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________________ * गीता दर्शन भाग-4* पूछो, कितनी नहीं लेते-पांच? दस? पंद्रह? पचास? सौ? एक | भी चाहिए। और इतना सन्नाटा है वहां कि कभी कोई वाणी ही नहीं जगह लिमिट आ जाएगी। वह कहेगा, बस ठहरो। क्या देने का | | उठती, तो मैं तो घबड़ा जाऊंगा। और फिर वहां से लौटने का भी इरादा है! सीमा है। एक आदमी कहता है, मैं चोरी बिलकुल नहीं | कोई उपाय नहीं है। करता। फलां आदमी के घर गया; दस रुपए का नोट पड़ा था; | रसेल कहता था, वहां जो गया, सो गया। यह तो मौत हो मैंने नहीं उठाया। पूछो उससे, दस हजार का पड़ा होता? तो वह | | जाएगी, मोक्ष न होगा। लौट नहीं सकते। मोक्ष में एक ही दरवाजा कहेगा, एक दफे सोचने का फिर से मौका दें। सीमा है। वैसे कोई है एन्ट्रेस का, प्रवेश का। निकास का, एक्जिट का कोई दरवाजा फर्क नहीं पड़ता। नहीं है। तो जो गए, सो गए। तो रसेल कहता था, ये लोग कहते इसलिए भलाई अगर कीमत से मिलती हो, तो बुराई कभी भी | | हैं कि वह परम मुक्ति है, मुझे लगता है, वह तो परम बंधन हो ली जा सकती है। इसलिए जिन लोगों को भी भला होने के लिए | गया। वहां से निकलने का उपाय नहीं है। नरक से निकल सकते पुरस्कार दिए जाते हैं, उनके भले होने में सदा संदेह रहेगा। वे कभी हैं। और नरक में बड़ा परिवर्तन है। चौबीस घंटे उपद्रव चल रहे हैं। भी बुरे हो सकते हैं। भलाई तो वही है, जो बिना पुरस्कार के हो। | जितना उपद्रव वहां है, उतना तो यहां भी नहीं है। लेकिन उस भलाई को हम जानते नहीं। रसेल ठीक कह रहा है। लेकिन बात मुद्दे की है। नसरुद्दीन ने बड़ी कोशिश की भले रहने की। पांच रुपए का अगर आप परिवर्तन के बहुत आकांक्षी हैं, तो आप ध्यान में सवाल था। घड़ी-घंटे की बात थी। आखिर मां-बाप आ गए। प्रवेश नहीं कर सकते। आखिर जब आप ध्यान में बैठते हैं, तो देखे तो बड़े हैरान हुए कि वह घर के भीतर एक कमरे से दूसरे | आपका मन करता क्या है? एक विचार देता है, फिर दूसरा देता है, कमरे में गोल चक्कर लगा रहा है। पूछा उसके पिता ने कि फिर तीसरा देता है। वह दिए चला जाता है विचार। वह कहता है, नसरुद्दीन, यह तू क्या कर रहा है? और हमने कहा था कि भले घबड़ाओ मत, ऊबो मत। मैं तुम्हें नई-नई चीजें दे रहा हूं। रहने की कोशिश करना। और आप पूछते हैं कि ध्यान कैसे लगे? ध्यान उसी दिन लगेगा, तो नसरुद्दीन ने कहा कि मैंने कोशिश की, आई वाज़ गुडर दैन | | जिस दिन आप ऊबने के लिए तैयार हों, और ऊबें न। एक फूल गुड, बट देन आई कुडंट स्टैंड माइसेल्फ। मैं अच्छे से भी अच्छा को आप देख रहे हैं। देखे चले जा रहे हैं। बदलने की कोई इच्छा हो गया और तब अपने को ही सहना मश्किल हो गया। यह मैं सिर्फ नहीं है। तो ठीक है। देखे जा रहे हैं। देखे जा रहे हैं। देखे जा रहे अपने से भागने, अपने से बचने के लिए भाग रहा हूं एक कमरे से | हैं। पहले मन ऊबेगा। वह कहेगा, क्या एक ही फूल को देखे जा दूसरे कमरे में। जस्ट टु एस्केप फ्राम माइसेल्फ, अपने ही से बचने रहे हो, बदलो अब। अगर आपने फूल न बदला, तो मन कहेगा, के लिए भाग रहा हूं। इतना अच्छा हो गया मैं कि खुद को ही सहना न बदलो फूल, हम भीतर विचार बदलते हैं। लेकिन कुछ न कुछ मुश्किल हो गया! बदलो। लेकिन आपने कहा, कुछ न बदलेंगे। यह फूल है और मैं अच्छाई भी हो जाए बहुत, तो ऊब पैदा कर देती है। हर चीज से हूं, और बस काफी है। हम ऊब जाते हैं। और परमात्मा तो एकरस है। ध्यान का केवल अगर आप घड़ी दो घड़ी एक फूल के पास भी रोज इस तरह बैठ एक ही अर्थ है, एकरसता से न ऊबने का अभ्यास। ध्यान का अर्थ | जाएं, एक दिन आप पाएंगे कि ध्यान की झलक आपको आनी शुरू है, एकरसता से न ऊबने का अभ्यास। हो गई। फिर ऊब नहीं आती। फिर आप एक चीज के साथ होने को बड रसेल ने मजाक में कहीं कहा कि मैं मरकर नरक भी जाने | | राजी हो गए। और जो व्यक्ति एक चीज के साथ चौबीस घंटे होने को तैयार है, लेकिन हिंदुओं और बौद्धों के मोक्ष में जाने को तैयार को राजी है, वही प्रभ का स्मरण कर सकता है। क्योंकि वह स्मरण नहीं हूं। क्यों? क्योंकि उसने कहा कि मोक्ष में तो बड़ी ऊब पैदा हो तो बदला नहीं जा सकता, वह तो प्रभु एक ही है; चारों तरफ जाएगी। वहां तो सब एकरस है। आनंद है, तो आनंद ही आनंद है।। एकरस है। उसका एक ही स्वाद है। वहां कभी दुख पैदा ही नहीं होता। तो आनंद से ऊब जाऊंगा। इतना बुद्ध कहते थे, जैसे नमक; सागर में कहीं भी चखो और नमकीन आनंद कैसे सहूंगा! आनंद ही आनंद! बीच में कोई कड़वा स्वाद | है स्वाद। ऐसा ही प्रभु को कहीं से चखो, वह बिलकुल एकरस है, ही न आता हो, तो मिठाई भी उबाने वाली हो जाती है। तो तिक्त एकस्वाद है।
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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