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स्वभाव की पहचान 3
उस व्यक्तित्व को कहता हूं, जो मस्तिष्क-केंद्रित हो; वह स्त्री हो। | हो, तो मैं कैसे भाव करूं, ताकि मैं आपको जान लूं? चाहे पुरुष, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। इन दोनों के मार्ग बिलकुल ___ भाव-लीनता; विचार-ध्यान। और भाव-लीनता, डूबना, अलग हैं।
| विसर्जित होना, समर्पण, खो जाना। अर्जुन को यह भी खयाल में नहीं है। इसीलिए मैं कहता हूं, वह बुद्ध नाच नहीं सकते, क्योंकि नाचना बुद्ध को लगेगा, यह क्या बहुत सरल है। उसे यह भी पता नहीं है कि मैं बुद्धिवादी हूं, कि बात हुई! सूफी फकीर नाच सकते हैं, क्योंकि वे कहते हैं, हृदयवादी हूं; कि मैं किस मार्ग से चलूं, भाव से या ज्ञान से! वह नाच-नाचकर हम उसमें खो जाते हैं। दोनों बातें पूछ लेता है कि किस भांति चिंतन करता हुआ आपको कभी आपने छोटे बच्चों को देखा है। छोटे बच्चे अक्सर घर में जानूं? अगर मेरा यह मार्ग हो कि विचार के द्वार से ही मैं आप तक | | करते हैं। चक्कर लगाना शुरू कर देते हैं। बड़े रोकते भी हैं उनको। पहुंचूं, तो किस भांति विचार करता हुआ पहुंचूं? या अगर भाव मेरा | और उनको हैरानी होती है, कि चक्कर आ जाएगा। गिर जाओगे। मार्ग हो, तो मैं किस भाव के झरोखे से आपको झांकू? | मूर्छित हो जाओगे। सिर टूट जाएगा। और बच्चे अपनी जगह पर
ये दो विराट धाराएं हैं। इसके छोटे-छोटे बहुत तरह के अंग हैं, | खड़े होकर कील की तरह घूमना चाहते हैं। बच्चों को, अधिकतर लेकिन वे गौण हैं। महत्वपूर्ण यही है। अब तक जगत में जिन लोगों | बच्चों को रस होता है कील की तरह घूमने का। बच्चे कह नहीं ने भी पाया है परम सत्य को, उन्होंने या तो विचार की आत्यंतिक | सकते कि उनको क्या होता है। और बूढ़े समझते हैं कि यह घूम रहा गति से या भाव की। एक तरफ बुद्ध हैं, महावीर हैं, लाओत्से हैं, | | है, अभी गिरेगा; चक्कर खा जाएगा। लेकिन बच्चे जब तेजी से क्राइस्ट हैं। एक तरफ मीरा है, चैतन्य हैं, कबीर हैं, थेरेसा है, | | चकरी की तरह घूमते हैं एक जगह, तो उन्हें शरीर अलग और राबिया है, इस तरह के लोग हैं। जिन्होंने भाव से पाया है, उनकी | | आत्मा अलग मालूम होने लगती है। और बड़ा आनंद उन्हें आता पूरी की पूरी व्यवस्था जीवन की साधना की अलग होगी, विपरीत | | है। वह बूढ़ों की समझ में नहीं आ सकता। होगी। जिन्होंने ज्ञान से पाया है, उनकी बिलकुल विपरीत होगी। । । सफी फकीर इसी तरह नाचते हैं। सफी फकीरों का एक वर्ग ही
विचार से जो चलेगा. उसके लिए ध्यान आधार होगा। विचार है. व्हिरलिंग दरविशेज. नाचते हए फकीर। वे ठीक बच्चों की से जो चलेगा, उसे विचार को इतना शुद्ध, इतना शुद्ध करना है कि | | तरह खड़े होकर फिरकनी की तरह नाचते हैं। तेजी से नाचते हैं। एक क्षण आए कि विचार शुद्ध होते-होते, होते-होते तिरोहित हो घंटों नाचते हैं। एक घड़ी आती है कि शरीर घूमता रह जाता है और जाए। जब भी कोई चीज शुद्ध होती है, तो तिरोहित होने लगती है। चेतना खड़ी हो जाती है। शरीर लीन हो जाता है विराट में। शरीर जितनी शुद्ध होती है, उतनी तिरोहित होने लगती है। जब कोई चीज | खो जाता है। पूर्ण शुद्ध हो जाती है, तो वाष्पीभूत हो जाती है।
मीरा नाचती है, चैतन्य नाचते हैं। ये अपने को डुबा रहे हैं। विचार इतना शुद्ध हो जाए कि विचार-मात्र रह जाए। शब्द | लेकिन अगर मोहम्मद से हम कहें, नाचना, संगीत! तो मोहम्मद समाप्त हो जाएं, सिर्फ विचारणा रह जाए। थाट्स चले जाएं, सिर्फ कहेंगे, गलत! संगीत की बात ही मत लाना मस्जिद के करीब। थिंकिंग मौजूद रह जाए; विचारणा की शक्ति रह जाए और विचार संगीत की बात ही मत उठाना। क्योंकि मोहम्मद कहते हैं कि संगीत
सब खो जाएं। आकाश रह जाए, बादल सब चले जाएं। बादल हैं | में आदमी खो जाएगा। और खोना नहीं है, जागना है। विचारों की तरह। और जब सब बादल छंट जाते हैं, तो वह जो | और अगर हम मीरा से कहें.संगीत विचारक हैं भीतर आकाश की तरह, वह शेष रह जाता है। विचार | ही कृष्ण और मीरा के बीच जो सेतु है, वह तत्काल टूट जाएगा। को शुद्ध करके, शांत करके, मौन करके, क्षीण करके, विचारक | अगर हम चैतन्य से कहें कि फेंको यह तंबूरा, छोड़ो यह नाचना; अकेला रह जाए। उसको हम चाहे साक्षी का नाम दें, अवेयरनेस | | बंद करो यह संगीत और गीत! तो चैतन्य का सब कुछ खो जाएगा। कहें, जागरूकता कहें, जो भी नाम दें। सिर्फ बोध-मात्र रह जाए| संगीत उनके लिए कारगर हो सकता है, जो अपने को डुबाने चले
और विचार खो जाएं। बुद्ध इसी परंपरा के अग्रगण्य प्रतीक हैं। हैं, खोने चले हैं। __ अर्जुन कहता है, अगर ऐसी कोई संभावना हो मेरी, तो मैं कैसे अब यह मजे की बात यह है कि ये बिलकुल विपरीत मार्ग हैं। चिंतन करूं? वह मुझे बताएं कि मैं आपको जान लूं। अगर यह न | | ध्यान में अपने को बचाना है पूरी तरह, सब छूट जाए, मैं ही बचूं।
दो। तो संगीत के छटते
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