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मृत्यु-क्षण में हार्दिक प्रभु-स्मरण *
जब फांसी लगाने का वक्त आया और नसरुद्दीन चढ़ा तख्ते पर, | गया, बाधा पड़ जाती है। कौन किससे क्या बोला, बाधा पड़ जाती तो जेलर ने कहा, तुम्हें कुछ कहना हो तो कह दो। तो उसने कहा, | है। कोई भगवान का भजन और नाम ले रहा हो, जरा उसके पास हां, मुझे कुछ कहना है। और उसने कहा कि भाइयो, याद रखना, थोड़ी दूर खड़े होकर किसी के कान में खुसफुस करके कुछ कहें। जूता छाप साबुन ही दुनिया में सबसे अच्छा साबुन है। वह नाम-वाम छोड़कर आप क्या कह रहे हैं, इसे सुनने को उत्सुक
लोग भी चकित हुए। फिर उसको फांसी लग गई। उसने कांट्रैक्ट | हो जाता है। छोटी-छोटी चीजें बाधा डालती हैं। किया था सौ रुपए में। वे जो लोग आए थे, जूता छाप साबुन बनाने मौत इस जीवन की बड़ी से बड़ी घटना है। उससे बड़ी कोई वाले लोग थे। वह यही कर रहा था। वे कहते थे, बीस ले लो; घटना नहीं है। उस घटना के क्षण में आप स्मरण न कर सकेंगे। पच्चीस ले लो। बामुश्किल सौ पर तय हुआ था मामला। मरता और अगर घबड़ाकर स्मरण किया, डरकर स्मरण किया, तो ध्यान हुआ आदमी! वे सौ रुपए जेब में पड़े मिले। लेकिन वह आखिरी | रखना, वह स्मरण परमात्मा का नहीं, भय का होगा। क्षण भी धंधा कर गया! उस वक्त भी वह पचास पर राजी न हुआ; मेरे एक मित्र हैं। बहुत ज्ञानी हैं। वे सदा कहते थे कि ईश्वर के अस्सी पर राजी न हुआ। उसने कहा, सौ से कम में तो मैं मानूंगा स्मरण से क्या होगा? सच्चरित्रता चाहिए, सदाचार चाहिए। ईश्वर ही नहीं!
के स्मरण से क्या होगा! अच्छा आचरण चाहिए। मैंने उनसे कहा कि जिंदगीभर की आदत आखिरी क्षण तक भी पीछा करती है। जो ईश्वर का स्मरण भी नहीं कर सकता. वह सदाचारी हो सकेगा असल में जब वह तय कर रहा था कि सौ ही लंगा. तब फांसी इसकी जरा असंभावना है। और जो सदाचारी हो सकता है, वह वगैरह कुछ भी नहीं थी उसके चित्त में; सब खो गया था। धंधा ही | | ईश्वर के स्मरण से बच सकेगा, इसकी भी बहुत मुश्किल संभावना शेष था। अंत क्षण आपके जीवनभर का निचोड़ है। | है; यह भी नहीं हो सकता। आप कहीं किसी धोखे में हैं। उन्होंने
कृष्ण के इस वक्तव्य से बड़ी भ्रांतियां पैदा हुईं। पहली भ्रांति तो | | कहा, नहीं, मुझे कोई ईश्वर-स्मरण का सवाल नहीं है। मैं तो जो यह हुई जिसने भारत के धार्मिक चित्त को भयंकर हानि पहुंचाई। ठीक है, वह करने की कोशिश करता हूं। न रिश्वत लेता हूं, न चोरी इस वक्तव्य से लोगों ने यह समझा कि ठीक है, तो आखिरी वक्त | | करता हूं, न मांसाहार करता हूं। ठीक नियम से रात को सोता हूं, में याद कर लेंगे। इस वक्तव्य से समझा लोगों ने और जो पुरुष नियम से उठता हूं। कोई दुराचरण मेरे जीवन में नहीं है। मैंने उनसे अंतकाल में मेरे को ही स्मरण करता हुआ शरीर को त्याग कर जाता कहा, यह सब तो ठीक है, लेकिन इस सबसे सिर्फ आपका अहंकार है, वह मेरे स्वरूप को प्राप्त होता है, इसमें जरा भी संशय नहीं | भर अकड़ा जा रहा है, और कुछ भी नहीं हो रहा है। है-लोगों ने कहा, बिलकुल ठीक है। पूरी जिंदगी याद करने की कभी-कभी ऐसा हो जाता है कि सदाचरण भी सिर्फ अहंकार की कोई जरूरत न रही। अंत समय याद कर लेंगे। अगर अपने से न ही परिपूर्ति करता है। और ईश्वर-स्मरण के बिना सदाचार अहंकार भी बना, क्योंकि अंत समय बोलते ही न बने, तो पास में बैठा हुआ | की ही परिपूर्ति करता है। क्योंकि फिर समर्पण का तो कोई स्थान पंडित कान में सुना देगा। घर के लोग हरिनाम का जाप करने | | नहीं रह जाता; अकड़ की ही जगह रह जाती है कि मैं चरित्रवान हूं, लगेंगे, गीता सुनाई जाएगी।
मैं नियम से रहता हूं, सत्य का पालन करता हूं, अहिंसा का पालन कष्ण ने यह नहीं कहा है कि अंत समय जो मेरा नाम सन लेगाः ।
| करता हूं, इतने व्रत लिए हुए हैं, इतना त्याग किया हुआ है। अहंकार यह नहीं कहा है। अंत समय जिसको नाम सुना दिया जाएगा, यह | तो मजबूत होता जाता है। लेकिन ऐसे कोई चरण नहीं मिलते, जहां नहीं कहा है। जो मेरा नाम लेगा! और अंत समय कौन लेगा नाम ? | इस अहंकार को रख दें। वही ले सकता है, जिसने जीवनभर उस नाम की संपदा को सम्हाला | ___ मैंने उनसे कहा कि ठीक है। जैसा आपको ठीक लगता है, किए हो, अन्यथा नहीं ले सकता है। जीवनभर जो उस नाम में ऐसा | चले जाएं। एक ही बात याद रखें कि जिस ठीक से अहंकार मजबूत रच-पच गया हो कि मौत भी उस नाम में बाधा न डाल पाए। | होता है, वह ठीक हो नहीं सकता। __आप भी नाम लेते हैं। मैं कई लोगों को नाम लेते देखता हूं। वे फिर अचानक एक दिन मुझे खबर मिली कि उन्हें हृदय का दौरा बैठे हैं, माला फेरते हैं, नाम लेते हैं, और छोटी-छोटी चीजें बाधा हो गया, हार्ट-अटैक हो गया। मैं गया। करीब-करीब अर्ध-मूर्छा डालती रहती हैं। बहुत छोटी चीजें बाधा डालती हैं। कौन घर में में पड़े थे, लेकिन जोर-जोर से कहते थे, राम-राम, राम-राम। मैंने
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