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________________ *गीता दर्शन भाग-4 तो कोई भी मौजूद न हो, तब उस निर्जन में भी भाव की धारा प्रेम | विचार से अलग हैं। यही सबसे बड़ी कठिनाई है। की वर्षा करती रहती है। . आप जब भी विचार करते हैं, समझते हैं, मैं कर रहा हूं। और जब बुद्ध जैसा व्यक्ति जब कहीं बैठता है, या कृष्ण जैसा व्यक्ति जब भी भाव आता है, तो आप समझते हैं, कोई विजातीय चीज भीतर कहीं खड़ा होता है, कोई भी न हो वहां, तो भी प्रेम की किरणें वैसी आ रही है। हमारी आइडेंटिटी विचार से जुड़ गई है, हमारा तादात्म्य। ही फैलती रहती हैं, जैसे एकांत में जलते हुए दीए से प्रकाश झरता | तो आदमी जब विचार करता है, तो कहता है, मैं विचार कर रहा हूं। रहता है। वह किसी के लिए निवेदित नहीं है, वह किसी के लिए | जब भाव करता है, तो समझता है कि कोई फारेन, कोई विजातीय एड्रेस्ड नहीं है। वह सिर्फ भाव है। और उस भाव में रमने में परम चीज भीतर बाधा डाल रही है। भाव से हमारा कोई तादात्म्य नहीं है, आनंद है। जब कि भाव ही हमारी जड़ है, वही हमारा आधार है। जिस दिन भाव अनएड्रेस्ड होता है, उसी दिन परमात्मा के लिए तो पहला काम तो भक्ति-युक्त चित्त की तरफ यह है कि हम एड्रेस्ड हो जाता है। जिस दिन भाव बिना किसी पते के घूमने लगता | विचार को भीतर के मार्ग पर बाधा देने के लिए पाबंदी कर दें। कह है, भीतर से बहने लगता है, उसी दिन वह परमात्मा के चरणों पर | दें कि नहीं, तेरा वहां कोई काम नहीं है। पहुंचना शुरू हो जाता है। लेकिन यह भाव अंतर्गमन है, अपने पर कठिनाई पड़ेगी। लेकिन कठिनाई ज्यादा नहीं पड़ेगी, अगर वापस लौटना है। संकल्प है। और बहुत शीघ्र एक डिमार्केशन, एक सीमा-विभाजन तो जिसे भी भाव की तरफ चलना हो, उसे पहली शर्त तो यह है | हो जाएगा–विचार बाहर के लिए, भाव भीतर के लिए। जो व्यक्ति कि वह विचार से सावधान हो। इसका यह अर्थ नहीं है कि वह | | ऐसा अपने भीतर स्पष्ट रेखा नहीं खींच पाता, वह विचार के द्वारा विचार छोड़ दे। इसका इतना अर्थ है कि वह विचार बाहर के लिए | सदा ही अपने भाव के जगत को नष्ट करने में लगा रहता है। करे और भीतर के संबंध में विचार को बाधा न देने दे। वैसे विचार जरा प्रेम उठेगा और विचार कहेगा, यह क्या गलती में पड़ रहे की आदत इंटरफिअर करने की है हर चीज में। और अगर आप | हो! इल्लाजिकल, तर्कहीन बातों में जा रहे हो! ध्यान करने गए। विचार से कहेंगे कि मत डालो बाधा, तो विचार ही आपसे कहेगा विचार कहेगा, यह क्या कर रहे हो? कीर्तन करने लगे। विचार कि तुम्ही उलटे मेरे काम में बाधा डाल रहे हो। कहेगा, यह क्या कर रहे हो? पागल हो रहे हो, मूढ़ हुए जा रहे मुल्ला नसरुद्दीन बैठा है अपने घर में। चिट्ठी डालने वाला | हो? भाव ने कहा, कूद पड़ो संन्यास में। विचार कहेगा, क्या होश वाजे के नीचे से चिट्टी डाल गया है। पत्नी उठी। मल्ला उठ ही खो रहे हो? क्या दिमाग खराब है? पहले सोचो। रहा था कि पत्नी उठ गई। उसने चिट्ठी उठाई। पता पढ़ा। मुल्ला ने आप भी कहेंगे कि सोचना तो जरूर चाहिए कुछ भी करने के पूछा, किसकी है? उसने कहा, मेरे मायके से है। किसके नाम है? | | पहले। लेकिन क्या आपको पता है, कुछ चीजें सोचकर की ही नहीं तो पत्नी ने कहा, मेरे नाम है। पत्नी ने चिट्ठी खोली, पढ़ने लगी। जा सकतीं। जैसे कोई प्रेम करने के पहले सोचे। निश्चित ही सोचना मुल्ला ने पूछा, क्या लिखा है? पत्नी ने कहा, चिट्ठी मेरे नाम है, चाहिए। मेरे मायके से है, आप इतनी उत्सुकता क्यों ले रहे हैं? मुल्ला ने | सुना है मैंने, एक आदमी ने सोचा है बहुत। वह आदमी था कहा. फिर वही नासमझी। हजार दफे कहा कि मेरे काम में बाधा जर्मनी का एक बहत बड़ा विचारक इमेनअल कांट। एक स्त्री ने मत डाला कर। उससे निवेदन किया कि मैं विवाह के लिए निवेदन करती हूं। चिट्ठी उसकी है, उसके मायके से है। वह पढ़ रही है। बाधा इमेनुअल ने नीचे से ऊपर तक उसे देखा, वैसे ही जैसे विचारक मुल्ला डाल रहा है। लेकिन वह कहता है, फिर वही नासमझी! मेरे किसी चीज को परख करते वक्त देखते हैं। उन्होंने ने कहा, ठीक। काम में बाधा मत डाला कर। | मुझे विचार का मौका दें। विचार पूरे समय भाव के लिए बाधा डालता है। और अगर स्त्री में थोड़ी भी प्रतीति रही होगी, तो उसी वक्त जान लेती कि आपने विचार से कहा कि बाधा मत डालो, तो विचार कहेगा, मेरे । | यह आदमी काम का नहीं है। फिर महीनों पर महीने निकल गए। काम में आप बाधा डाल रहे हैं। और विचार से आप इतने आब्सेस्ड | | वर्ष निकल गया। तीन वर्ष निकल गए। और तीन वर्ष बाद हैं, विचार से ऐसे रुग्ण हैं कि आप यह भूल ही गए हैं कि आप इमेनुअल उसके दरवाजे पर पहुंचा।
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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