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________________ ॐ स्वभाव की पहचान वह कहता है कि आप ही कह सकते हैं। लेकिन तत्क्षण जो वह | बड़ा अघटनीय घट रहा है, तो वह यह है कि किसी को यह पता जोड़ता है, वह बहुत महत्वपूर्ण है। कहता है, आप कह सकते हैं | नहीं कि वह क्या होने को हुआ है? क्या हो सकता है? क्या है अपनी समग्रता को। लेकिन तत्क्षण वह जोड़ता है, वह कहता है, उसकी संभावना ? बीज क्या है छिपा हुआ उसके भीतर? वह किस मैं किस प्रकार निरंतर चिंतन करता हुआ आपको जानूं? बड़ा चीज का बीज है? वह चमेली का फूल बनेगा कि चंपा का फूल महत्वपूर्ण यह नहीं है कि आप कहें। आप भी कहेंगे, तो पता नहीं बनेगा? वह कौन-सा फूल बनकर परमात्मा के चरणों पर चढ़ मैं जान पाऊं, न जान पाऊ! आप कह भी देंगे, तो भी मैं समझ सकता है? पाऊं, न समझ पाऊं! आप कह भी देंगे, तो भी मैं सुनूं या न सुनूं। | अगर चमेली का फूल चंपा का फल होने की कोशिश करता रहे. ___ जीसस ने कहा है कि कान हैं तुम्हारे पास, लेकिन तुम सुनते | तो परमात्मा के चरण बहत दर हैं। क्योंकि चंपा होना ही संभव नहीं कहां हो? आंखें हैं तुम्हारे पास, लेकिन तुम देखते कहां हो? तो | है। अगर गुलाब का फूल चमेली का फूल होने की कोशिश में पड़ा जिनके पास कान हों और जो सुन सकते हों, वे सुन लें। और रहे, तो परमात्मा के चरण बहुत असंभव हैं। क्योंकि पहले तो वह जिनके पास आंखें हों और देख सकते हों, वे देख लें। चमेली ही नहीं हो पाएगा; चढ़ने का कोई सवाल नहीं है। मैं किस कान से सुन लेना एक बात है। शब्द कान पर पड़ेगा, सुनाई पड़ | भांति चढूंगा! मेरा होने का ढंग मुझे खोजना पड़ेगा। जाएगा। लेकिन अर्जुन पूछता है, मैं किस प्रकार निरंतर चिंतन ___ और एक-एक व्यक्ति का अपना निजी ढंग है। वही तो करता हुआ आपको जानूं? आप कह भी दें, तो भी शायद ही हल | व्यक्तित्व का अर्थ है। एक-एक व्यक्ति अपने ढंग का व्यक्ति है, हो। मैं कैसे जानूं? आपका कहा हुआ, मेरा जानना कैसे हो जाए? बेजोड़। उस जैसा कोई दूसरा नहीं है। लेकिन हम सब उधार जीते उसकी विधि मुझे कहें, उसका मार्ग मुझे बताएं। और हे भगवन्, | | हैं, इमिटेटिव। और हम सब एक-दूसरे को उधारी थोपते चले जाते आप किन-किन भावों में मेरे द्वारा चिंतन करने योग्य हैं ? और मेरी | हैं। अगर मुझे भक्ति प्रीतिकर लगती है, तो मैं अपने बेटे पर भक्ति योग्यता को समझें, मेरी पात्रता को, मेरी संभावना को, और मैं किन | थोप दूंगा, बिना इसकी फिक्र किए कि वह उसका भाव है? अगर भावों में आपका चिंतन करूं कि आपको जान पाऊं? | मुझे भक्ति अरुचिकर है, तो मैं अपने बेटे पर भक्ति का विरोध थोप यहां बहुत-सी बातें हैं। | दूंगा, बिना इसकी फिक्र किए कि वह उसका मार्ग है? और हम सब परमात्मा को किसी भी भाव से पाया जा सकता है, लेकिन हर एक-दूसरे पर थोपते चले जाते हैं। और इतने थोपने वाले हो जाते व्यक्ति हर भाव से नहीं पा सकता। सभी भावों से पाया जा सकता हैं कि कठिनाई हो जाती है। है उसे, लेकिन आप सभी भाव करने में समर्थ नहीं हो सकते। मैंने सुना है, एक छोटा बच्चा, स्कूल में उससे पूछा गया आपका कोई अपना भाव आपको खोजना पड़े। आपका भाव, बड़ा होकर क्या बनना चाहता है? तो उसने कहा, क्या बनना आपका निजी भाव-जो आपका प्राण बन सकता हो, जिसका चाहता हूं, इसका तो मुझे पता नहीं। एक बात पक्की है कि मैं पागल बीज आपके भीतर छिपा हो, जिसकी आपकी पात्रता हो-उस | बन जाऊंगा! इंसपेक्टर ने पूछा कि यह तुझे खयाल कैसे आया? भाव से ही आप परमात्मा को खोजें, तो ही खोज पाएंगे। | तो उसने कहा, मेरी मां चाहती है कि मैं इंजीनियर बनूं। मेरा बाप लेकिन बहुत बार ऐसा होता है, हम दूसरों के भावों से उसे चाहता है कि डाक्टर बनूं। मेरा भाई चाहता है कि चित्रकार बनूं। खोजने चलते हैं और तब हम नहीं खोज पाते। न तो कोई दूसरे की मेरी बहन कुछ और चाहती है। मेरी मौसी कुछ चाहती है। मेरी आंखों से देख सकता है, और न कोई दूसरे के हाथों से छू सकता चाची कुछ चाहती है। मेरे चाचा कुछ चाहते हैं। वे सब लोग है, और न कोई दूसरे की बुद्धि से जान सकता है। अपनी ही भाव कोशिश में लगे हैं अपने-अपने ढंग से मुझे कुछ बनाने की। मुझसे की दशा, जिससे परमात्मा का मेल खाए, अस्तित्व से मेल खाए, | तो न किसी ने पूछा है, न मुझे पता है। एक बात पक्की है कि अगर जाननी और खोज लेनी जरूरी है। | वे सब सफल हो गए, तो मैं पागल हो जाऊंगा! हमारी जिंदगी की बड़ी से बड़ी दुर्घटना यही है कि हमें यही पता हो ही जाएगा। और सफल भी न हों, तो भी पागल हो जाएगा। नहीं कि मैं किस पात्रता को लेकर पैदा हुआ हूं। बड़ी से बड़ी | | असफल भी हो जाएं, तो भी लकीरें छोड़ जाएंगे। विडंबना यही है। अगर कोई, हम समझें कि इस जगत का बड़ा से । सामान्य जीवन में तो यह हो ही रहा है। उस असामान्य जीवन पा कित 89
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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