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________________ गीता दर्शन भाग-4* के हार्न बजे, ब्रेक लगे, बसें रुक गईं, घबड़ाहट फैल गई, क्योंकि नसरुद्दीन अकड़कर बीच से चला जा रहा है, बीच रास्ते से। पुलिस वाले ने बहुत हाथ हिलाया रुकने के लिए, लेकिन वह नहीं रुका। पुलिस वाला पास आया और कहा कि महानुभाव, क्या आपको समझ में नहीं आता कि मैं हाथ हिला रहा हूं! नसरुद्दीन ने कहा, मुझे समझ में नहीं आएगा ! मैं तीस साल स्कूल में मास्टर रह चुका हूं। क्या पूछना है, पूछो? वह अपने स्कूल का अभ्यासी है। लड़के जब हाथ हिलाते हैं! बोला, क्या पूछना है, पूछो ! सड़क पर भी पीछा नहीं छोड़ते पूछने वाले लोग ! रेडीमेड है। उसे पक्का पता है कि जब कोई हाथ हिलाता है, उसका मतलब क्या होता है। कृष्ण कोई ऐसे उत्तर नहीं दे रहे हैं। कृष्ण जैसे व्यक्ति उत्तर देते ही नहीं । केवल प्रश्न को पी जाते हैं और उत्तर आता है। केवल प्रश्न को भीतर भेज देते हैं और परम शून्य से ध्वनि उठती है और लौट आती है। सर्वज्ञ है वह, इस अर्थ में कि वही है, सो जानता ही है। जानता ही है - क्या हुआ, क्या हो रहा है, क्या होगा। फिर भी इसका उसे कुछ भी पता नहीं है। क्योंकि पता केवल अज्ञानी को होता है। अनादि ! जो कभी प्रारंभ नहीं हुआ, जिसका कभी कोई जन्म नहीं हुआ, ,जो कभी शुरू नहीं हुआ, जो बस है, सदा से है। सबका नियंता । वह, सभी जिसके हाथ में है। सभी कुछ जिसके हाथ में है। चांद-तारे जिसकी अंगुलियों पर हैं। सभी कुछ। लेकिन नियंता शब्द से बड़ी भ्रांति हुई है। क्योंकि हम नियंता से एक ही अर्थ ले सकते हैं, सुप्रीम कंट्रोलर, जो सभी के ऊपर नियंत्रण कर रहा है। भूल हो जाएगी। क्योंकि नियंत्रण जब भी किया जाता है, तो दूसरे पर किया जाता है। लेकिन यहां तो उसके सिवाय कोई दूसरा है ही नहीं इसलिए नियंता का अर्थ कंट्रोलर नहीं है, नियंत्रण करने वाला नहीं है। नियंता का अर्थ है, नियम, दि ला । वही है। उसके अलावा तो कोई भी नहीं है। वही है । किसको नियंत्रण करेगा ? नियंत्रण उसे करना भी नहीं पड़ता। उसके जीवन की जो धारा है, जो नियम है, जिसे वेदों ने ऋत कहा, और जिसे लाओत्से ने ताओ कहा है, वही । वह अपने आप...। वही नियम है। उसके अतिरिक्त कोई भी नहीं है। इसलिए वह नियंता है। इसलिए नहीं कि वह हम सबकी गर्दन को पकड़े हुए चला रहा है कि चलो, तुम चोर बन जाओ। तुम बेईमान बन जाओ। तुम साधु बन जाओ। अब तुम्हारा काम खतम हुआ, चलो, लौटो वापस । अगर ऐसा वह कर रहा हो, तो कभी का पागल हो गया होता। हम जैसे इतने पागलों का नियंत्रण करते-करते कोई भी पागल हो सकता है। सुना मैंने कि इजिप्त का एक सम्राट पागल हो गया था। कोई उपाय न देखकर चिकित्सकों ने कहा, एक ही उपाय है। वह शतरंज का बड़ा खिलाड़ी था, तो कहा कि किसी बड़े खिलाड़ी को बुला लो और वह शतरंज खेलने में लगा रहे, तो शायद ध्यान लग जाए शतरंज में, तो पागलपन छूट जाए। सम्राट बड़ा खिलाड़ी था । तो बड़े से बड़े खिलाड़ी बुलाए गए। उसके साथ कोई खेलने को भी राजी नहीं होता था। पागल के साथ कौन खेलने को राजी हो ! लेकिन बहुत पुरस्कार था, बड़ा खिलाड़ी जो था, वह राजी हो गया। 42 सो सालभर, कहते हैं, खेल चलता रहा। थक जाता सम्राट, | जाता। उठता, फिर खेल शुरू हो जाता। सालभर बाद चिकित्सकों ने जो कहा था, वह सही निकला, सम्राट ठीक हो गया। लेकिन खिलाड़ी पागल गया। सालभर पागल के साथ खेलना पड़े शतरंज, तो आप समझते हैं क्या होगा ! इतने पागलों को अगर नियंत्रण कर रहा हो परमात्मा, तो कभी | का पागल हो चुका होगा। और उसके इलाज का भी उपाय नहीं है. फिर । नहीं, नियंत्रण, कोई कांशस कंट्रोल नहीं है कि एक-एक आदमी को चला रहा है पकड़-पकड़कर । नियंता का अर्थ है, वह नियम है। नियम का क्या अर्थ होता है, वह खयाल ले लें। आप रास्ते पर चल रहे हैं। आपने तिरछा पैर रख दिया, धड़ाम से जमीन पर गिरे और सिर टूट गया। वैज्ञानिक से पूछें, क्या हुआ ? वह कहेगा, ग्रेविटेशन, जमीन की कशिश का फल है। इस | जमीन ने तुमको पटका। जमीन अगर ऐसा पटकती रहे, तो बड़ी कठिनाई होगी जमीन को भी। और कहां-कहां दौड़ना पड़े दिनभर, रातभर । कौन कहां गिर रहा है! तिरछा चल रहा है! नहीं। ग्रेविटेशन कोई आपको गिराने | नहीं आता। ग्रेविटेशन मौजूद है; नियम है वह। जमीन की कशिश | मौजूद है। आप तिरछा पैर रखते हैं, अपने आप गिर जाते हैं। जमीन | को पता भी नहीं चलता कि उसने किसी को गिराया। वह नियम है। पानी बहा जा रहा है सागर की तरफ। अब कोई परमात्मा एक-एक नदी को धकेल नहीं रहा है कि चलो, यह रहा रास्ता। चूक
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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