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________________ * स्मरण की कला मत जाना। जगह-जगह संतरी नहीं खड़े किए हैं कि देखो, यह का उपाय नहीं। उसके नीचे और कोई जाने का उपाय नहीं है। दि भटक न जाए। नियम है कि पानी नीचे की तरफ बहता है। बस। | एबिस, गहराई, आखिरी, अतल। जिसे हम स्थूल कहते हैं, उससे वह नियम खड़ा है। नदी सूख जाए, तब भी नियम उस सूखी रेत | | बिलकुल भी पकड़ में न आने वाला। में पड़ा है। नदी बिलकुल सूख मई है। पानी बिलकुल नहीं है। तब लेकिन हम उसकी कल्पना भी नहीं कर सकते, क्योंकि कल्पना परमात्मा को उठा लेना चाहिए वहां से अपना कैंप। हटो, उखाड़ो | | भी हम केवल स्थूल की कर सकते हैं। उसकी कल्पना भी नहीं हो तंबू, अब यहां कोई जरूरत नहीं। लेकिन उस सूखी नदी की धार | सकती। उसकी सिर्फ प्रतीति हो सकती है। उसका सिर्फ एहसास में भी नियम तैयार है। जब भी वर्षा होगी, पानी आएगा, नियम | | हो सकता है। अनुभव कहीं थोड़ा-सा स्पर्श ले सकता है। सक्रिय हो जाएगा। नदी नीचे की तरफ बहने लगेगी। सूर्य के सदृश प्रकाश रूप। नियंता का अर्थ है, नियम। परमात्मा नियम है। और इसीलिए कितनी कमजोर भाषा आदमी की है। सूर्य बेचारा क्या है! और सर्वनियंता है। इसका जो स्मरण करे...। सूर्य के सदृश बताकर हम क्या बता रहे हैं? जैसे कोई कहे कि सूक्ष्म से भी अति सूक्ष्म! हमारे घर में जो रात में हम चिमनी जलाते हैं, एक दीया जलाते हैं, आदमी की भाषा बड़ी कमजोर है। कृष्ण के पास भी वही | उस दीए के सदृश। तो आप कहेंगे, तू पागल है। दीए के सदृश कमजोर भाषा है, जो कमजोर से कमजोर आदमी के पास है। उनको | | बता रहा है परमात्मा को! एक फूंक मार दें, तेरा दीया बुझ जाए! भी कहना पड़ता है, सूक्ष्म से भी अति सूक्ष्म। फिर भी कोई हल तो लेकिन सूर्य हमें बहुत बड़ा मालूम पड़ता है। लेकिन ज्योतिषियों होता नहीं। और भी आगे कह सकते हैं, सूक्ष्म से भी अति सूक्ष्म, | | से पूछे। वे कहते हैं, हमारा सूर्य, जस्ट ए मीडियाकर स्टार, एक अति सूक्ष्म से भी अति सूक्ष्म, अति सूक्ष्म से भी अति सूक्ष्म, तो भी | | बहुत छोटा-सा तारा है, कुछ खास नहीं है। इससे हजार-हजार, कोई हल नहीं होता। दस-दस हजार, साठ-साठ हजार, लाख-लाख गुने बड़े सूर्य हैं। यह कृष्ण को ऐसा क्यों कहना पड़ता है, सूक्ष्म से भी अति | यह बेचारा क्या है! यह कुछ भी नहीं है। ऐसे बहुत बड़ा है। हमारी सूक्ष्म! इसीलिए कहना पड़ता है कि सूक्ष्म शब्द भी बहुत स्थूल है। जमीन से तो कोई साठ हजार गुना बड़ा है। इसलिए बहुत बड़ा है। हम किसी चीज को कहते हैं, बहुत सूक्ष्म, लेकिन फिर भी वह होती। और हमारे दीए से तो बहुत ही बड़ा है। लेकिन कहीं कोई महासूर्य तो है ही। हम कहते हैं, बाल बहुत सूक्ष्म है, लेकिन बाल है तो ही। हैं, जिनके सामने यह हमारे दीए से भी छोटा है। काफी मोटा है, अंगुली में पकड़ा जा सकता है; स्थूल है। लेकिन फिर भी आदमी की भाषा कमजोर है। कृष्ण जैसे आदमी अगर अणु के बाबत हम पूछे, तो वैज्ञानिक कहते हैं, एक लाख की भी भाषा कमजोर है। उसका कारण है कि भाषा ही कमजोर है, अणुओं को हम एक के ऊपर एक रखें, तो एक बाल की मोटाई के | आदमी क्या करे। वह जो भी भाषा उपयोग करे, वह कमजोर है। बराबर होते हैं। अति सूक्ष्म; लेकिन फिर भी होते तो हैं। और एक | सिर्फ एक इशारा कि सूर्य के सदृश प्रकाश रूप। लाखवां हिस्सा हुआ, तो भी क्या फर्क पड़ता है। बाल का लाखवा नहीं, यह इशारा भी बिलकुल ठीक नहीं पड़ता। लेकिन उपाय हिस्सा हुआ, तो भी स्थूल तो है। | नहीं, कमजोर ही है। यह सूर्य भी बुझ जाएगा। यह ज्यादा दिन इसलिए कृष्ण को कहना पड़ता है, सूक्ष्म से भी अति सूक्ष्म। | चलने वाला नहीं है। इसका ईंधन चुका जाता है। वैज्ञानिक कहते असल में उसे बताने के लिए हमारे पास कोई सूक्ष्म शब्द नहीं | हैं, चार हजार साल और ज्यादा से ज्यादा। इस सूरज के बुझने की है। हमारे सूक्ष्म का भी अर्थ केवल मात्रा का भेद होता है। हाथी के | घड़ी करीब आ रही है। और चार हजार साल कोई बहुत लंबा वक्त सामने चींटी को रखकर हम कहते हैं, बहुत सूक्ष्म। बस। लेकिन नहीं है सूर्यों के हिसाब से, क्षणभर का है। चींटी के सामने और सूक्ष्म चीजें रखी जा सकती हैं और चींटी बड़ी - इस जमीन को बने कोई चार अरब वर्ष हो गए। यह सूरज इससे हो जाएगी और चीजें छोटी हो जाएंगी। बहुत पुराना है। यह जमीन बहुत नई है। वैज्ञानिक कहते हैं, अगर लेकिन जब हम भगवान को, परमात्मा को कहते हैं, सूक्ष्मतम, | हम ऐसा समझें कि एक हजार पृष्ठ की कोई किताब हो, उसे हम तो उसका अर्थ यह है कि उससे ज्यादा सूक्ष्म फिर और कुछ भी नहीं | | सूरज की उम्र मान लें, तो जमीन की उम्र एक पृष्ठ के बराबर है। है। दि अल्टिमेट, आखिरी, अंतिम, उसके नीचे और कुछ गिरने और अगर जमीन की उम्र को हम एक पृष्ठ मान लें, तो उस पृष्ठ
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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