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________________ * गीता दर्शन भाग-42 धुंधर बजते हैं भीतर कहीं। उनके पैर कंपते हैं। फिर वे आंख अंतरतम की बातें, तो हमारी नासमझी है। हम जिससे पूछ रहे हैं, खोलकर अपने को सम्हालकर खड़े हो जाते हैं! प्रतिपल आप उसे पता ही नहीं है। लेकिन जिसे कुछ भी पता नहीं है, वह भी अनुभव करेंगे, हृदय अंकुर भेजना चाहता है, लेकिन बुद्धि उसे जवाब तो देने में कुशल होता ही है। तत्काल दबा देती है। __ अक्सर तो ऐसा होता है, जिन्हें कुछ भी पता नहीं होता, वे जवाब इसलिए कृष्ण कहते हैं, मन-बुद्धि से युक्त हुआ। देने के लिए बड़े आतुर होते हैं। कभी-कभी जिन्हें पता होता है, वे मन भी कहे हां और बुद्धि भी कहे हां, तो ही दोनों के बीच | | जवाब देने से रुक भी जाते हैं; लेकिन जिनको पता नहीं होता, वे तालमेल निर्मित हो जाता है। दोनों के बीच सेतु बन जाता है। और | बहुत जल्दी जवाब दे देते हैं। शायद इसीलिए कि कहीं झिझकें, तो उस सेतु के बंधे हुए क्षण में ही व्यक्ति पूरा का पूरा प्रभु को स्मरण | पता न चल जाए कि पता नहीं है। जल्दी जवाब दे देते हैं। कर पाता है। बुद्धि बड़े जल्दी जवाब दे देती है। अगर आप बुद्धि से ही पूछते ___ कैसे यह होगा? अगर बुद्धि की ही सुनते रहे, तो यह कभी न | चले गए, तो परमात्मा की कोई सन्निधि, कोई सुगंध, कोई संगीत, होगा। क्योंकि बुद्धि बहुत ऊपरी बात है। कभी नहीं मिल सकेगा। जरा बुद्धि को हटाएं और भीतर के हृदय अगर कोई सागर अपनी लहरों की ही मानता चला जाए, तो | | से पूछे। हां, बुद्धि का उपयोग करें। हृदय की आवाज हो; बुद्धि उसके अंतरगर्भ में छिपे हुए मोतियों के ढेर का उसे कभी भी पता | | का उपयोग हो। हृदय से पूछे कि क्या करना है; और फिर बुद्धि से न चल सकेगा। क्योंकि लहरों को मोतियों की कोई भी खबर नहीं | पूछे कि कैसे करना है। तब, तब बुद्धि और हृदय में एक सुसंगति है। और लहरों से अगर पूछेगा कि क्या भीतर मोती हैं? तो लहरें बन जाती है। कहेंगी, पागल हो। भीतर कुछ भी नहीं है। क्योंकि लहरें! लहरें इसे ठीक से समझ लें। सदा ऊपर हैं। उन्हें भीतर का कुछ भी पता नहीं है। लहरें कहेंगी, हृदय से पूछे लक्ष्य, बुद्धि से पूछे साधन। हृदय से पूछे अंतिम मोती! नासमझ हो। कभी-कभी सूखे पत्ते बहते हुए जरूर आ जाते सिद्धि, बुद्धि से पूछे पहुंचने का मार्ग। हमेशा हृदय से पूछे कि क्या हैं। कचरा-कबाड़ जरूर कभी-कभी लहरों पर आ जाता है। उन्हीं | | चाहिए और बुद्धि से पूछे कि यह चाहिए, अब इसे पाने के लिए को लहरों ने जाना है; मोतियों की गहराइयों का उन्हें कुछ भी पता | क्या करना है। बुद्धि मैथडॉलाजी दे सकती है, विधि दे सकती है, ' नहीं। अगर सागर लहरों की माने, तो अपनी ही संपदा से वंचित मार्ग दे सकती है। लेकिन बुद्धि कभी लक्ष्य नहीं देती। और हम सब हो जाता है। | बुद्धि से लक्ष्य पूछकर भटक जाते हैं। हम भी अपनी बुद्धि की लहरों की-बुद्धि बहुत ऊपरी सतह है। ___ इसे ऐसा समझें तो बहुत आसान हो जाएगा। बुद्धि का जो चरम बुद्धि हमारी वह सतह है मन की, जिससे हम जगत के साथ संबंध | | विकास है, वह विज्ञान में हुआ है। हृदय का जो चरम विकास है, स्थापित करते हैं। बुद्धि ठीक वैसी है, जैसे किसी राजमहल के द्वार वह धर्म में हुआ है। पर कोई पहरेदार बैठा हो। वह पहरेदार बाहर के जगत और | अगर विज्ञान से पूछे कि हम किसलिए जीते हैं, तो विज्ञान राजमहल के बीच में है। | कहेगा, हमें पता नहीं। अगर विज्ञान से पूछे कि हम किस तरह जीएं लेकिन अगर हम, घर का मालिक भी, सम्राट भी पहरेदार से ही कि ज्यादा जी सकें, स्वस्थ जी सकें, तो विज्ञान रास्ता बता देगा। पूछने लगे कि इस महल के भीतर कुछ है? तो पहरेदार कहेगा, | | अगर विज्ञान से आपने पूछा कि जीवन का लक्ष्य क्या है, तो विज्ञान वहां क्या रखा है! जो कुछ है, यहां मेरे इस स्टूल पर बैठे रहने में | कहेगा, हमें कुछ पता नहीं है। है। यहीं; सारा जगत यहीं है। और मेरे पास आए बिना कभी कोई | | आइंस्टीन मरते वक्त पीड़ित था कि मैंने भी अणुबम के बनने में भीतर नहीं गया। इसलिए भीतर अगर कभी कुछ जाएगा भी, तो सहायता दी है। लेकिन मुझे यह पता ही नहीं था कि तुम क्या मेरे पास से गुजरकर ही जाएगा। अब तक तो मैंने कोई खजाना | | उपयोग करोगे। हम तो केवल इतना ही बता सकते थे कि अणुबम भीतर जाते नहीं देखा। कोई खजाना-वजाना भीतर नहीं है। कैसे बन सकता है। तुम क्या करोगे, यह हमने सोचा भी नहीं था! बुद्धि सिर्फ पहरा है, बाहर के जगत से हमारा संबंध है सुरक्षा विज्ञान बता नहीं सकता कि क्या करो। धर्म ही बता सकता है का, सिक्योरिटी मेजर है। लेकिन जब हम उसी से पूछने लगते हैं कि क्या करो। विज्ञान बता सकता है कि कैसे करो, दि हाउ, कैसे! 36
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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