SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 67
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ * स्मरण की कला * कृष्ण कहते हैं, अन्य की तरफ जरा भी चित्त गया, तो ध्यान नहीं | कुछ भी पता नहीं है, कम से कम इतना मुझे पता है। और कुछ भी है। और अगर अन्य की तरफ चित्त न जाता हो, अनन्य रूप से मेरी | मुझे पता नहीं है, यह बहुत एब्सोल्यूट बात है। जैसे कोई कहे, सब ही तरफ लग जाता हो, या परम दिव्य पुरुष की तरफ लग जाता हो, | कुछ मुझे पता है। ऐसा ही कोई कहे, कुछ भी मुझे पता नहीं है, यह तो परमेश्वर प्राप्त होता है। इससे जो पुरुष सर्वज्ञ, अनादि, सबके | दूसरी सीमा पर पूर्ण घोषणा है। नियंता. सक्ष्म से भी सक्ष्म, सबके धारण-पोषण करने वाले, क्या किया जाए ? क्या उनको कहा जाए, मुझे कुछ-कुछ पता है अचिंत्य स्वरूप, सूर्य के सदृश प्रकाश रूप, अविद्या से अति परे | और कुछ-कुछ पता नहीं है! अगर ऐसा कहा जाए, तो भी बड़ी परमात्मा को स्मरण करता है, वही परमात्मा को उपलब्ध होता है। लाजिकल फैलेसी हो जाती है। क्योंकि तब पूछा जा सकता है, इसमें कुछ बातें कहीं, जो हम समझें। कुछ-कुछ क्या पता है और कुछ-कछ क्या पता नहीं है? और एक, जो पुरुष सर्वज्ञ है। इस जगत में कोई कितना भी जानता | जिसका मुझे पता नहीं है, उसका भी इतना तो मुझे पता है ही कि हो, तो भी अल्पज्ञ ही होगा। कोई कितना ही जान ले, जानने को मुझे पता नहीं है। उनको क्या उत्तर दिया जाए? और वे कहते हैं, सदा शेष रह जाता है। कोई कितना ही जान ले, जानना चुक नहीं हां या न में सीधा जवाब दें! पाता है। देयर इज़ नो एंड टु नोइंग। हो भी नहीं सकता। इसलिए शायद परमात्मा आपके सामने आने से इसीलिए डरता है कि कोई भी कितना भी जान ले, वह जानना पूर्ण नहीं है। अगर जानना | | आपके सवालों का जवाब उसके पास नहीं होगा। कहीं भी पूर्ण होगा, तो वह परमात्मा के अंतस्तल में होगा। जैसे-जैसे कोई लीन होता है परम सत्ता में, वैसे-वैसे कुछ भी निश्चित ही, वह सभी कछ जानता होगा, जो जाना जा सकता पता नहीं रह जाता, न ज्ञान का और न अज्ञान का। है। लेकिन उसे यह बिलकुल पता नहीं हो सकता कि मैं सब कुछ यही मैं उन मित्र को कहा था, तो वे कहने लगे, लेकिन जब हम जानता हूं। क्योंकि जिसे यह पता है कि मैं सब कुछ जानता हूं, आपसे कुछ पूछते हैं और जब आपको कुछ भी पता नहीं-न ज्ञान उसके भी जानने की सीमा है। इसलिए परमात्मा सर्वज्ञ है, आल | का, न अज्ञान का-तो आप उत्तर कैसे देते हैं? क्योंकि हम सबको नोइंग है, फिर भी उसे कोई पता नहीं कि मैं सब कुछ जानता हूं। | खयाल है कि उत्तर बंधे-बंधाए पहले से ही मौजूद रहते होंगे। सब कुछ जानने का पता भी अज्ञानी का ही बोध है। आपने पूछा, उसके पहले उत्तर रेडीमेड रहते होंगे, जैसे दुकान में इसलिए अगर कभी कोई जमीन पर घोषणा करता है कि मैं सर्वज्ञ | पैकेट बंद रखे हुए हैं चीजों के। आप कहे कि मुझे फलां चीज है. तो वह इस बात की घोषणा करता है कि उसके भी जानने की चाहिए, दुकानदार ने पैकेट निकाला और आपको दे दिया। जिन्हें सीमा है। वह भी अल्पज्ञ है। वह भी अज्ञानी है। सिवाय अज्ञानी के हम पंडित कहते हैं, उनके पास ऐसे ही रेडीमेड पैकेट तैयार होते अतिरिक्त कोई सब कुछ जानने की घोषणा नहीं करता है। | हैं। आपने पूछा; उन्होंने दुकान से निकाला, आपको दे दिया। . लेकिन जो उस सब कुछ जानने वाले का स्मरण करता है, वह लेकिन जो व्यक्ति जैसे-जैसे प्रभु में लीन होगा, वैसे-वैसे उसे धीरे-धीरे उसके साथ एक होता चला जाता है। और एक घड़ी ऐसी कुछ भी पता नहीं होता और न कुछ भी न-पता होता है। आप पूछते आती है उस एक हो जाने की, जब खुद को भी पता नहीं रहता कि हैं; उत्तर आता है, दिया नहीं जाता है। ऐसे ही जैसे कोई जाकर मैं कुछ जानता हूं या नहीं जानता हूं। किसी निर्जन, वीरान-सी घाटी में जोर से आवाज करे और पर्वत एक मित्र मुझे पत्र लिखे हैं और पूछे हैं कि क्या आपको सब | उसकी आवाज को प्रतिध्वनित कर दे। ऐसे ही जैसे किसी दर्पण के कुछ पता है? सामने कोई जाकर खड़ा हो जाए और दर्पण उसकी आकृति को __ मैं उन्हें दो ही उत्तर दे सकता हूं। या तो कहूं, हां, सब कुछ पता | प्रतिछवित कर दे। है जो कि अज्ञानी का सिद्ध सूत्र है। या मैं उन्हें कहूं कि मुझे कुछ __ कृष्ण भी जो उत्तर दे रहे हैं अर्जुन को, वे कोई उत्तर नहीं हैं। उस भी पता नहीं है—जो कि ज्ञानी अक्सर कहते रहे हैं। लेकिन मुझे | अर्थ में उत्तर नहीं हैं, जैसे स्कूल के अध्यापक और बच्चों के बीच उसमें भी घोषणा दिखाई पड़ती है। होते हैं; वैसी कोई बंधी रेडीमेड बात नहीं है। यदि मैं कहूं, मुझे कुछ भी पता नहीं है, तो भी मैं कुछ पता होने | मुल्ला नसरुद्दीन पहली दफा अपने देश की राजधानी में गया की घोषणा दे रहा हूं और बहुत सुनिश्चित घोषणा दे रहा हूं कि मुझे हुआ था। पहली दफा रास्ते से गुजर रहा था। अचानक जोर से कारों
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy