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*स्मरण की कला
करके बैठा नहीं कि पानी की धार की सरसराहट में इसके भीतर भी | | के साथ ज्यादा देर रहने की क्षमता नहीं है। मन प्रतिपल नए को कोई तरंग पैदा हो जाए।
खोजता है। नया मकान बना लें; दो-चार-आठ दिन में ही पुराना नहीं, इस आदमी ने कुछ भी नहीं जाना। इसने तिजोरी भरी | | पड़ जाता है। मन कहता है, अब कोई और दूसरा नया बनाओ। नए होगी। इसने कपड़े इकट्ठे किए होंगे। इसने मकान बनाया होगा। | कपड़े पहन लें; चार दिन बाद मन फिर दुकानों के सामने ठिठककर लेकिन इसकी संवेदना का कोई द्वार नहीं खुल पाया है। तो इसलिए रुकने लगता है, कि मालूम होता है, नए फैशन के कपड़े फिर अब यह पूछता है कि समर्पण कैसे? कैसे झुक जाऊं? कैसे सिर बाजार में आ गए। नवाऊं? गर्दन अकड़ गई है, पैरालाइज्ड हो गई है। अकड़े-अकड़े, ___ मन नए की तलाश करता है। क्यों? क्योंकि अगर एक ही चीज चौबीस घंटे अकड़े-अकड़े गर्दन बिलकुल अकड़ गई है। झुकती | | के साथ मन को रहना पड़े, तो मन के लिए गति नहीं मिलती, नहीं है; झुक नहीं सकती।
| इसलिए मन ऊब जाता है। कहता है, नया लाओ। तो कृष्ण कहते हैं, मेरे में अर्पण किए हुए मन-बुद्धि से युक्त | लेकिन परमात्मा तो नया लाया नहीं जा सकता। इसलिए जो हुआ निस्संदेह मुझे पा लेता है। और हे पार्थ, ध्यान के अभ्यास | | नए की निरंतर खोज में लगा है, वह परमात्मा के साथ रुक न रूपी योग से युक्त अन्य तरफ न जाने वाले चित्त से निरंतर चिंतन | पाएगा। परमात्मा के साथ तो वही रुक सकता है, जो उस अभ्यास करता हुआ पुरुष परम दिव्य पुरुष को, परमेश्वर को प्राप्त होता है। | में आ गया, जहां ऊब पैदा ही नहीं होती है, जहां बोर्डम पैदा ही
अभ्यास रूप योग से ध्यान को प्राप्त हुआ और अन्य की तरफ नहीं होती है। न जाता हुआ!
__ आदमी को अधार्मिक बनाने वाली अगर कोई एक गहरी से कोई अन्य परमात्मा तो है नहीं, परमात्मा तो एक है। इस्लाम | | गहरी चीज है, तो वह बोर्डम है, वह ऊब है। हर चीज से ऊब जाता ठीक कहता है कि सिवाय अल्लाह के और कोई अल्लाह नहीं है। | है मन। एक पत्नी से ऊब जाता है, एक पति से ऊब जाता है। एक देयर इज़ नो गॉड एक्सेप्ट दि गॉड, ईश्वर के सिवाय और कोई | | घर से ऊब जाता है, एक मित्र से ऊब जाता है। एक धंधे से ऊब ईश्वर नहीं। ठीक कहता है। एक ही है वह।
जाता है। हर चीज से ऊब जाता है। और कहता है, और कुछ तो अन्य तो कोई ईश्वर नहीं है। इसलिए जब कृष्ण कहते हैं कि | लाओ, और कुछ लाओ। वह कहता ही चला जाता है कि और कुछ जिसका ध्यान सतत मुझमें ही अभ्यासरत हुआ है और मेरे अतिरिक्त | लाओ। उसकी मांग है, और! और! और चीज में वह कहे चला
अन्य की तरफ नहीं जाता, तो इसका आप यह मतलब मत समझना जाता है, और कुछ लाओ। दौड़ाता रहता है। अपने से ही ऊब जाता कि कृष्ण कहते हैं, बुद्ध की तरफ नहीं जाता, महावीर की तरफ नहीं | है। इसलिए कोई आदमी अपने साथ रहने को राजी नहीं है। अपने जाता, राम की तरफ नहीं जाता। भक्तों ने ऐसे-ऐसे गलत अर्थ | से ही घबड़ा जाता है! निकाले हैं, जिसका हिसाब लगाना मुश्किल है। कृष्ण-भक्त सोचता सुना है मैंने, मुल्ला नसरुद्दीन जब छोटा-सा बच्चा था, तो है कि अगर राम की तरफ गया, तो अन्य की तरफ गया। अगर बुद्ध | उसके मां-बाप एक दिन उसे घर छोड़कर गए हैं किसी शादी में। की तरफ गया, तो अन्य की तरफ गया। कृष्ण ने तो साफ कहा है, | | ले जाना संभव न था; शैतान था लड़का। तो कहा उसे कि हम ताला अनन्य रूप से मेरी तरफ, अन्य की तरफ नहीं।
लगा जाते हैं बाहर। अगर तू भली तरह व्यवहार किया, अगर घर लेकिन भूल है समझ की। परमात्मा तो एक ही है। उसे कोई राम | | में तू शांति से रहा और अच्छा साबित हुआ, तो लौटकर हम तुझे कहे, और कोई रहीम कहे, और कोई कृष्ण कहे, और कोई कुछ | पांच रुपए देने वाले हैं। और कहे। परमात्मा तो एक ही है। यहां अन्य से क्या अर्थ है? क्या | पांच रुपए के लोभ में नसरुद्दीन ने भले रहने की कोशिश की, और परमात्मा भी हैं, जिनकी तरफ से बचा लो अपने को? और | | जैसा कि हम सभी लोग किसी लोभ में भले रहने की कोशिश करते कोई परमात्मा नहीं है। फिर किससे बचाने को कहते होंगे? | हैं। और इसीलिए अगर ज्यादा बड़ा लोभ मिल जाए बुरा होने के
कृष्ण इतना ही कह रहे हैं कि सवाल परमात्मा का नहीं है। लिए, तो तत्काल बुरे हो जाते हैं। यह सवाल सब लोभ का है। तो लेकिन आदमी के मन में हजार-हजार चीजों की तरफ दौड़ने की हर आदमी की भलाई की कीमत है। वृत्ति है। हजार-हजार चीजों की तरफ दौड़ने की वृत्ति है। और एक एक आदमी कहता है कि मैं रिश्वत बिलकुल नहीं लेता। उससे
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