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* गीता दर्शन भाग-44
नहीं करना होता, याद बरबस आ जाती है बरबस। नहीं करना रहेगा। धीरे-धीरे अभ्यास मजबूत हो जाएगा। तो फिर साइकिल भी चाहते, तो भी आ जाती है। कोई भी बहाना खोज लेती है और आ चलेगी, राम-राम भी चलेगा। दो साइकिलें चलेंगी, एक पैडल जाती है। अगर कभी किसी के प्रेम में गिरे हैं, फूल खिलता हुआ आप मारते रहेंगे, एक पैडल आपकी स्मृति मारती रहेगी भीतर; दो दिखता है, फूल भूल जाता है, उसकी याद आ जाती है। चांद चक्र चलते रहेंगे। निकलता है आकाश में, चांद भूल जाता है, उसकी याद आ जाती लेकिन यू कैन नाट रिहर्सल डेथ; यह दिक्कत है। मौत का कोई है। कोई गीत गाता है, वह गीत गाने वाला भूल जाता है, गीत की | रिहर्सल आप नहीं कर सकते। इसलिए अभ्यास नहीं कर सकते। कड़ी भूल जाती है, उसकी याद आ जाती है। कोई भी बहाना काम | यह बड़ी खराबी है। पहली ही दफे नाटक में सीधे खड़ा हो जाना करने लगता है।
| पड़ता है। यह भी पता नहीं होता कि कौन-सा डायलाग बोलना है। प्रेम में अगर गिरे हैं! यह शब्द बड़ा अच्छा है, टु फाल इन लव! | कौन हैं, यह भी पता नहीं होता है, कि राम हैं, कि लक्ष्मण हैं, कि एक और भी प्रेम है, जिसमें चढ़ना होता है; टु राइज इन लव। वह | सीता हैं, कि रावण हैं। बस, अचानक पर्दा उठता है और खड़े हैं ईश्वर का प्रेम है। यह बड़ा अच्छा है कि हम कहते हैं कि फलां | मंच पर! और पहली ही दफे बोलना पड़ता है। उसका कोई पता ही आदमी प्रेम में गिर गया। है ही गिरना वहां।
नहीं होता। कुछ लोग कभी-कभी प्रेम में चढ़ते भी हैं। कोई मीरा कभी प्रेम ___ मौत आपको अभ्यास का अवसर नहीं देती है। नहीं तो हम ऐसे में चढ़ जाती है। कोई चैतन्य कभी प्रेम में चढ़ जाता है। इस प्रेम के कुशल लोग हैं कि मौत को भी चकमा दे जाएं। हम ऐसा पक्का चढ़ने में भी वैसा ही स्मरण होने लगता है, जैसा स्मरण प्रेम के | | मजबूत रिकार्ड रख लें अपने राम-राम का, अभ्यास ऐसा कर लें गिरने में होता है। जब प्रेम के गिरने तक में हो सकता है. तो प्रेम मजबती से कि मौत को भी चकमा दे दें। के चढ़ने में तो होगा ही।
| मौत की चंकि पुनरुक्ति नहीं है: अचानक आती है. आकस्मिक यह स्मरण हार्दिक है। यहां फूल खिलता है, तो परमात्मा खिल है, उसकी पहले से कोई तैयारी नहीं हो सकती, इसलिए आपकी जाता है। यहां चांद उगता है, तो परमात्मा उग जाता है। यहां सागर | | तैयारी वाला काम काम नहीं आएगा। वह तैयारी की व्यवस्था मौत में लहर आती है, तो परमात्मा की खबर ले आती है। हवा का झोंका | तोड़ ही देगी। जिसे अभ्यास से पाया था, जिस स्मरण को, मौत के । आता है, तो उसी का हो जाता है। यहां आदमी की आंखें दिखाई | | वह काम नहीं पड़ेगा। जिसे हृदय से पाया हो, तो बात अलग है। पड़ती हैं, तो वही झांकने लगता है। यहां किसी चेहरे में सौंदर्य | । हृदय से पाना अभ्यास से पाना नहीं है। प्रकट होता है, तो वह उसी का होता है। यहां कोई गीत गाता है, तो ___ इसलिए अक्सर लोग कहते हैं कि प्रेम पहली ही नजर में हो कड़ी उसकी हो जाती है।
जाता है। वे ठीक ही कहते हैं। और अगर पहली नजर में न हो, तो जब स्मरण हार्दिक हो, तो फिर प्रायः लगाने की जरूरत न रहेगी। | दूसरी नजर में तो सिर्फ अभ्यास से होता है। इसलिए पहले सूत्र में जब कृष्ण ने कहा है, इसमें कोई संशय नहीं ___ अभ्यास वाला प्रेम भी है। इसलिए जो कौमें कुशल हैं, जैसे है, तो यह एक हार्दिक स्मरण की बात है। लेकिन अर्जुन की आंखों हमारी कौम है, चालाकी में बहुत कुशल है। जितनी पुरानी कौम में जरूर दिखाई पडा होगा कि वह
| होती है, चालाकियों में उतनी ही कुशल हो जाती है, क्योंकि उसके तो उन्होंने कहा कि चिंतन करता हुआ अंतकाल में भी प्रायः उसी अनुभव गहरे होते हैं। इसलिए हम प्रेम नहीं करने देते, विवाह सीधा का स्मरण करता होता है-प्रायः। क्योंकि वह जो आटोनामस, | करवा देते हैं। फिर कहते हैं, अब प्रेम करो। वह अभ्यास वाला प्रेम स्वायत्त मन का टुकड़ा है, वह छोटे-मोटे काम में साइकिल | | है। रोज-रोज देखते; साथ रहते; उपद्रव; लड़ते-झगड़ते, क्षमा चलाते, कार चलाते, दुकानदारी चलाते-राम-राम करता रहता | | मांगते; क्रोध करते; अभ्यास होता चला जाता है। आखिर में पहुंच है। मौत जैसी बड़ी दुर्घटना में मुश्किल पड़ेगा।
| ही जाते हैं प्रेम पर। धक्का-धुक्की खाते, भीड़-भड़क्का करते, और एक कठिनाई है। साइकिल पर बैठकर आप अभ्यास कर आखिर पहुंच ही जाते हैं! फिर किसी तरह सब सेटल चीजें हो ही सकते हैं, रिहर्सल इज़ पासिबल। रोज साइकिल पर बैठे, राम-राम | जाती हैं। करें, राम-राम करें और बैठते जाएं। कभी भूल जाएंगे, कभी याद मगर वह सेटलमेंट वैसा ही है, जैसा कि पैसेंजर गाड़ी के थर्ड
गर
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