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________________ * गीता दर्शन भाग-44 मतलब है कि अब मैं किसी कारागृह में डालने की योजना बना रहा गया, वह चलती-फिरती लाश के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है। हूं, या किसी वासना की तृप्ति पर उतर आया हूं। इसलिए हमारी वह एक कंप्यूटर हो सकता है कि गणित का हिसाब लगा देता हो. आंख को भी हमें हिसाब में रखना पड़ता है। किसको कितनी देर | दफ्तर का काम कर देता हो, दुकान चला लेता हो। इंजीनियर हो, देखो, हिसाब रखना पड़ता है। कि डाक्टर हो, कि वकील हो। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। वह अगर भाव कह भी रहा हो कि दो क्षण रुक जाओ, शायद ऐसा सिर्फ एक कंप्यूटर है। यह जो उसकी खोपड़ी कर रही है, यह तो सौंदर्य फिर दिखाई न पड़े, शायद परमात्मा की ऐसी कुशलता फिर | अब कंप्यूटर बहुत बेहतर ढंग से कर देगा। दिखाई न पड़े, तो भी बुद्धि कहेगी कि इतनी ज्यादा देर रुके तो __ कंप्यूटर और आदमी में एक ही फर्क है कि कंप्यूटर अभी तक खतरा हो सकता है। दूसरा भी सचेत हो जाता है! दूसरा भी सचेत | | भाव नहीं कर सकता; बुद्धि का तो सब काम कर देता है। अगर हो जाता है। आप भी सिर्फ बुद्धि रह गए हैं, तो आप बहुत जल्दी रिप्लेस कर किसी को घूरकर देखिए। घूरकर देखना ही बुरी बात है। घूरकर | दिए जाएंगे; आप बहुत जल्दी गैर-जरूरी हो जाएंगे। और किसी देखने का मतलब ही बुरा हो जाता है। हम तो कहते ही उस आदमी कबाड़खाने में आपको उठाकर रख दिया जाएगा। क्योंकि आप को लुच्चा हैं, जो घूरकर देखता है। लुच्चा का मतलब सिर्फ होता महंगे भी हैं, खर्चीले भी हैं, नान-इकोनामिकल भी हैं। कंप्यूटर है, घूरकर देखने वाला। और कुछ मतलब नहीं होता इस शब्द का। बेहतर है। वह भोजन करता नहीं या बहुत कम भोजन करता है। लुच्चा, आंख से बना शब्द है, लोचन से। जो आंख गड़ाकर देखता | थोड़ी-सी बिजली लेता है। टूटता-फूटता नहीं। भूल-चूक कभी है, वह लुच्चा। वैसे आलोचक का भी यही मतलब होता है। वह | नहीं करता। और हजार आदमी जिस काम को कर सकें लाखों घंटों भी जरा आंख गड़ाकर चीजों को देखता है, कि आप क्या कह रहे | | में, वह क्षण में कर देता है। तो आदमी तो आउट आफ डेट है। हैं. वह जरा आंख गडाकर देखता है क्रिटिक, आलोचक। कंप्यटर उसकी जगह आ जाएगा। आलोचक और लुच्चे में बहुत फर्क नहीं है। लुच्चा जरा गलत | ___ आदमी के बचने की एक ही संभावना है कि आदमी अगर अपने जगह लगा देता है, आलोचक जरा ठीक जगह लगा देता है। भाव के केंद्र को पुनर्जाग्रत कर ले, तो ही कंप्यूटर से जीत सकता आंख को गड़ाकर देखना, बुद्धि आ गई। दूसरी तरफ भी आ है। अन्यथा जीतने का अब कोई उपाय नहीं है। गई, इस तरफ भी आ गई; और अड़चन शुरू हो गई। और ध्यान रहे, आदमी आदमी से लड़ता रहा, यह एक बात थी। भाव! एक बच्चा अगर किसी सुंदर स्त्री को खड़ा होकर देखता | अब पहली दफा आदमी मशीन से लड़ेगा। और मशीन से लड़कर रहे, तो उसे कुछ बेचैनी न होगी। क्योंकि अभी सिर्फ भाव है। भाव | आदमी जीतेगा नहीं, क्योंकि मशीन सब कुछ आपसे ज्यादा इनोसेंट है; भाव बहुत निर्दोष है, पवित्र है। लेकिन यही बच्चा कल कुशलता से कर सकती है। सिर्फ एक काम मशीन नहीं कर सकती, जवान हो जाएगा। और यही घूरकर देखेगा, तो कठिन हो जाएगा। वह भाव है। क्यों? अब सिर्फ भाव न रहा। अब बद्धि योजना बनाने लगेगी और लेकिन भाव हमारे पास नहीं है। भाव का हमें पता ही नहीं। हृदय वासना के उपयोग में आने लगेगी। | में हम सिर्फ एक ही बात जानते हैं कि वह जो धड़कन होती रहती हैरान होंगे जानकर आप, भाव वासना का जन्मदाता नहीं है। है। वह भी हम तभी जानते हैं, जब कोई बीमारी, कोई अड़चन आ अगर शुद्ध भाव में कोई ठहर सके, तो वासना तिरोहित हो जाती है। जाती है। लेकिन वह धड़कन तो सिर्फ फुफ्फुस है। वह धड़कन तो वासना का जन्म होता है बुद्धि और वृत्ति के सहयोग से। भाव और | सिर्फ पंपिंग स्टेशन की वजह से है। श्वास को, खून को पंप कर वत्ति के बीच कभी कोई सहयोग नहीं होता। बद्धि और वत्ति के बीच रही है. इसलिए धडकन है। वह हृदय नहीं है। उस धडकन के पास सहयोग हो जाता है। और बद्धि रास्ता बताती है कि यह है मार्गः। एक और धडकन भी है, जिसको नापा नहीं जा सकता। वह भाव जाओ बाहर। खोजो। पाने का उपाय करो। पा लोगे। ये-ये विधियां | की धड़कन है। हैं। ये-ये रीतियां हैं। इस तरह चलोगे, तो सफल हो जाओगे। लेकिन भाव को फैलाएं, मौका दें, अवसर दें, और धीरे-धीरे और जब भी कोई व्यक्ति बुद्धि की मानकर चलने लगता है, | | भाव को केंद्रित करें, तो वह संयम में सहयोगी बन जाता है। या धीरे-धीरे भाव का केंद्र सो जाता है। और जिसका भाव का केंद्र सो | संयम हो, तो वह भाव में सहयोगी बन जाता है। साधना के जगत
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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