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* मृत्यु-क्षण में हार्दिक प्रभु-स्मरण *
क्लास के डिब्बे में होता है हर स्टेशन पर। हर स्टेशन पर ऐसा | न होती हों, तो बहुत ही अच्छा। किसी ऐसे प्रेम में उतरना। लगता है कि अब क्या होगा! इतनी भीड़, अब कहां बैठेगी? इतना इसलिए अक्सर यह होता है, अक्सर यह होता है कि जिनके प्रेम सामान लिए कहां अंदर चले आ रहे हो? लेकिन पांच मिनट गाड़ी विराट होते हैं, वे अक्सर परमात्मा के बहुत निकट हृदय की चली, एडजस्टेड! सब सामान रख गया, सब लोग बैठ गए। बड़े धड़कन को अनुभव करने लगते हैं। मजे का है। और ये ही फिर अगले स्टेशन पर चिल्ल-पों मचाना अब एक चित्रकार है, वह सौंदर्य को प्रेम करता है। सौंदर्य का शुरू कर देंगे। और हर स्टेशन पर यही होता रहा है। इसलिए हिंदी | | प्रेम जरा असीम है। वह जल्दी ही हार्दिक स्मरण को पा सकता है। में जो शब्द है रेलगाड़ी के कंपार्टमेंट के लिए डब्बा, वह बिलकुल | एक राजनीतिज्ञ उतनी आसानी से नहीं पा सकता। उसका प्रेम बहुत ठीक है। डब्बा! कुछ भी हिला-डुलाकर बिठाल दो, बैठ जाता है। सीमित और बहुत क्षुद्र है।
मृत्यु के साथ यह नहीं चलेगा; अभ्यास नहीं चलेगा। लेकिन मुल्ला नसरुद्दीन से कोई पूछ रहा है उसके दो बेटों के संबंध में परमात्मा से अगर कोई हार्दिक प्रेम हो जाए, अनभ्यास का प्रेम हो कि क्या हालत है बेटों की? तो नसरुद्दीन ने कहा, पहला तो जाए; पुनरुक्ति से आया हुआ नहीं, हृदय की स्फुरणा से आया राजनीतिज्ञ हो गया, और दूसरे के भी आसार अच्छे नहीं हैं! एक हुआ। मगर यह कैसे होगा? तो शायद कृष्ण को प्रायः न लगाना राजनीतिज्ञ हो गया है और दूसरे के भी आसार अच्छे नहीं हैं! पड़े। तो फिर कहा जा सके, निस्संदेह रूप से। निःसंशय होकर क्षुद्र, कुर्सी, वह भी छोटी, जिससे हम ही बंध सकें अकेले, कहा जा सके कि हां, ठीक; हो ही जाएगा।
इतनी छोटी! दूसरे को भी जगह उसमें नहीं रखनी पड़ती; दूसरा अभ्यास तो समझ में आता है; हम भी कर सकते हैं। यह हार्दिक | कहीं सरककर उसमें प्रवेश न कर जाए। तो फिर आदमी क्षुद्र होता समझ में नहीं आता, कैसे होगा! हृदय नाम की चीज वैसे ही न के चला जाता है। बराबर है हमारे पास। हम हृदय से कुछ किए ही नहीं हैं, तो | ___ जहां भी क्षुद्र का प्रेम हो, वहां सजग होना। और जहां भी विराट परमात्मा को कैसे पुकार पाएंगे। और अगर हार्दिक करना हो को मौका मिले, मौका देना। जहां भी लगे कि कोई विस्तार है, परमात्मा से लगाव, तो काफी बड़ा हृदय चाहिए पड़े। छोटे हृदय | | जिसको हम प्रेम कर सकते हैं...। सुबह सूरज निकला है, तो सिर्फ में, संकुचित हृदय में, उसको बुलाया भी नहीं जा सकता। और | | इतना कहकर अपने रास्ते पर मत चले जाना कि हां, ठीक है; सुंदर हमारे हृदय ऐसे संकुचित हैं कि आदमी भी एक-दूसरे के भीतर | है। यह कहना बहुत अपमानजनक है। असल में जिसे सुबह के प्रवेश नहीं कर पाते, तो परमात्मा का प्रवेश तो बहुत दूर है। | सौंदर्य का पता चलता है, शायद ही ऐसा कहता हो। यह बहुत क्षुद्र
हमारे हृदय में सिर्फ वस्तुएं ही प्रवेश कर पाती हैं, व्यक्ति भी | है वक्तव्य। जिसे सुबह के सौंदर्य का पता चलता है, वह दो क्षण प्रवेश नहीं कर पाते। वस्तुएं! कोई हीरे के प्रेम में मरा जा रहा है! सूरज के निकट बैठ जाता है। वह अपने हृदय को खोल लेता है। कोई धन के प्रेम में मरा जा रहा है! कोई सोने के प्रेम में मरा जा रहा | | वह इन किरणों को अपने में समा जाने देता है, और अपने हृदय के है। कोई कुर्सी और पद के प्रेम में मरा जा रहा है। बस, वस्तुएं प्रवेश आंतरिक भाव को सूरज तक पहुंच जाने देता है। इसमें कहीं कर पाती हैं; व्यक्ति तक प्रवेश नहीं कर पाते।
| बातचीत नहीं होती। तो जिसे परमात्मा की तरफ हार्दिकता को ले जाना हो, एक तो | जब आकाश सुंदर मालूम पड़े, तो नीचे लेट जाना थोड़ी देर को। उसे सबसे पहले वस्तुओं के प्रेम के प्रति सजग होना पड़े। फिर | छाती तक उस आकाश को उतर आने देना। कि वह आलिंगन कर व्यक्तियों के प्रेम को बढ़ाना पड़े। और जब वस्तुओं का प्रेम गिर | ले, और सब तरफ से घेर ले। भूल जाना अपनी क्षुद्रता को थोड़े जाए और व्यक्तियों का प्रेम गहरा हो जाए, तब व्यक्तियों के प्रेम | क्षणों में, उस विराट फैलाव को प्रेम कर लेना। को भी गिरा देना पड़े और निर्व्यक्ति के प्रेम में उठना पड़े। । लेकिन हम बड़े संकरे प्रेम करते हैं। उन संकरे प्रेमों में हम संकरे
तो ध्यान रखना, जितना बड़ा आपका प्रेम-पात्र होगा, उतना ही | | होते चले जाते हैं। लेकिन यह मैं कह रहा हूं, यह अभ्यास की बात बड़ा आपका हृदय हो जाएगा। छोटे-मोटे के प्रेम में पड़ना ही मत। | नहीं है, यह अवसर को खोजने की बात है। अवसर रोज हैं। अगर प्रेम में ही पड़ना हो, तो क्षुद्र के क्या पड़ना! तो जरा खोजना कोई | नजर हो, तो अवसर रोज हैं। उन अवसरों का प्रयोग करते रहना विराट, कोई विस्तार, कोई जहां सीमाएं दूर कहीं समाप्त होती हों; | है। तो धीरे-धीरे उस परम ज्योति का स्मरण, उस परम विराट का