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* योगयुक्त मरण के सूत्र *
मर जाऊं, तो सच-सच कहो, दूसरा विवाह तो नहीं करोगे! मुल्ला ने कहा, ऐसी बातें नहीं पूछा करते। तेरी तबीयत ठीक नहीं है । ऐसी बातें नहीं पूछा करते। पर पत्नी पीछे पड़ गई, तो मुल्ला ने कहा, बड़ी मुश्किल है। अगर मैं कहूं कि करूंगा, तो कहना जंचेगा नहीं; और अगर कहूं कि नहीं करूंगा, तो वह सच न होगा।
कहते हैं कि मुल्ला किसी स्त्री को प्रेम का निवेदन किया था। और उसकी उस प्रेयसी ने पूछा था कि मुल्ला, तुम ऐसे-ऐसे पत्र लिखते हो कि मैं मर जाऊंगा अगर तू मुझे न मिली; क्या सच ही तुम मर जाओगे अगर मैं तुम्हें न मिली? मुल्ला ने कहा, दिस हैज बीन माई यूजुअल हैबिट | यह तो मैं सदा करता रहा हूं। यह सदा की मेरी आदत है । जब भी किसी से मैंने प्रेम किया और अगर वह मुझे न मिला, तो मैं फौरन मर गया !
उस स्त्री ने प्रेम नहीं किया मुल्ला से, विवाह भी नहीं किया। और कहते हैं, मुल्ला ने अपना वचन निभाया, यद्यपि सत्तर साल बाद! मर गया सत्तर साल बाद लिख गया अपनी वसीयत में कि कोई यह न समझे कि मैं झूठा हूं। मैंने वचन दिया था अपनी प्रेयसी to अगर तूने मुझसे विवाह न किया, तो मैं मर जाऊंगा, और अब मैं मर रहा हूं। सत्तर साल बाद
• हमारा सारा प्रेम, प्रेम के दावे, मर जाने के वचन, आश्वासन, कहीं भी हृदय आते नहीं मालूम पड़ते। सिर्फ बुद्धि का हिसाब-किताब है । और जितना कम होता है हृदय, बुद्धि से हमें उतना ज्यादा सब्स्टीट्यूट, परिपूरण करना पड़ता है।
तो जितना कम प्रेमी, उतना ज्यादा गुहार मचाए रखता है कि मैं प्रेम करता हूं, मैं प्रेम करता हूं, मैं प्रेम करता हूं। सच में जो प्रेमी है, चुप होना भी काफी है। और अगर चुप्पी न कह सके प्रेम को, तो शब्द कभी भी न कह पाएंगे। भाव जब होता है, तो रोआं-रोआं कहता है; उपस्थिति कहती है ।
जब आप किसी के प्रेम में हों, तो भाव को मौका दें, बुद्धि को बीच में मत लाएं। जब आप प्रार्थना में हों, तो भाव को मौका दें, बुद्धि को बीच में मत लाएं। जब आप सौंदर्य को देख रहे हों-सूरज निकला है, फूल खिल गया है; कोई आंखें हैं, सुंदर हैं - तब भाव को मौका दें, बुद्धि को बीच में मत लाएं।
भाव इतना ही कहेगा, आंखें सुंदर हैं। बुद्धि कहेगी, इन आंखों को घर में कैद करने का कोई उपाय है या नहीं ! भाव इतना ही कहेगा, प्यारा है फूल; अनुभव करेगा । बुद्धि कहेगी, तोड़ो । क्योंकि बुद्धि जहां भी प्यारा कुछ लगे, उसको तोड़ना चाहती है।
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बुद्धि बहुत हिंसात्मक है।
अगर सच में ही किसी ने फूल को प्रेम किया है, तो मुश्किल है सोच पाना कि उसे तोड़ेगा कैसे ? लेकिन आप जब भी फूल को प्रेम करते हैं, तो जो पहला काम आप करते हैं, वह फूल को तोड़ने का है। अजीब प्रेम है ! अगर यही प्रेम है, तो हत्या करना किसे कहते हैं ?
जब भी फूल प्यारा लगता है, तो पहला काम कि तोड़ो झटके से; उसके जीवन को नष्ट करो। उसका जो जीवंत रूप था, हटाओ। और एक मुर्दे फूल को खीसे में लगाकर घूमो। शायद फूल से आपको बिलकुल प्रेम नहीं है। शायद इस फूल को भी आप अपने अहंकार की शोभा और आभूषण बनाना चाहते हैं।
अगर कोई स्त्री मुझे सुंदर लगे, तो कैसे जल्दी इसे अपने घर में कैद करूं, यह बुद्धि का खयाल है। बुद्धि इसी भाषा में सोचती है। भाव नहीं सोचता । भाव को अगर कोई सुंदर लगता है, तो कारागृह में डालने का कोई सवाल ही नहीं है। अगर भाव को कोई सुंदर | लगता है, तो कारागृह में हो भी, तो उसे मुक्त कर देने की कामना पैदा होती है। अगर किसी को फूल सुंदर लगा है और जमीन पर पड़ा है, तो वह उसे उठाकर कहीं पानी में रख देना चाहेगा कि थोड़ी | देर और ज्यादा जिंदा रह जाए।
भाव की प्रक्रिया अलग है। भाव आपको कठिनाई में नहीं डालता। लेकिन बुद्धि आपके ऊपर इतनी जोर से कसकर बैठी है कि भाव बोल भी नहीं पाता कि बुद्धि अपने वक्तव्य देने शुरू कर देती है। और भाव कह भी नहीं पाता कि क्या अनुभव हुआ, बुद्धि योजना बनाने लगती है कि क्या करना चाहिए।
नहीं; सौंदर्य का अनुभव बुरा नहीं है, लेकिन सौंदर्य को कैद करने की जो बुद्धि है, वह पाप है। और अगर हम इस पृथ्वी पर किसी दिन भाव से जीना शुरू करें, और किसी के सौंदर्य को अगर आप सड़क पर खड़े होकर देखने लगें, तो वह बुरा अनुभव नहीं | करेगा; नहीं करना चाहिए। क्योंकि परमात्मा की इस देन को अगर कोई आनंद से देख रहा है, तो हर्ज कहीं भी, कुछ भी नहीं है । लेकिन अभी वह बुरा अनुभव करता है, क्योंकि सबको पता है कि देखना केवल प्रारंभ है, केवल शुरुआत है एक लंबे नर्क की । | इसलिए देखने के नियम हैं।
अगर मैं सरसरी नजर से आपको देखूं, तो कोई एतराज नहीं । अगर जरा समय से ज्यादा रुक जाऊं, तो खतरा शुरू हो जाता है। क्योंकि उतनी देर रुकने का मतलब है, नजर उतनी देर रुकी, उसका