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________________ गीता दर्शन भाग-500 आदमी कहता है कि नहीं, यह मंजिल नहीं है। यह सिर्फ रास्ते का | जब भी कोई कबीर, कोई कृष्ण, कोई क्राइस्ट हमें धक्का देगा, किनारा है। उठो! तो इस आदमी पर हमें क्रोध आता है। | और कहेगा, शुतुरमुर्ग! निकालो सिर बाहर! तब हमें क्रोध आता इसलिए इस जगत में जब भी किसी ने हम से कहा है कि तुम | | है कि सब नींद खराब किए दे रहा है यह आदमी। फिर यात्रा करनी जहां रुके हो, वह मंजिल नहीं है, तो हम नाराज हुए हैं। चाहे | | पड़ेगी। फिर चलना पड़ेगा। जो मिल गया था, वह फिर खो जीसस, चाहे कृष्ण, चाहे बुद्ध, चाहे महावीर, चाहे नानक, चाहे | जाएगा। यह छीन लेगा। कबीर, जिसने भी हमसे कहा है कि कहां तुम बैठे हो रास्ते के | लेकिन ध्यान रहे, जो भी आपसे छीना जा सकता है, ठीक से किनारे! वह हमें दुश्मन मालूम पड़ा। दुश्मन इसलिए मालूम पड़ा | | समझ लेना, वह आपके पास है ही नहीं। यह वक्तव्य बड़ा उलटा कि हमारे घर को बर्बाद किए दे रहा है। हम घर बनाकर बैठ गए मालूम पड़ेगा। जो आपके पास नहीं है, केवल वही छीना जा सकता हैं। हम बड़े मजे में हैं। | है; और जो आपके पास है, उसे छीनने का कोई भी उपाय नहीं। मजा यह है कि हमने पा लिया है और ये लोग आते हैं और ये यह वक्तव्य पैराडाक्सिकल लगेगा, क्योंकि मैं कह रहा हूं, जो हमें झकझोर देते हैं। और हिलाकर घर के बाहर निकालते हैं, और | आपके पास नहीं है, केवल वही छीना जा सकता है। और जो कहते हैं कि यह रास्ता लंबा है अभी। और जिसे तुम घर समझ रहे | | आपके पास है, वह कभी नहीं छीना जा सकता। हो, यह घर वैसा ही है, जैसा शुतुरमुर्ग दुश्मन को देखकर घबड़ा | ___जीसस ने इस वचन का उपयोग किया है। जीसस ने कहा है, जाता है और सिर को रेत में खपाकर खड़ा हो जाता है। और चूंकि जिनके पास नहीं है, उनसे छीन लिया जाएगा; और जिनके पास है, सिर रेत में चला जाता है, आंखें बंद हो जाती हैं, दुश्मन दिखाई नहीं| उन्हें और दे दूंगा। पड़ता, तो शुतुरमुर्ग सोचता है कि जो दिखाई नहीं पड़ता है, वह है। उलटा लगता है। हम सबको लगेगा कि यह तो बिलकुल नहीं। इसका नाम शुतुरमुर्ग का तर्क है। इकॉनामिक्स से उलटी बात हो गई। जिसके पास नहीं है, उसे दो। शुतुरमुर्ग का अपना तर्क है कि जो नहीं दिखाई पड़ता, वह नहीं | जिसके पास है, उससे छीनो। यह सीधा समाजवाद का तर्क है। है। हम भी तो यही कहते हैं। हमारे पास भी लोग हैं, वे कहते हैं, जिसके पास है, उससे छीनो। और जिसके पास नहीं है, उसे दो। ईश्वर नहीं दिखाई पड़ता, इसलिए नहीं है। शुतुरमुर्ग भी यही कहता लेकिन ये आध्यात्मिक लोग, न मालूम कैसा उलटा समाजवाद है। है। सिर को गड़ा लेता है रेत में, दुश्मन दिखाई नहीं पड़ता; नहीं है। इनका! जीसस कहते हैं, जिसके पास नहीं है, उससे छीन लिया बात खतम हो गई। निश्चित हो जाता है। जाएगा; और जिसके पास है, उसे और दे दिया जाएगा। निश्चित __ हम सब भी अपने सिर गपा लेते हैं अपनी मान्यताओं में। | ही लेकिन यह तर्क किसी दूसरी दुनिया का है। जहां समाजवाद मान्यताओं की रेत आंखों को अंधा कर देती है। फिर हम कुछ | लागू होता है, उस दुनिया से इसका कोई संबंध नहीं है। यह इस बनकर बैठ जाते हैं. जो हम नहीं हैं। जो आस्तिक नहीं है, वह सूत्र की बात मैं आपसे कह रहा हूं। आस्तिक समझ लेता है अपने को। जो धार्मिक नहीं है, वह धार्मिक | · आपको अगर डर लगता हो कि आपका परमात्मा छिन सकता समझ लेता है अपने को। जो नैतिक नहीं है, वह नैतिक समझ लेता है, तो समझना, वह आपके पास नहीं है। आपको डर लगता हो है। जिसे योग का कुछ भी पता नहीं है, जो दो-चार तरह शरीर को कि आपका मोक्ष छिन सकता है, तो समझना, वह आपके पास नहीं झुकाने की कलाएं सीख गया है, वह अपने को योगी समझ लेता | है। आपको डर लगता हो कि आपकी आत्मा, आपका ज्ञान, है। जिसे ध्यान की कोई भी खबर नहीं है. वह भी आंख बंद करके | आपकी श्रद्धा छिन सकती है, तो वह आपके पास नहीं है। ... दो मिनट बैठ जाता है, तो सोचता है, मैंने ध्यान कर लिया। जिसे | एक मित्र मेरे पास आते थे। तीसरे दिन उन्होंने मुझे पत्र लिखा प्रभु-स्मरण का कोई पता नहीं है, वह भी कोई राम, कृष्ण, कोई भी | और लिखा कि अब मैं दुबारा आपके पास नहीं आऊंगा। क्योंकि नाम की रटन थोड़ी देर लगा लेता है, तो सोचता है कि बस, | जब मैं आपके पास आया, उसके पहले मैं बड़ा आश्वस्त था कि ईश्वर-स्मरण हो गया! इस तरह हम रेत में छिपा लेते हैं अपने सिर | जानता हूं; और आप से मिलकर मुझे नुकसान के सिवाय लाभ नहीं को। अपनी बुद्धि को भी गपा लेते हैं। अंधे होकर, मान्यता को | हुआ। क्योंकि अब मुझे शक होने लगा है कि मैं जानता भी हूं कि जानना समझकर, रुक जाते हैं। नहीं जानता हूं! पहले मैं बड़े मजे में था। पर अब सब मेरा मजा
SR No.002408
Book TitleGita Darshan Part 05
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages478
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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