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* गीता दर्शन भाग-4*
नहीं है कि वह बाहर प्रवाहित हो जाए।
| शक्तिशाली होता चला जाएगा। रुके होने की वजह से शक्ति हमारे शरीर की सभी इंद्रियों के द्वार स्वचालित हैं। जब चेतना | बढ़ेगी, रोकने की वजह से शक्ति कम होगी । आज नहीं कल, भीतर से धक्का देती है, तो द्वार खुल जाते हैं। और जब चेतना धक्का देकर चेतना फिर इंद्रिय के द्वार को खोल देगी। और जो हम भीतर से धक्का नहीं देती, तो द्वार अपने आप बंद हो जाते हैं। करना चाहते हैं, उसके लिए तर्क खोज लेते हैं।
जब कृष्ण कहते हैं, इंद्रियों के द्वारों को रोककर, तो वे ऐसा नहीं | सुना है मैंने कि मुल्ला नसरुद्दीन मक्का की यात्रा पर गया। वहां कहते हैं कि जबरदस्ती अपनी आंखों को बंद करके बैठ जाओ। उसने कसम ले ली; भाव में आ गया। कसम ले ली कि मछलियां क्योंकि जो जबरदस्ती अपनी आंखों को बंद करके बैठेगा, जिसके | खाना छोड़ देता हूं। कसम लेने का, मछलियां छोड़ने का असली खिलाफ उसने आंखें बंद की हैं, वह बंद आंखों में भी मौजूद हो| कारण यह नहीं था कि मछलियां छोड़ने से मुल्ला को लगता हो कि जाता है। उससे बचा नहीं जा सकता।
| कोई बहुत बड़ा स्वर्ग मिल जाएगा। असली कारण यह था कि जबरदस्ती कान बंद कर लो, कुछ न सुनना हो, तो वह अनसुना | उसके गुरु ने कहा, कुछ तो छोड़ो! तो मछलियां मुल्ला को भी भीतर गूंजता है, बंद नहीं होता। जबरदस्ती कामवासना को रोक | बिलकुल पसंद नहीं थी, इसलिए उसने मछलियां छोड़ दीं। लो, तो कोई अंतर नहीं पड़ता। काम ऊर्जा स्खलित होती ही चली लेकिन छोड़ने की रात ही मुल्ला हैरान हुआ कि मछलियों का जाती है।
| स्वप्न आया। कभी नहीं आया था। और घर लौटते-लौटते जबरदस्ती कोई भी उपाय नहीं। क्योंकि जबरदस्ती एक बात की | तीर्थयात्रा से, बस एक ही बात याद रह गई कि मछलियां छूट गईं। खबर देती है कि भीतर से चेतना बाहर जाना चाहती है और उसी और एक ही बात गूंजने लगी मन में कि बड़ी गलती की। इतनी चेतना का एक हिस्सा उसे जबरदस्ती भीतर रोकना चाहता है। तो जल्दी क्या थी? ऐसा बातों में पड़ जाने का प्रयोजन क्या था? और अगर रोकने वाला हिस्सा सबल हुआ, तो दरवाजे पर थोड़ी देर | घर आते-आते एक ही वासना मन में सघन हो गई, मछलियां खाने कशमकश होती रहती है दरवाजे के पीछे, बाहर जाने वाला धक्का की, जो कि मन में कभी भी न थी। देना चाहता है, रोकने वाला खींचता है। अगर सबल हुआ रोकने | | कई बार ऐसा होता है। अगर किसी चीज में रस पैदा करना हो, वाला, तो थोड़ी देर तक यह कशमकश होती है। लेकिन एक बड़े तो छोड़ने की कसम खा लें, तो रस पैदा होना शुरू हो जाता है। मजे का नियम है कि जो रोकता है, वह थोड़ी देर में कमजोर हो जाता | क्योंकि जिसे हम छोड़ते हैं, उसके प्रति वासना पैदा होती है। पैदा है। जो हिस्सा रोकता है, उसकी ताकत रोकने में व्यय हो जाती है। | इसलिए होती है कि छोड़ने से लगता है कि अब कभी भी भोग न
इसलिए आदमी आज कसम खाता है ब्रह्मचर्य की और कल सकेंगे। अब कभी भी भोग न सकेंगे। तो मन के किसी भी कोने में पाता है कि मुश्किल है। वह हैरान होता है कि जब कसम खाई थी, भोग की जरा-सी भी वृत्ति पड़ी हो, वह कहती है कि यह तो बड़ी तो बिलकुल सुलभ मालूम पड़ती थी, सरल मालूम पड़ती थी बात। गलती कर ली, एक बार तो भोग लेते! अगर भोग सकेंगे, तो वह कसम खाई ही इसलिए थी। चौबीस घंटे बाद क्या हो जाता है? | | वृत्ति विश्राम करती है, प्रतीक्षा करती है, कभी भी भोग लेंगे, कभी जिस मन के हिस्से ने कसम खाई थी, वह लड़ने में लग जाता है| भी भोग लेंगे। उस मन से, जो जाना चाहता था।
___घर आते ही मुल्ला बेचैन हुआ। पत्नी को भी उसके गुरु ने बता और ध्यान रहे, कसम जब भी कोई खाता है, तो पक्का मान दिया है आकर कि मुल्ला मछलियां छोड़ दिया है, उसे मछलियां लेना, उसके भीतर दूसरा हिस्सा भी मौजूद होगा। नहीं तो कसम मत देना। पत्नी का भी मन हुआ—जैसा कि सभी पत्नियों का होता किसके खिलाफ खाई जाएगी? जब मैं कहता हूं कि कसम लेता हूं । है-कि पति की परीक्षा ले लें। दूसरे दिन ही उसने मछलियों का कि अब झूठ नहीं बोलूंगा, वह मैं किसके खिलाफ कसम खा रहा | | शोरबा बना डाला। मुल्ला को बास आने लगी। वह बड़ी मुश्किल हूं! अपने ही उस मन के हिस्से के खिलाफ, जिसके बाबत मुझे में पड़ गया। पक्का पता है कि वह मुझे झूठ बोलने को मजबूर कर सकता है। आखिर जब खाने पर बैठा, सब चीजें दी गईं, शोरबा नहीं दिया
लेकिन जिस हिस्से से मैं रोडूंगा, वह रोकने में उसकी ताकत गया। मुल्ला ने कहा कि मछली का शोरबा बना है, ऐसी सुगंध घर व्यय हो जाएगी; और जो हिस्सा रुका है, वह रोज-रोज में आती है। थोड़ा-सा दो। उसकी पत्नी ने कहा, लेकिन मैंने सुना