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________________ * योगयुक्त मरण के सूत्र * में सब चीजें अन्योन्याश्रित हैं, इंटरडिपेनडेंट हैं। कहीं से भी शुरू करें, दूसरी चीज सहयोगी हो जाती है। और प्राण को मस्तक में ! प्राण से अर्थ है, जिसे बर्गसन ने एलान वाइटल कहा है, जीवन शक्ति कहा है, भारत उसे सदा से प्राण कहता रहा है। प्राण है हमारे भीतर वह ऊर्जा, जिसके सहारे हम जीते हैं । और जब यह शरीर छूटता है तो शरीर से कुछ भी नहीं जाता, सिर्फ प्राण चला जाता है। लेकिन वह प्राण अगर मस्तक में स्थापित होकर जाए, तो परम गति को उपलब्ध होता है। और अगर मस्तक में स्थापित न हो पाए, तो जिस केंद्र पर स्थापित होता है, उसी गति को उपलब्ध होता है। परम गति, कृष्ण किसे कहते हैं, वह ' हम समझ लें। परम गति उसे ही कहा है, जिसके आगे फिर कोई गति नहीं । परम गति उसे ही कहा है, जो अंतिम गति है, दि अल्टिमेट है, जिसके आगे कुछ भी नहीं है। इसलिए मोक्ष ही परम गति है, या ब्रह्म-उपलब्धि ही परम गति है, या निर्वाण ही परम गति है। बाकी सब गतियां परम नहीं हैं। क्योंकि उनके बाद और गतियां होंगी, और गतियां होंगी, और यात्राएं, और यात्राएं। परम यात्रा तो वही है, जिसके आगे फिर कोई मंजिल शेष नहीं रह जाती। अगर प्राण इकट्ठा हो जाए भृकुटी मध्य में, तो फिर कोई दूसरी गति में मनुष्य को नहीं जाना पड़ता। और जिस जगह केंद्रित होता है, उस जगह से पता चलता है कि किस गति में आदमी जाएगा। प्रत्येक व्यक्ति का प्राण शरीर के अलग-अलग बिंदुओं से निकलता है। सभी व्यक्ति एक ही बिंदु से नहीं मरते । जिन व्यक्तियों का प्राण भ्रू-मध्य में इकट्ठा हो जाता है, उनका प्राण सहस्रार से निकलता है। आज्ञा चक्र में जिनका प्राण स्थापित हो जाता है, तो जैसे ही आज्ञा चक्र में प्राण का प्रवेश होता है, यह जो अंतिम चक्र है हमारा सहस्रार, दि सेवेंथ, उसे तोड़कर निकल जाता है। इसलिए परम ज्ञानियों की अक्सर खोपड़ी भी टूट जाती है उस जगह से जरूरी नहीं है कि टूटे ही; अक्सर टूट जाती है। लेकिन हमने इसीलिए नियम बना रखा है कि जब किसी को, मुर्दे को हम जलाने जाते हैं, तो उसकी कपाल-क्रिया कर देते हैं, खोपड़ी फोड़ देते हैं। वह खुद तो नहीं फोड़ पाए, काफी देर पहले गए। अब हम फोड़ रहे हैं! मुर्दे की खोपड़ी फोड़ रहे हैं। उसका कोई मतलब नहीं है। लेकिन सूचक है। इस मुल्क ने जाने हैं ऐसे लोग, जिनकी मरते वक्त अपने आप खोपड़ी टूट जाती है। वह सूचना है कि वे परम गति को उपलब्ध हो गए। अब हम दीन-हीन, गरीब लोग हैं। मैं मर जाऊं और खोपड़ी अपने से न टूटे, तो एक बेटे को अपने पीछे छोड़ जाता हूं कि तू मेरी खोपड़ी तोड़ देना मरने के बाद ! यह वैसे ही है, जैसे मरने के बाद कोई दवा दे, इंजेक्शन लगाए । इस खोपड़ी तोड़ने का कोई | भी अर्थ नहीं है। यह बड़ी दीनता की सूचक है। यह खबर दे रही है कि जो होना था, वह नहीं हुआ। अब वे मुर्दे के साथ एक खेल कर | रहे हैं। लेकिन जिन्होंने यह रिवाज जारी किया, उन्हें पता था कि कभी-कभी कोई व्यक्ति उस छिद्र से भी प्राण को छोड़ता है। उस छिद्र से तभी प्राण छूटता है, जब प्राण भ्रू-मध्य में स्थापित होता है, अन्यथा नहीं छूटता। यही प्राण हमारी जीवन ऊर्जा है, लाइफ एनर्जी है। हम इसी के द्वारा गति करते हैं। अगर भू-मध्य तक वह नहीं पहुंचा, तो फिर कहीं से भी छूटे, हमें दूसरे जन्म को ग्रहण करना पड़ेगा। और जितने नीचे केंद्र से छूटेगा, उतनी नीची गति में हमारी यात्रा होती है। उतने ही निम्न मन और निम्न प्राण को और निम्न देह को लेकर | हम फिर जीवन को चलाते हैं। अक्सर अधिक लोगों का प्राण काम-केंद्र से ही छूटता है । क्योंकि वही हमारा केंद्र है सर्वाधिक सक्रिय । और जब काम-केंद्र से हमारा प्राण छूटता है, तो हम कामवासना से भरे हुए फिर नए जीवन में प्रवेश कर जाते हैं। कामवासना समस्त वासनाओं का आधार है, मूल है। फिर सब वासनाएं उसके साथ पुनः पैदा हो जाती हैं। और एक बार नहीं अनेक | बार मरकर भी हम वही भूल करते हैं कि हम ठीक से नहीं मरते । | ठीक से मरना एक कला है। ठीक से जीना तो एक कला है ही, लेकिन ठीक से मरना भी एक बड़ी कला है। हालांकि जो ठीक से जीते हैं, वही ठीक से मर पाते हैं। इसलिए हम ऐसा कह सकते हैं कि ठीक से जीना, ठीक से मरने की कला का प्राथमिक चरण है। | शिखर और सेतु तो ठीक से मरना है! हाउ टु डाइ राइटली ? सम्यक मृत्यु कैसे फलित हो ? कृष्ण उसी सम्यक मृत्यु की चर्चा कर रहे हैं। वे कहते हैं, प्राण स्थिर हो जाए भ्रू-मध्य में । और ध्यान की कोई भी विधि का उपयोग करें, प्राण भ्रू-मध्य में | स्थापित होने लगता है। कोई भी ध्यान की प्रक्रिया करें-भजन में लीन हों, कि प्रार्थना में, कि नमाज में, कि मौन बैठें, कि नाम स्मरण 69
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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