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________________ * गीता दर्शन भाग-44 करें—कोई भी उपाय करें, जब भी ध्यान फलित होता है, तो प्राण एक नाद और भी है इस जगत में जो अनाहत है, वही ओम, वही भ्रू-मध्य की तरफ दौड़ने लगते हैं। वही ध्यान की सफलता का | ओंकार है। लेकिन वह तब पैदा होता है, जब भीतर सब संघर्ष बंद सूचक है, लक्षण है, कि अब भ्रू-मध्य की तरफ ध्यान दौड़ना शुरू हो जाता है। हो गया, तो ध्यान सफल हो रहा है, स्वीकृत हो रहा है। प्रभु के मार्ग इसे ठीक से समझ लें। पर स्वीकृत होता जा रहा है। जब तक भीतर किसी तरह का संघर्ष और कांफ्लिक्ट है, तब जो पुरुष ऐसे क्षण में ब्रह्म को उच्चार करता हुआ, मुझे चिंतन तक आहत नाद ही होता है। अब एक आदमी बैठकर अगर भीतर करता हुआ, शरीर को त्याग जाता है, वह परम गति को उपलब्ध कहे, ओम-ओम, तो वह आहत नाद है। वह ओम नहीं है वह, जो होता है। अपने से उच्चरित होता है, जो गूंज उठता है प्राणों से और हम यह बात थोड़ी समझनी पड़ेगी। जो पुरुष ओम, ऐसे अक्षर रूप | केवल साक्षी होते हैं, कर्ता नहीं होते। ब्रह्म का उच्चार करता हुआ...। कृष्ण कहते हैं, जो पुरुष ओम, ऐसे इस एक अक्षर रूप ब्रह्म को इससे बहुत बड़ी भ्रांति होती है। क्योंकि हम एक ही तरह का | | उच्चार करता हुआ...। उच्चारण जानते हैं, जो हम करते हैं। हमें उस उच्चार का कोई भी यहां कर्ता की तरह करता हुआ नहीं, यहां समस्त अस्तित्व से पता नहीं, जो होता है, दैट व्हिच हैपेंस। ओम का उच्चार होता हुआ, ज्यादा ठीक होगा कहना। यहां सारी हम ओम का उच्चार कर सकते हैं, चेष्टा से। लेकिन जो ओम प्राण ऊर्जा ओम का उच्चार होती हुई, ओम का उच्चार बनकर जब का उच्चार चेष्टा से होगा, वह हृदय तक नहीं जाता। क्योंकि चेष्टा गतिमान होती है, तो परम गति उपलब्ध होती है। . कंठ से नीचे नहीं उतरती। कंठ से जो पैदा होता है, वह कंठ तक कभी अगर एक क्षण भी ऐसा अवसर मिल जाए, जब भीतर रहेगा। होंठ से जो पैदा होता है. वह होंठ तक रहेगा। इसलिए इस कोई संघर्षण न हो. परम मौन हो कोई शब्द न हो. कोई स्वर न तरह के उच्चार को आहत नाद कहा है। आहत नाद का अर्थ है, जो हो, तब भीतर ही आंखों और कानों को बंद करके सुनना, क्या दो चीजों के टकराने से पैदा होता है। दोनों होंठ टकराते हैं, आवाज | | गूंजता है भीतर? शीघ्र ही एक अनूठी ध्वनि सुनाई पड़नी शुरू हो पैदा होती है। जीभ तालू से टकराती है, उच्चार होता है। कंठ की | जाएगी, जो कभी नहीं सुनी। ओम तो सिर्फ उसकी कापी है समझाने । मांस-पेशियां सिकुड़ती हैं, टकराती हैं, उच्चार पैदा होता है। | को, प्रतिलिपि है; कार्बन कापी है। ओम से पता नहीं चलता; सिर्फ एक तरह की ध्वनि हम जानते हैं, जो आहत नाद है। आहत नाद | इशारा है। जो गूंज वहां अनुभव होती है, वह करीब-करीब ऐसी का अर्थ है, दो चीजों के संघर्षण से पैदा हुआ शब्द, ध्वनि।। | है, जैसा ओम के उच्चार से मालूम पड़े। पर वह ठीक ऐसी नहीं है। कृष्ण जिस उच्चार की बात कर रहे हैं, वह है अनाहत नाद। निकटतम, एप्रॉक्सिमेटली, ऐसी है। अनाहत नाद का अर्थ है, बिना दो चीजों के टक्कर के पैदा हुआ नाद।। इसलिए अनेक लोगों ने उसे अनेक तरह से समझा है। हिंदू ओम हम ऐसे किसी नाद को नहीं जानते। लोग कहते हैं, एक हाथ से | | के उच्चार से समझे हैं। हिब्रू, यहूदी, मुसलमान उसी को आमीन ताली नहीं बजती। ठीक कहते हैं। ताली बजे भी, तो दूसरा हाथ | की तरह समझे हैं। वह ओम, जो हमने ओम समझा, वह भीतर की जरूरी ही होगा। हाथ न हो, तो कोई दूसरी चीज जरूरी होगी। ध्वनि को सूफियों ने समझा, आमीन। वह आमीन जैसा भी सुनाई लेकिन दूसरा जरूरी होगा। एक हाथ से ताली बजाइएगा कैसे? | | पड़ सकता है। इसमें कोई कठिनाई नहीं है। बजने के लिए दूसरा चाहिए, संघर्षण चाहिए। ये दो ही शब्द हैं इस समय जमीन पर, आमीन और ओम। जगत में जितना नाद है, सब आहत नाद है। चाहे वृक्षों से | आधे धर्म दुनिया के आमीन के खयाल में हैं, आधे धर्म दुनिया के दौड़ती हुई सरसराती हवा, या सागर की लहरों की टक्कर चट्टानों ओम के। भारत में जो धर्म पैदा हुए, वे सब ओम के खयाल में से. कि बांसों के झरमट में होती गंज, कि पक्षियों के गीत. कि हैं। और उस खयाल में कोई और कारण नहीं है। जब हमें पता है आकाश की गड़गड़ाहट, कि आदमी की वाणी, कि सितार पर | | कि ओम, जो जब पहली दफे हमें वह ध्वनि सुनाई पड़ेगी, तो गूंजता हुआ स्वर, कि पानी की कल-कल, जो कुछ भी है इस | ओम जैसी सुनाई पड़ेगी। जिनको पता है आमीन, उन्हें आमीन जगत में, सब आहत नाद है। जैसी सुनाई पड़ जाएगी। 70
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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