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* योगयुक्त मरण के सूत्र *
है कि आप मछलियां छोड़कर आए हैं! मुल्ला ने कहा, मछलियां सौंदर्य की तरफ बह रही है। लड़ने की जरूरत नहीं है, गाली देने छोड़ी हैं, मछलियों का शोरबा नहीं।
की जरूरत नहीं है, कि यह पाप है सौंदर्य को देखना। बिलकुल पाप बात ठीक ही थी। पत्नी झिझकी तो, लेकिन शोरबा छोड़ा ही नहीं नहीं है। था। तो पत्नी ने बर्तन उठाया और मुल्ला की थाली में शोरबा डालने सौंदर्य की प्रतीति में जरा भी पाप नहीं है। सौंदर्य के अनुभव में लगी। तो मछलियों के कतरे न चले जाएं, तो उसने हाथ की आड़ | जरा भी पाप नहीं है। सुंदर को जानकर अगर आदमी की चेतना लगा दी। मुल्ला ने कहा कि हाथ की आड़ क्यों लगा दी? मछलियां स्वयं में थिर हो, तो परमात्मा का ही स्मरण होगा, पाप का कोई छोड़ी हैं, लेकिन खुद जो आती हों, उन्हें रोकने का कहां नियम | स्मरण नहीं हो सकता है। कोई कंडेमनेशन, कोई निषेध, कोई निंदा लिया है। अपने आप जो आने को उत्सुक हों, उनको आने दो। नहीं। सिर्फ इतना कि मैं उसे जानूं जो आकर्षित हुआ है, क्योंकि . फिर आदमी तर्क खोजता है। उसी के लिए तर्क खोजता है, | वही मैं हूं। और मैं उसे जानूं जो चेतना आकर्षित होकर बह रही है। जिसके खिलाफ तर्क खोज लिए थे। नहीं, कोई भी इस भांति जीवन | __ और जैसे ही आप अपने ध्यान को स्वयं पर और अपनी बहती के रूपांतरण को नहीं पाता। और इंद्रियों के द्वार इस तरह कभी बंद | | हुई चेतना पर ले जाएंगे, आप अचानक पाएंगे कि इंद्रिय का द्वार नहीं होते। इंद्रियां बल्कि इस तरह और सतेज हो जाती हैं, उनकी | | बंद हो गया है। क्योंकि ध्यान भीतर जाए, तो चेतना भीतर की तरफ जंग भी झड़ जाती है।
प्रवाहित होने लगती है, बाहर की तरफ नहीं। जहां ध्यान, वहां - कृष्ण का जो अर्थ हो सकता है, जो अर्थ है, जो सदा ही जानने चेतना बहती है। जैसे जहां गड्ढा, वहां पानी बहता है। गड्ढा खोद दें वालों का अर्थ रहा है, वह यह है कि जो वृत्ति भीतर से धक्का देती और पानी बह जाएगा। है, उस वृत्ति का विसर्जन हो।
अब कुछ पागल हैं जो पानी को रोकने की कोशिश करते हैं। • कैसे हो? छोड़ने से नहीं होता, भोगने से नहीं होता। भोगने से पानी को रोकने से कुछ न होगा। कितना ही रोकिए, पानी गड्ढे की बढ़ता है, पुनरुक्ति से आदत मजबूत होती है। छोड़ने से निषेध का | तरफ ही बहेगा। और अगर बांध बनाया, तो जो झरना था, वह आकर्षण मिलता है, और निषेध से रस जगता है। न भोगने से महासागर हो जाएगा। और आज नहीं कल, अगर झरने को ही मिटता, न छोड़ने से मिटता। वह कैसे मिटे वृत्ति का रस? कैसे बहने देते तो बहुत खतरे होने वाले नहीं थे, लेकिन किसी दिन यह इंद्रिय...वह संयम कैसे उपलब्ध हो?
झरना जब बांध बनकर महासागर बन जाएगा और बांध को तोड़कर उस संयम का एक ही उपाय रहा है सदा से, और वह है, जब बहेगा, तो महाविनाश होगा। भी कोई विषय आकर्षित करे, तो ध्यान विषय पर न रखकर वृत्ति चित्त के साथ यही हो रहा है। इसलिए आप जानकर हैरान होंगे, पर रखना। जब भी कोई विषय आकर्षित करे! राह से गुजर रहे हैं | जो लोग रोज छोटा-मोटा क्रोध कर लेते हैं, वे लोग कभी हत्या नहीं आप, एक सुंदर चेहरा दिखाई पड़ता है, एक सुंदर देह दिखाई पड़ती करते। इसलिए अगर आपके घर में कोई ऐसा आदमी हो, जो क्रोधी है, स्त्री की, पुरुष की। दौड़ता है मन। उस समय आपका ध्यान उस | तो हो, लेकिन क्रोध न करता हो, तो उससे सावधान रहना। क्योंकि शरीर पर होता है, जो आपको आकर्षित कर रहा है। उस वृत्ति पर । | वह किसी दिन जब भी करेगा, तो हत्या से कम में निपटारा नहीं है! नहीं होता, जो दौड़ी जा रही है। और उस चेतना पर भी नहीं होता, | बांध बन जाएगा। जो आदमी रोज नाराज हो लेता है, वह रोज प्रसन्न जो आकर्षित हो रही है।
भी हो जाता है। इसलिए बच्चे अभी नाराज हो रहे हैं, अभी मुस्कुरा और जहां ध्यान होता है, चेतना उसी तरफ दौड़ती है, यह नियम रहे हैं। क्योंकि बांध बिलकुल नहीं है। कोई बांध नहीं है। है। जहां ध्यान होता है, चेतना उसी तरफ दौड़ती है। जहां ध्यान, हम कितना ही क्रोध कर लेते हों, फिर भी बांध बांधकर चलना वहीं चेतना के लिए निशाना बन जाता है, और चेतना का तीर उसी ही पड़ता है। दफ्तर में मालिक है, नाराज नहीं हो सकते। समय है, तरफ चलने लगता है।
परिस्थिति है, नाराज नहीं हो सकते। रोक लेना पड़ता है। वह बांध ध्यान को, जब कोई सुंदर व्यक्ति दिखाई पड़े, तो ध्यान को सुंदर | बन जाता है। फिर वह बांध टूटता है। और तब जोर से क्रोध व्यक्ति पर मत केंद्रित करें, तत्काल अपने पर केंद्रित करें; और देखें | निकलता है। कि मैं सौंदर्य से आकर्षित हुआ हूं और मेरी चेतना वृत्ति बनकर इसलिए हमारा क्रोध अक्सर ही अनजस्टीफाइड होता है।
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