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* भाव और भक्ति के
की कोशिश करने लगे और मुश्किल में पड़ जाए, वैसा ही वह आंख की जो स्थिति है, आंख को बाहर आपने निकाल लिया, तो व्यक्ति भी मुश्किल में पड़ जाता है, जो भाव से संसार में चलने आपको धोखा भला हो कि यह वही आंख है। यह वही आंख नहीं लगे, विचार से परमात्मा में चलने लगे।
है, क्योंकि अब यह देख नहीं सकती। और जो देख नहीं सकती, लेकिन भाव से संसार में चलने की भूल कोई भी नहीं करता है। उसको आंख कौन कहेगा? सिर्फ दिखाई पड़ती है कि आंख है। और अगर कोई करता भी है, तो एक दो कदम पर ही समझ जाता अब यह एक मुर्दा चीज है। अब इस मुर्दा चीज की जांच होगी और है कि भूल हो गई, कदम वापस लौटा लेता है। लेकिन परमात्मा हम जांच करना चाहते थे जीवंत की; भूल हो जाएगी। की तरफ चलने में विचार के सहारे चलने की भूल सौ में निन्यानबे । हम जो भी विश्लेषण करके जांच पाते हैं, वह हमेशा मुर्दा होता लोग करते हैं। और कदम भी नहीं लौटाते। क्योंकि इतनी गहरी यह है। इसलिए चिकित्सक आत्मा को कभी भी नहीं खोज पाता। आत्मा धारणा है हमारी कि बिना विचार के तो एक कदम भी ठीक चला | को खोजने का कोई डायग्नोसिस का रास्ता भी नहीं है, कोई निदान नहीं जा सकता, गलती हो ही जाएगी। यह सच है, लेकिन आयाम, भी नहीं है। तो चिकित्सक जितनी ही खोज करता है, उतनी ही मुर्दा डायमेंशन संसार का और है और परमात्मा का और है। इन दोनों चीजें भीतर पाता है। आखिर में वह पाता है कि आदमी सिवाय पदार्थ के आयाम को ठीक से समझ लें, तो भक्तियुक्त पुरुष समझ में आ के जोड़ के और कुछ भी नहीं है। आत्मा चूक जाती है। जाएगा कि क्या है।
विश्लेषण के द्वारा, काटने के द्वारा, खंडन के द्वारा, हम केवल विचार है तर्क की प्रतिक्रिया। विचार है चिंतना का मार्ग। विचार | मुर्दा, मृत पदार्थ को ही जान सकते हैं। इसीलिए विज्ञान पदार्थ से है विश्लेषण की विधि। यदि किसी चीज को नियम में लाना हो, तो | | संबंधित दिशाओं में बहुत सफल हुआ है, लेकिन चेतना से विचार और तर्क जरूरी है। बिना तर्क के कोई नियम निर्धारित नहीं संबंधित दिशाओं में बिलकल भी सफल नहीं हआ है। असल में होता। यदि किसी विचार को प्रबल बनाना हो, तो चिंतन, निरंतर | चेतना का कोई विज्ञान नहीं बन सका है अब तक। शायद बन भी चिंतन के द्वारा ही वह प्रबल होता है। यदि गलत विचार को अलग | | नहीं सकेगा। क्योंकि विचार उसका मार्ग नहीं है। अगर जीवन को करना हो, तो तर्क के अतिरिक्त कोई उपाय नहीं है। अगर ठीक | जानना है, जीवंत, तो भाव उसका मार्ग है। विचार की खोज करनी हो, तो तर्क की ही छैनी से काट-काटकर विचार तोड़ता है, तब जांचता है। भाव जोड़ता है, तब जांचता ठीक विचार को बचाया जा सकता है, खोजा जा सकता है। यदि | है। विचार पहले चीजों को तोड़ता है, फिर उनके भीतर प्रवेश करता किसी चीज को तोड़कर उसका निरीक्षण करना हो, तो विश्लेषण | है। भाव पहले किसी से जुड़ जाता है और फिर भीतर प्रवेश करता के सिवाय कोई उपाय नहीं। तोड़ो, जांचो, परखो।
| है। एक तो फिजियोलाजिस्ट की, शरीरशास्त्री की जानकारी है कि __ और इसीलिए विचार विज्ञान का जन्मदाता बन जाता है। और | वह आपके शरीर को काट-काटकर बता देगा कि भीतर क्या है, इसीलिए विचार जीवन के व्यवसाय का वाहन है। और इसीलिए क्या नहीं है। एक प्रेमी की भी जानकारी है, वह भी जिसे प्रेम करता विचार अंतर्यात्रा का मार्ग नहीं है। क्यों? क्योंकि भीतर के उस है, तो वह भी उसके संबंध में बहुत कुछ जान लेता है। लेकिन वह जगत में, उस परमात्मा की खोज में जो जा रहा है, वह किसी वस्तु जानना प्रेमी को काटकर नहीं होता, प्रेमी से जड़कर होता है।। का विश्लेषण करके नहीं जा सकेगा। क्योंकि विश्लेषण करते से • भाव प्रेम का ही मार्ग है। वहां हम, परमात्मा है या नहीं, इसे तर्क ही चीजें मर जाती हैं।
से जानने नहीं जाते, इसे भाव से जुड़कर जानने की चेष्टा करते हैं। यदि हम एक व्यक्ति की जांच भी करते हैं शरीर की, तो | निश्चित ही, तोड़ने की जो विधि है, वह जोड़ने की विधि नहीं अभी-अभी विज्ञान को भी अनुभव होना शुरू हुआ है कि हम भूल | बन सकती। इसलिए विचार प्रभु की तरफ ले ही नहीं जाता। और कर रहे हैं। एक चिकित्सक है। अगर मेरा शरीर बीमार है, तो वह | | इसलिए दुनिया जितनी तथाकथित रूप से विचारवान होती जाती है, मेरे खून की जांच करता है शरीर से खन को निकालकर। लेकिन | उतनी परमात्मा से वंचित होती चली जाती है। शरीर से निकलते ही खून डेड हो गया, मुर्दा हो गया। मेरे शरीर के | - इधर पांच हजार वर्षों में हमने आदमी को विचार करने में बड़ा भीतर उसकी जो आर्गेनिक, जीवंत स्थिति थी, वह शरीर के बाहर कुशल बना लिया है, लेकिन भाव करने की कुशलता बिलकुल खो निकलते ही नहीं रह गई। मेरी आंख है; मेरे शरीर के भीतर जीवंत | गई है। मंदिर-मस्जिद सब मुर्दा हैं आज। पूजा-प्रार्थना सब सड़ गई
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