________________
गीता दर्शन भाग-4
स्मरण आसान हो जाता है। और उसकी तरफ हृदय की लगन लग | - अभी जाने के पहले पांच-सात मिनट यहां भी हम कीर्तन करेंगे। जाए, तो फिर याद करना नहीं होता, वह याद बना रहता है। उसे | | अभी उठ नहीं जाएंगे आप। पांच-सात मिनट हमारे संन्यासी यहां भूलना ही मुश्किल हो जाता है।
| कीर्तन करेंगे, उसमें आप भी सम्मिलित हों। आप भी सम्मिलित पूछा है किसी ने फकीर बायजीद से कि बायजीद, तुम्हें हम कभी | | हों। वहीं बैठे हुए कीर्तन को दोहराएं। ताली बजाएं। डोल तो सकते ईश्वर का स्मरण करते नहीं देखते! तुम कभी नमाज पढ़ने नहीं आते | हैं बैठे-बैठे। उस आनंद को, उस पुलक को थोड़ा स्पर्श करें। मस्जिद में? बायजीद ने कहा, हम उसे भूल ही नहीं पाते; याद कैसे | | शायद! कोई नहीं जानता, कब कोई बात छू जाए, और हृदय की करें! हम उसे भूल ही नहीं पाते हैं; याद कैसे करें? नमाज पढ़ने | वीणा बजने लगे। आएं क्या? नमाज चौबीस घंटे ही चल रही है। उठते हैं, तो वह है। सोते हैं, तो वह है। जागते हैं, तो वह है। खाते हैं, तो वह है। हम पागल हो गए हैं उसकी याद में। उसे हम भूल ही नहीं पाते हैं।
याद करना अभ्यास से होता है, हृदय से भूलना मुश्किल हो जाता है। कृष्ण कहते हैं, ऐसा हो सके, तो निस्संदेह, निःसंशय जो मेरा स्मरण करते हैं, वे मेरे ही स्वरूप को उपलब्ध हो जाते हैं।
आखिरी बात। ये सारी बातें हम सुन लेते हैं। और शायद लगता होगा कि कृष्ण ने ठीक ही कहा। या मैंने जो कहा, ठीक ही है। लेकिन इतना सोचने से कुछ भी हल नहीं है। इतना सोचना खतरनाक भी हो सकता है। इस सोचने से भ्रम भी पैदा होता है कि हम समझ गए, और समझे जरा भी नहीं।
तो जिनको भी ऐसा लगता हो कि ठीक है, वे कल सुबह आ जाएं कुछ करने को, किसी अवसर को खोजने को।
एक बात खयाल रख लें, अकेली समझ काफी नहीं है। क्योंकि अकेली समझ को टिकने के लिए कोई जड़ें नहीं होती हैं हमारे पास। समझ आती है और बादल की तरह सरक जाती है। उस बादल को गड़ाना पड़ेगा जमीन में, जड़ें देनी पड़ेंगी, ताकि वह वृक्ष बन जाए। उसके लिए कछ करना पडेगा। और वह करना हार्दिक है, अभ्यास नहीं है। तो सुबह जो हम ध्यान कर रहे हैं, वह एक हार्दिक अवसर की मौजूदगी भर है। आपके लिए अभ्यास महत्वपूर्ण नहीं है।
यहां हम, हमारे संन्यासी हैं, इनमें से अनेक के हृदय में वह हृदय की भावना जगी है। वे यहां गाएंगे. नाचेंगे। शायद देखते-देखते उनकी धुन आपको भी पकड़ जाए। शायद खड़े-खड़े आपके पैर में भी कंपन आ जाए। शायद उनकी मौज इनफेक्शियस हो जाए, छूत की बीमारी हो जाए, आपको भी छू ले। और परमात्मा करे कि छू ले, तो आप भी नाच उठे और उस लहर में बह जाएं।
तो सुबह सिर्फ एक अवसर है, जस्ट एन ऑपरचुनिटी। आ जाएं। शायद उस अवसर में कुछ बहाव मिल जाए, और कुछ हो जाए।