय नहीं, इसलिए थोड़ा-सा नमूना इस आकाश का, इस सुबह का, इस सूरज की किरणों का, इस पेटी में बंद करके भेजता हूं। 92 पत्र पहुंच गया। पेटी भी पहुंच गई। चाबी भी पहुंच गई। चाबी से पेटी खोल भी ली गई। लेकिन भीतर कुछ भी न था ! जब बंद किया था, तब सब था। सूरज की किरणें भी थीं। हवाएं भी थीं। नाचता हुआ आकाश भी था । सब था। वह तरंगित पूरा वातावरण पेटी के ऊपर ही नाच रहा था। सब था; वह सब उसने बंद किया था। लेकिन जब पेटी खोली तो वहां कुछ भी न था । | होगा भी नहीं । आकाश पेटियों में बंद नहीं किए जा सकते। बंद करते ही सब बदल जाता है। अनुभूतियां भी शब्दों में बंद नहीं की जा सकतीं। बंद करते ही सब बदल जाता है। कहते ही खो जाता है सत्य इसलिए लाओत्से ने कहा है, अगर मैं कहूं, तो भूल होगी। क्योंकि जो कहा जा सकता है, वह सत्य न होगा। और जो मैं कहना चाहता हूं, वह मैं सत्य ही कहना चाहता हूं। इसलिए उचित है। मैं चुप ही रहूं। लेकिन चुप रहने से भी तो नहीं कहा जा सकता। चुप रहने वाले लोग भी हुए हैं, फिर भी नहीं कहा जा सकता। बोलकर भी नहीं | कहा जा सकता। आदमी की बड़ी बेचैनी है। लेकिन जीकर थोड़ी-सी खबर दी जा सकती है। अगर यह कवि मुझे मिल जाए ! बहुत मुश्किल है। कहां खोजें! | उसके नाम-धाम का कुछ पता नहीं, जिसने यह सब पेटी में बंद करके भेजा था। अगर यह मुझे मिल जाए, तो इससे मैं कहूं कि पेटी में बंद मत कर, एक और उपाय है। एक और उपाय है, वही एकमात्र उपाय है। तू पेटी में बंद मत कर। तू ठीक से इस आकाश को जी | ले। तू ठीक से इन हवाओं को पी ले। तू ठीक से सूरज की इन किरणों को तेरी आंखों में समा जाने दे। यह सुवास, जो तुझे प्रीतिकर लगती है, तेरे रोएं - रोएं में रम जाए । यह सारा आकाश, जो तेरे चारों तरफ फैला है विराट, यह तेरे हृदय के भीतर भी समा जाए।
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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