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________________ गीता दर्शन भाग-500 की यात्रा पर भी बड़ी गहन रेखाएं हम पर छोड़ दी जाती हैं। मैं | | मुसलमान का परमात्मा पाकर क्यों अपनी जिंदगी बर्बाद कर रहे हो? देखता हूं कभी कि कोई आदमी जन्म से हिंदू घर में पैदा हुआ है। | हमें परमात्मा से कोई प्रयोजन नहीं है। हमारा परमात्मा! अब कोई आदमी जन्म से मुसलमान घर में पैदा हुआ है। लेकिन जन्म परमात्मा हमारा-तुम्हारा नहीं हो सकता। कोई दो परमात्मा भी नहीं से धर्म का क्या संबंध? कोई भी संबंध नहीं है। अगर एक आदमी | | हैं। लेकिन यह हमारे मन की आज तक की व्यवस्था है। इस जन्म से कम्युनिस्ट के घर में पैदा हुआ है, तो कम्युनिस्ट होने की | व्यवस्था के कारण दुनिया में धर्म के जितने फूल खिल सकते हैं, मजबूरी नहीं है। फिलहाल अभी तक तो नहीं है। आगे हो सकती | | नहीं खिल पाते। इस कारण जितने लोग धार्मिक हो सकते हैं, नहीं है कि तुम कम्युनिस्ट बाप के बेटे हो, कम्युनिस्ट ही तुम्हें होना | | हो पाते। धर्म तो भावगत है, जन्मगत नहीं।। पड़ेगा; कि तुम्हारा खून कम्युनिस्ट का है! इसे ठीक से समझ लें, धर्म भावगत है, जन्मगत नहीं। और जब खून किसी का होता नहीं। न कम्युनिस्ट का होता है, न हिंदू का | कष्ण ने कहा है कि स्वभाव ही धर्म है। और स्वधर्म को छोडकर होता है, न मुसलमान का होता है। अभी तक कोई उपाय नहीं खोजा | दूसरे धर्म में जाना भयभीत करने वाला, भयावह है। तो लोग जा सका कि खून सामने आप रख दें और डाक्टर बता दे कि यह समझते हैं, इसका मतलब है कि हिंदू घर में पैदा हुए हो, तो हिंदू हिंदू का है। हड्डी में भी अब तक पता नहीं चलता कि हड्डी हिंदू की | रहना। मुसलमान घर में पैदा हुए, तो मुसलमान रहना। है कि मुसलमान की है। खोपड़ी की मज्जा को भी निकालकर जांच नहीं; स्वधर्म का मतलब है, अपना स्वभाव खोजना, अपना करो, तो कोई पता नहीं चलता कि किसकी है। | भाव खोजना, जो तुम्हें परमात्मा से मिलाने में सहयोगी हो सके। बच्चे कोई धर्म, कोई विचार, कोई पंथ, कोई मत लेकर पैदा नहीं वह व्यक्तिगत ट्यूनिंग है। एक-एक व्यक्ति को अपनी तरंग होते। बच्चे संभावना लेकर पैदा होते हैं कुछ होने की। लेकिन हम खोजनी पड़ती है, अपनी वेव-लेंथ खोजनी पड़ती है, कि मेरे हृदय उनके ऊपर थोप देते हैं कुछ। एक आदमी मुसलमान के घर में पैदा | की तरंग किस भांति परमात्मा की तरंग से जुड़ सकती है। . हुआ है। यह हो सकता है, इसके लिए कृष्ण का मंदिर भाव बन ___ अर्जुन का यह पूछना बहुत मूल्यवान है कि हे योगेश्वर, मैं किस जाए। लेकिन इसको अड़चन आएगी। इसको अड़चन आएगी। | प्रकार निरंतर चिंतन करता हुआ आपको जानूं? और हे भगवन्, मूर्ति के सामने यह नाच कैसे सकता है? आप किन-किन भावों में मेरे द्वारा चिंतन करने योग्य हैं? मेरे द्वारा एक मुसलमान ने मुझे आकर कहा, तब मुझे खयाल आया। | चिंतन करने योग्य हें किन-किन भावों में? किन भावों में आपको उसने मुझे कहा कि मेरा तो मन होता है कि जैसे मीरा नाचती फिरी| | खोजं? कैसे यह मेरे लिए सरल होगा कि जो अभी मैं मानता है. कृष्ण को लेकर, ऐसे मैं नाचता फिरूं। लेकिन मैं मुसलमान हूं! | कल वह मेरा ज्ञान भी बन जाए? जिसे अभी मैंने बाहर से स्वीकार और यह तो कुफ्र है; यह तो बड़ी बुरी बात है, मूर्ति-पूजा। और यह | | किया, कल भीतर से भी अनुभव करूं? जिसकी अभी मैंने चर्चा तो नहीं हो सकता! यह तो नहीं हो सकता। ही सुनी, कब होगा कि उसका स्वाद भी ले लूं? अभी जब मैं दूसरे अब यह आदमी एक दुविधा में है। मैं ऐसे हिंदुओं को जानता की गवाही खोजता फिरता हूं, कब वह क्षण आएगा, जब मैं भी हं, जिनके लिए मस्जिद मंदिर से बेहतर हो। मैं ऐसे ईसाइयों को | | गवाह हो जाऊं? कि जो मैं कह रहा हूं, उसका मैं ही गवाह हूं! जानता हूं, जो कि कहीं और होते तो ठीक होता। लेकिन जन्म एक | तो दो बातें! एक तो किस विधि निरंतर चिंतन करता हुआ जकड़ बन जाता है। और तब आप अपना भाव नहीं खोज पाते। | आपको जानूं? दो बातें पूछी हैं, और दो ही विशेष हैं। किस विधि आप अपना खोज ही नहीं पाते कि कौन-सा द्वार है मेरा नैसर्गिक, | चिंतन करता हुआ? यह ज्ञान के लिए, ज्ञान की जो विधियां हैं। और जहां से मैं परमात्मा को पा सके। दूसरा वह पूछता है, किस भाव से? वह भक्त की विधि है। हम सबको इसकी फिक्र नहीं है कि कोई परमात्मा को पाए। हिंदू ठीक अर्थों में जगत में दो ही विराट भेद हैं मनुष्यों के, को फिक्र है कि हिंदू के परमात्मा को पाना है। मुसलमान को फिक्र | मस्तिष्क-केंद्रित और हृदय-केंद्रित। दो ही प्रकार हैं, पुरुष और है कि मुसलमान के परमात्मा को पाना है। अगर तुमने हिंदू का | स्त्रैण। जब मैं कहता हूं पुरुष और स्त्रैण, तो पुरुष और स्त्री से परमात्मा पा लिया, तो इससे तो बेहतर था कि न पाते परमात्मा और मतलब नहीं है। प्रतीकात्मक है। स्त्रैण व्यक्तित्व को मैं कहता हूं, मसलमान रहते। या न पाते परमात्मा और हिंदु रहते। लेकिन जो हृदय-केंद्रित है. वह चाहे परुष हो और चाहे स्त्री हो। और परुष
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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