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________________ * गीता दर्शन भाग-4 पर जो फुल प्वाइंट रखा जाता है, उतनी उम्र आदमीयत की है। और अविद्या से अति परे, अज्ञान से अति दूर, शुद्ध सच्चिदानंद आदमी की उम्र, मेरी या आपकी, इसका निशान नहीं बनाया जा | परमात्मा को जो स्मरण करता है, वह उसी को उपलब्ध हो जाता है। सकता। इसका निशान कैसे बनाइएगा? फुल प्वाइंट, जो आप अविद्या से अति परे! आखिरी बात। अपने बाल प्वाइंट पेन से लगा दें, उतनी उम्र आदमीयत की है। एक अज्ञान में गिरा जा सकता है। अज्ञान से उठा जा सकता है। पेज के बराबर जमीन की है। एक हजार पेज के बराबर इस सूरज | अविद्या से अति परे का अर्थ है कि जो अज्ञान में गिरने में असमर्थ की है। है, जो गिर ही नहीं सकता। अज्ञान में जो गिर ही नहीं सकता, तो जमीन को हुए चार अरब वर्ष हो गए और यह सूरज अब केवल | ही अविद्या से परे है। हम तो अज्ञान में गिरते हैं। थोड़ी जटिल चार हजार वर्ष और जीएगा। फिर क्या हिसाब! यह तो बुझ समस्या है। क्योंकि सभी के भीतर परमात्मा है, फिर भी हम अज्ञान जाएगा। लेकिन उदाहरण के लिए कृष्ण कहते हैं कि सूर्य की तरह में गिरते हैं। और परमात्मा अविद्या के परे है, जो अज्ञान में गिर ही जो प्रकाशवान है। पर उसमें फर्क जोड़ लेंगे, जो अनादि है, पहले नहीं सकता, फिर हम कैसे गिरते हैं? कह दिया है। उसका कभी अंत नहीं होगा, जो कभी चुकेगा नहीं, फिर उलझन बड़ी है। और शंकर से लेकर सारे तत्वज्ञ भारत के जो कभी समाप्त नहीं होगा। बड़ी पीड़ा में रहे कि कैसे सुलझाएं! बड़ी अड़चन की बात है। एक लेकिन हां, प्रकाशवान है। स्वप्रकाशी है। स्वयं ही प्रकाशित है। तरफ कहते हैं, सभी के भीतर परमात्मा है। स्वीकार! फिर दूसरी इसे थोड़ा खयाल में ले लें। तरफ कहते हैं, वह अविद्या से अति परे। वह अविद्या से पार है। जगत में दो तरह की चीजें हैं। दूसरों से प्रकाशित होने वाली; । वह कभी अज्ञान में गिर नहीं सकता। और हम सब अज्ञान में गिर और स्वयं प्रकाशित होने वाली। हम एक दीया जलाते हैं एक कमरे | रहे हैं! और हम सबके भीतर परमात्मा है। इस पहेली का क्या हो? में, तो कमरे की सारी चीजें दिखाई पड़ने लगती हैं। हम दीया बुझा यह पहेली हमारी बनाई हुई है; है नहीं। हममें से भी कोई भी देते हैं, कमरे की चीजें नहीं दिखाई पड़ती हैं। कमरे की चीजें दिखाई | कभी अज्ञान में गिरता नहीं। वस्तुतः गिरता नहीं। सिर्फ खयाल है, पड़ सकती हैं, अगर कोई दूसरा प्रकाश मौजूद हो। लेकिन क्या | सिर्फ खयाल। सिर्फ हमारी धारणा है। इसलिए जब कोई ज्ञान को आपको दीया जलाकर भी उस दीए को देखने के लिए दूसरा दीया उपलब्ध होता है, तो अज्ञान नहीं मिटता, सिर्फ अज्ञानी होने की लाना पड़ता है? नहीं, दीया स्व-प्रकाशित है। धारणा मिटती है। मुल्ला नसरुद्दीन एक रात सोया है। सर्द रात है। बहुत सर्दी है।। __ अज्ञान धारणा है ही। लेकिन धारणा की क्षमता है। प्रत्येक के उठने की हिम्मत उसकी पड़ती नहीं। लेकिन जल्दी नींद खल गई पास यह क्षमता है कि वह अपने को धोखा दे ले। अपने को धोखा है, तो अपने नौकर से कहता है कि महमूद, जरा बाहर देखकर आ | | देने की क्षमता है। हम अपने को धोखा दे सकते हैं। हम कह सकते कि सूरज निकला कि नहीं। महमूद भी कुड़मुड़ाया कि खुद की तो | हैं, मैं अज्ञानी हूं। मानता रहूं, अज्ञानी हूं। तो यह मान्यता इतनी बड़ी हिम्मत नहीं पड़ रही है बाहर जाने की और मुझे भेज रहा है बाहर! | शक्ति है मेरे भीतर कि मैं इस मान्यता को भी सही कर लूंगा। जो लेकिन मजबूरी थी। उठकर जरा-सा सरका। जरा दरवाजे से | इम्पासिबल है, जो असंभव है, वह भी संभव होता हुआ मालूम झांककर देखा। अंदर आकर कहा कि बहुत घनघोर अंधेरा है! | पड़ता है। विराट शक्ति छिपी है भीतर। अगर मैं मान लूं कि मैं नसरुद्दीन ने कहा, मूर्ख, अगर अंधेरा है, तो दीया ले जाकर क्यों | अज्ञानी हूं, तो मैं अज्ञानी हो जाऊंगा।। नहीं देख लेता, सूरज निकला या नहीं! अगर मैं मान लूं कि मैं अंधा हूं, पूरी सामर्थ्य से, तो आंखें इसी सूरज देखने के लिए अगर दीया ले जाकर देखना पड़े, तो वक्त रोशनी खो दें। अगर मैं मान लूं कि मैं लंगड़ा हो गया, तो इसी फैसला है। दीया स्वयं प्रकाशित है। लेकिन फिर भी दीए में ईंधन | वक्त मेरा पैर लंगड़ा हो जाएगा। मानना! और विराट शक्ति है की जरूरत पड़ती है, तेल की जरूरत पड़ती है। दीया इंडिपेनडेंट | | भीतर, और मानने के लिए चेतना स्वतंत्र है। नहीं है, स्वतंत्र नहीं है; परतंत्र है। । यह हमारी मान्यता है कि हम अज्ञानी हैं। बडा मजेदार है। इधर परमात्मा ऐसा प्रकाश है, जो स्वयं प्रकाशित है, स्वतंत्र है, | | अज्ञानी की मान्यता कर लेते हैं, फिर ज्ञान की तलाश में निकलते किसी चीज पर निर्भर नहीं है; प्रकाश रूप है। हैं। फिर ज्ञान इकट्ठा करते हैं। फिर ज्ञान इकट्ठा करके अज्ञानी के
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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