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________________ * भाव और भक्ति उसके पिता ने उसे बिठाया और पूछा कि आप कैसे आए? | | कान में कुछ-कुछ पूछता है। जब उसने बगल के आदमी से पूछा, ख्यातिलब्ध आदमी था! इमेनुअल ने कहा कि कुछ समय हुआ | तब राज खुला। बगल के आदमी से उसने पूछा, यह कब सिक्खड़ आपकी लड़की ने निवेदन किया था मुझसे विवाह का। तीन साल | हटेगा, शूवर्ट कब आएगा? वह शूवर्ट ही बजा रहा है। तो बगल मैंने सब तरह अध्ययन किया, चिंतन किया, मनन किया, विवाह के आदमी ने कहा, महानुभाव, यह शूवर्ट ही है! उसने कहा, अरे, के पक्ष में और विपक्ष में सारी युक्तियां, सब तर्क! यही कहने आया | वंडरफुल, आश्चर्य! क्या अदभुत संगीत है! वह शूवर्ट सुन रहा है हूं कि अभी तक कोई निर्णय नहीं हो पाया है। सामने ही बैठा! क्या हुआ! यह आदमी संगीत सुन रहा है? यह, लेकिन उसके पिता ने कहा, अब आप चिंता छोड़ें। लड़की के | शूवर्ट कौन है, तो प्रभावित होता है। नहीं तो नहीं प्रभावित होता है। विवाह हुए भी दो साल हो गए। एक बच्चा भी हो चुका है। वैसे विनसेंट वानगाग के चित्र अनेक लोगों के घरों में थे। विनसेंट भी काफी देर हो चुकी है। और अब तो आप चिंता ही छोड़ दें। | वानगाग गरीब चित्रकार था। किसी से कुछ सिगरेट उधार ले ली इमेनुअल कांट विचारक था। प्रेम को अगर विचार करने गए, | थीं, उसके पास पैसे चुकाने को नहीं थे, तो एक पेंटिंग उसको दे तो विचार हाथ लगेगा, प्रेम कभी का खोचका होगा। | आया। जो आदमी सिगरेट के पैसे नहीं चुका सकता, उसकी पेंटिंग लेकिन प्रेम के संबंध में हम यह नासमझी नहीं करते। लेकिन | कोई अपनी दूकान में टांगेगा? पान वाला भी नहीं टांगेगा। उसने प्रार्थना के संबंध में जरूर करते हैं। क्यों करें प्रार्थना? यह क्यों | उसको कबाड़खाने में डाल दिया। सवाल विचार का है; यह सवाल भाव का नहीं है। भाव क्यों पूछता .... विनसेंट वानगाग के मरने के बीस-पच्चीस वर्ष बाद उसकी ही नहीं। भाव पूछता है, कैसे करें प्रार्थना? भाव पूछता है, क्या है | तस्वीरों की खोज शुरू हुई, जैसा अक्सर होता है। विनसेंट वानगाग प्रार्थना? क्यों नहीं। क्या मिलेगा प्रार्थना से, यह भी भाव नहीं | | को खाने के पैसे नहीं थे और अब विनसेंट वानगाग की एक-एक पूछता। कभी प्रेम ने पूछा है कि क्या मिलेगा प्रेम से? प्रार्थना करने | तस्वीर चार और पांच लाख रुपए की होती है। खोजबीन मच गई वाले ने भी कभी नहीं पूछा है। लेकिन हम प्रार्थना करने वाले निरंतर कि कहां उसकी तस्वीरें हैं? क्योंकि उसकी एक तस्वीर जिंदगी में पूछते रहते हैं, क्या मिलेगा? क्या मिला है? कुछ मिल रहा है कि बिकी नहीं कभी; एक नहीं बिकी! तो वे तो मुफ्त उसने दे दी थीं। नहीं मिल रहा है? | मित्र उसका अनुग्रह करके तस्वीर टांग देते थे अपने बैठकखाने में, नहीं, भाव नहीं है वहां। विचार को हटाएं, अन्यथा भाव के | और जैसे ही वह जाता था, उतारकर पीछे हटा देते थे। और कभी जगत में कोई गति नहीं होगी। विचार को कहें कि तेरी सीमा है, वहां | फिर घर आने को है, तो जल्दी से उसकी तस्वीर टांग देते थे कि तू काम कर। बाहर, घर के बाहर; घर के भीतर नहीं। कुछ मेरे उसको बुरा न लगे। अंतस्तल का भी जगत है, जहां तू बाधा न डाल। तू पदार्थ से जूझ, लोगों ने खोजबीन की, तस्वीरें एकदम कीमती हो गईं। नकली, तू परमात्मा से जूझने मत चल, अन्यथा मुझे हराकर रहेगा। तू पदार्थ | लोगों ने विनसेंट वानगाग की तरह ही चित्र बना-बनाकर लाखों को काट, लेकिन प्रेम को काटने की तैयारी मत कर। तू पदार्थ की | रुपए कमा लिए। जो तस्वीर पीछे घर में पड़ी थी, जैसे ही घर के परीक्षा कर, लेकिन परमात्मा की परीक्षा लेने मत जा। | मालिक को पता लगा कि विनसेंट वानगाग की है। वानगाग है! तो फिर दूसरा कदम उठाया जा सकता है, भाव के विकास का। | तस्वीर बैठकखाने में आ गई! अभी तक कबाड़खाने में पड़ी थी। जहां भी चिंतन को गति न मिलती हो और प्रतीति को गति मिलती इस आदमी का तस्वीर से कोई भी संबंध बन पा रहा था? कोई हो, वहां-वहां ज्यादा से ज्यादा समय देना शुरू करें। | संबंध नहीं था। संगीत सुन रहे हैं, उसे भी हम संगीत की तरह नहीं सुनते।। __ आपके घर में भी हीरा पड़ा हो और पत्थर आपको पता हो, तो .. सुना है मैंने कि एक बहुत बड़ा संगीतज्ञ, शूवर्ट, एक गांव में | | उससे कोई संबंध नहीं बनता। और पत्थर पड़ा हो और वहम आ संगीत बजाने गया है। जब वह अपना वायलिन बजा रहा है, तब | जाए कि हीरा है, तो संबंध बन जाता है। तो आपके सौंदर्य से कोई सामने बैठा एक बूढ़ा बार-बार कह रहा है, बेकार है; कुछ भी नहीं | | भाव का लेना-देना नहीं है। यह सब विचार का ही मामला है। है। शूवर्ट परेशान हो गया। वह सामने की कुर्सी पर बैठा हुआ है, | भाव जहां हो! संगीत बज रहा है। छोड़ें फिक्र, कौन बजा रहा और बार-बार कह रहा है। और वह अपनी बगल के आदमी से भी है। छोड़ें फिक्र, क्या बजा रहा है। इतनी ही फिक्र करें कि मन, जहां 53
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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