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* गीता दर्शन भाग-4
है। कारण है। क्योंकि भाव की जिस क्षमता से मंदिर जीवित होता अति प्रेम से डूबे हुए, अति प्रेम में लीन, किसी भाव-लोक में प्रवेश था, और भाव की जिस धारा से मस्जिद प्राणवान थी, और भाव के | करना होता है। जिस प्रवाह से प्रार्थना में गति आती थी, खून बहता था, और भाव और यह बड़े मजे की बात है। जब आप विचार से किसी चीज के जिस स्पंदन से पूजा के हृदय की धड़कन धड़कती थी, वह भाव | को सोचते हैं, तो जिसे आप सोचते हैं, वह नष्ट हो जाता है, आप ही खो गया है। और भाव का कोई प्रशिक्षण नहीं है।
बचे रहते हैं। और जब भाव से आप किसी चीज को जोड़ते हैं, तो __भाव के प्रशिक्षण का नाम ही भक्ति की साधना है। और भाव | फूल तो बच जाता है, थोड़ी देर में आप खो जाते हैं। में जो प्रशिक्षित हो गया, वही भक्त है। जिसने विचार को छोड़ा विचार से जब किसी चीज की तरफ जाते हैं, तो, विचार
और भाव को जीया। और जिसने कहा, हम सोचेंगे नहीं, भावेंगे। आक्रामक है, एग्रेसिव है, हिंसात्मक है, वह तोड़-फोड़कर रख हम प्रश्न न पूछेगे, हम प्रेम करेंगे। हम काटेंगे नहीं, हम जुड़ जाएंगे | देता है। आप तो बच जाते हैं, चीज टूट-फूट जाती है। वैज्ञानिक और जानना चाहेंगे कि क्या है।
के आस-पास इसी तरह टूटी-फूटी मुर्दा चीजों का फैलाव है, एक फूल को तोड़कर भी देखा जा सकता है—विज्ञान वैसे ही | कबाड़खाना है। सब मरा हुआ है उसके आस-पास; सिर्फ देखता है, विचार वैसे ही देखता है-फूल को तोड़कर देखा जा | वैज्ञानिक जिंदा है। वह भर बैठा है बीच में, बाकी सब कबाड़खाना सकता है। तोड़ लें फूल को, तो पता चल जाता है, किन केमिकल्स है उसके आस-पास मुर्दा चीजों का। से, किन रासायनिक तत्वों से मिलकर फूल बना है। कितना खनिज | ___ एक कवि भी होता है कहीं किसी फूल के पास बैठा हुआ, एक है उसमें; कितनी मिट्टी है; कितना पानी है; कितनी सूरज की किरण | | प्रेमी भी होता है कहीं। तब एक दूसरी घटना घटती है। उसके पास है। सब बांट-छांटकर आपको पता चल जाता है। लेकिन जब तक | | चांद-तारे होते हैं-बहुत मुखर, बहुत जीवित-लेकिन कवि खो आप छांटकर, बांटकर पता लगाने तक पहुंचते हैं, तब तक आप गया होता है। वह नहीं होता वहां। एक बात भूल गए, फूल कभी का खो चुका है। फूल वहां नहीं है। रवींद्रनाथ से कोई पूछता था कि इतने अच्छे गीत तुमने लिखे!
और फूल का जो सौंदर्य का अनुभव था, वह इस कटे-छंटे, | | रवींद्रनाथ, तुम कभी असफल भी हुए हो? तो रवींद्रनाथ ने कहा, एनालाइज्ड फूल के टुकड़ों से मिलने वाला नहीं है। | जब-जब मैं रहा, तभी-तभी असफल हुआ। जब-जब मैं मिटा,'
अगर आप अब इस फूल की अलग-अलग टेस्ट-ट्यूब में, तभी-तभी सफलता थी। अगर गीत लिखते वक्त मैं मिट गया, तो परखनलियों में रखी हुई रासायनिक लाश को किसी कवि को दिखाएं सफल हुआ; और अगर गीत लिखते वक्त मैं बना रहा, तो कभी
और कहें कि अब कविता करो फूल की, क्योंकि तुम जिस फूल को | सफल नहीं हुआ। देखते थे, उससे बहुत ज्यादा जानकारी अब इस परखनली में कैद | अब अगर वैज्ञानिक, विचार करने वाला अगर मिट जाए, टूट है! कोई कविता पैदा न होगी। क्योंकि वहां कोई फूल ही नहीं है। जाए, खो जाए, न रह जाए...। कभी-कभी कोई वैज्ञानिक भी अब कहें किसी सौंदर्य के प्रेमी को कि गाओ गीत। नाचो इस फूल | | प्रयोगशाला में खो जाता है। जब वह खो जाता है, तब वह वैज्ञानिक के आस-पास। क्योंकि तुम जिस फूल के पास नाच रहे थे, वह | | नहीं है, तब वह कवि हो जाता है। और अक्सर वैज्ञानिक भी कवि निपट अज्ञान से घिरा था। तुम्हें कुछ पता ही नहीं था। अब फूल के | | होकर ऐसे गहरे हीरे खोज लाता है, जो वैज्ञानिक होकर उसने कभी बाबत सब कुछ पता है। अब तुम ज्यादा अच्छा गीत गा सकोगे! | | भी नहीं खोजे। और कभी-कभी कवि भी नहीं खोता, फूल ही खो
यह नहीं होगा; गीत का जन्म नहीं होगा। क्योंकि फूल को जानने | | जाता है, तब वह कवि नहीं होता, तब वह वैज्ञानिक ही हो जाता का जो ढंग है-फल को. फल की विषय-वस्त को नहीं: फल की | है। तब फल के संबंध में वह जो भी खोजकर लाता है. वह काव्य देह को नहीं, फूल के प्राण को जानने का जो मार्ग है। फूल की देह नहीं होता, मुर्दा तुकबंदी होती है। को जानने का तो यही मार्ग है, क्योंकि देह मृत है। लेकिन फूल के यह जो भाव है हमारे भीतर, इस भाव को परमात्मा की ओर प्राणवान, वह जो फूल के भीतर लपट है भागती हुई जीवन की, वह | | प्रवाहित करने का नाम भक्ति है। जो फूल के भीतर सौंदर्य का खिलाव है, वह जो इस फूल में | लेकिन हम परमात्मा के पास भी विचार को लेकर पहुंच जाते परमात्मा झलका है, अगर उसे जानना है, तो फूल के पास बैठकर हैं। हम अपना पूरा तर्कशास्त्र साथ लेकर पहुंच जाते हैं। हम अपनी
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