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* योगयुक्त मरण के सूत्र *
बरसों तक, तो बारूद भी सोच सकती है कि अब मैं बहुत शांत हो | आप अवरुद्ध हो जाती हैं। क्योंकि वत्ति के ऊपर ही चढ़कर चेतना गई हूं। क्योंकि अब कोई विस्फोट नहीं होता। और बारूद अगर | इंद्रियों के द्वार से निकलती है। वृत्ति के घोड़ों पर बैठकर ही चेतना यह सोचे कि यह अंगारे के कारण विस्फोट होता है, इसलिए मैं | | इंद्रियों के बाहर निकलती है और अनंत की बाह्य यात्रा पर भटकती अंगारे से बचती रहूं तो शांत बनी रहूंगी, तो भी भ्रांति है। क्योंकि है। वृत्ति के घोड़े ही अगर क्षीण हो जाएं, तो फिर इंद्रियां भागती अंगारा विस्फोट नहीं करता; अंगारा केवल विस्फोट के लिए नहीं, अवरुद्ध हो जाती हैं; उनके द्वार बंद हो जाते हैं। निमित्त बनता है। विस्फोट तो बारूद में ही होता है।
ठीक समझें, तो इंद्रियों के द्वार बहुत आटोमैटिक हैं, बहुत वह हमारे भीतर वृत्तियों की बारूद मौजूद रहे, तो हम अंगारों से | | स्वचालित हैं। जब तक चेतना भीतर से धक्का देती है उन्हें बाहर कितने ही भागते रहें, कोई बचाव नहीं है। और जन्मों-जन्मों में | की तरफ, तभी तक वे खुले रहते हैं। और जब भीतर की चेतना वापस पुनः-पुनः वृत्तियां हमें उपलब्ध हो जाएंगी।
धक्का नहीं देती बाहर की तरफ, वे द्वार अपने से बंद हो जाते हैं। जब कृष्ण कहते हैं कि सब इंद्रियों के द्वारों को रोककर, तो पहली ऐसा समझें, आंख प्रतीक है, आंख से समझें तो सारी इंद्रियों का बात ठीक से समझ लें, इस तरह के निरोध के लिए कृष्ण नहीं कहते | खयाल आ जाए। और आंख सूक्ष्मतम और सबसे ज्यादा नाजुक, हैं। कृष्ण का जीवन भी नहीं कहता कि इस तरह का निरोध उन्होंने | | डेलिकेट, बारीक इंद्रिय है। और जो आंख पर होता है, वही सब किया होगा। फिर भी कृष्ण के साथ भी भूल हो जाती है। | इंद्रियों पर होता है। • बुद्ध के वक्तव्य में कोई खोज सकता है यह अर्थ, क्योंकि वे | जब तक आपके भीतर चेतना जागना चाहती है, तब तक पलकें छोड़कर गए हैं। महावीर के व्यक्तित्व में खोज सकता है कोई यह | खुली रहती हैं। और जब चेतना सोना चाहती है, पलकें झप जाती अर्थ, क्योंकि वे भी छोड़कर गए हैं। लेकिन कृष्ण के साथ तक हैं और बंद हो जाती हैं। चेतना का धक्का ही पलकों को खोले भ्रांति होती है और गलत अर्थ होते हैं। जब कि कृष्ण कुछ भी | | रखता है। इसलिए कितनी ही गहरी नींद आ रही हो, आपको लगता छोड़कर नहीं गए। निश्चित ही, कृष्ण का यह अर्थ नहीं हो सकता | हो कि अब क्षणभर नहीं जाग सकूँगा, उसी वक्त कोई खबर दे कि कि आब्जेक्ट से, विषयों से भाग जाओ। उनका अर्थ दूसरा है। वह घर में आग लग गई है, नींद नदारद हो जाती है। नींद का पता ही दूसरा अर्थ बहुत भिन्न है और बहुत क्रांतिकारी है।
नहीं चलता; आप रातभर जाग सकते हैं। क्या हो गया? चेतना ने एक तो उपाय है कि मैं विषय से भाग जाऊं, अंगार से भाग वापस जागने का निर्णय लिया; पलकें खुल गईं। जाऊं, बारूद को बचाए हुए। दूसरा उपाय है कि बारूद को छोड़ करीब-करीब सभी इंद्रियां इसी तरह हैं। आंख पर तो पलकें हैं, दूं और अंगारों से खेलता रहूं। कृष्ण तो अंगारों से खेलने के लिए कान पर तो कोई पर्दे नहीं हैं बंद करने के। लेकिन विद्यार्थी कक्षा में संदेश दे रहे हैं अर्जुन को। वे कहते हैं, युद्ध कर, भाग मत। बैठा है और बाहर एक पक्षी गीत गा रहा है। पक्षी का गीत सुनाई __ और ध्यान रहे, जो युद्ध बाहर है, वह तो बहुत छोटा है। एक पड़ने लगता है, शिक्षक की आवाज बंद हो जाती है। शिक्षक ज्यादा
और अंतयुद्ध है भीतर, जो सतत चल रहा है चेतना का विषयों के | करीब है, ज्यादा जोर से बोल रहा है। पक्षी बहुत दूर है, किसी साथ, कि विषयों के प्रति आकर्षित हों या न हों। कृष्ण उस युद्ध से | | अमराई में छिपा होगा; बहुत धीमी सी गूंजती उसकी आवाज आती भी भागने की सलाह नहीं दे सकते। भागना उनकी भाषा नहीं है। | है। लेकिन उस विद्यार्थी को आवाज सुनाई पड़ने लगी पक्षी की, एस्केपिज्म, पलायन उनके सोचने का ढंग नहीं है। कृष्ण का ढंग | शिक्षक का बोलना खो गया। बात क्या हो गई? तो सोचने का है, युद्ध की सघनता में खड़े होकर जीवन के चेतना जिस तरफ उन्मुख होती है, उस तरफ द्वार खुल जाते हैं; रूपांतरण का।
| और जिस तरफ उन्मुख नहीं होती है, उस तरफ द्वार बंद हो जाते हैं। कृष्ण का अर्थ दूसरा ही हो सकता है। वह यह है, विषयों से | | काम के भी सूक्ष्म द्वार हैं, जो बंद होते और खलते हैं। चित्त में भागने की कोई भी जरूरत नहीं। और भागकर भी कोई भाग नहीं | | कामवासना भर जाती है, तो कामवासना का द्वार खुल जाता है। सकता। और जहां भी हम जाएंगे, वहीं विषय मौजूद हो जाएंगे। चेतना धक्के देती है, तो कामवासना का जो केंद्र है, उसका द्वार संसार जहां भी है, वहां विषय उपलब्ध हैं। वृत्ति को विसर्जित करना | खुल जाता है और काम ऊर्जा बाहर प्रवाहित होने लगती है। चेतना ही इंद्रियों का संयम है। और वृत्ति विसर्जित हो, तो इंद्रियां अपने | धक्के नहीं देती, तो काम ऊर्जा का द्वार बंद है। और कोई उपाय