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________________ गीता दर्शन भाग-4* लगता है, सुख मिल रहा है। वह सब नींद का ही सुख है। इस सुख को धोखा कहना चाहिए। सुख नहीं है, आत्मवंचना है। एक और आनंद है। वह व्यक्ति, जो अपने को भूलता ही नहीं; इतना स्मरण करता है, इतना स्मरण करता है कि अंततः स्मरण उसके भीतर एक थिर बिंदु हो जाता है। वह नींद में भी जानता है कि मैं हूं। यह तीसरी, जो कृष्ण ने कहा, अधियज्ञ । चेतना की साधना यज्ञ की साधना है। और चैतन्य को उस जगह पर पहुंचा देना है, जहां एक क्षण को भी भीतर की चेतना न छूटती हो; एक क्षण को भी गैप, अंतराल न आता हो, रिक्तता न आती हो; अखंड धारा बहती हो चैतन्य की, वहां आनंद है। वहां जो आनंद है, वह नींद जैसा आनंद नहीं, बेहोशी जैसा आनंद नहीं। बेहोशी में केवल दुख भूल जाते हैं; वहां दुख मिट जाते हैं। (दुख भूलकर जो आनंद पैदा होता है, उसे हम सुख कहते हैं। दुख मिटकर जो आनंद पैदा होता है, वही आनंद है। व्यक्ति की पदार्थ से अर्ध-चैतन्य, अर्ध- चैतन्य से पूर्ण चैतन्य की तरफ जो यात्रा है, वही अध्यात्म है। कृष्ण ने कहा, स्वभाव अध्यात्म है। वही है स्वभाव हमारा, जो केंद्र पर जल रहा है सदा । वह जीवन की जो किरण वहां है, वही । और जो पुरुष अंतकाल में मेरे को ही स्मरण करता हुआ शरीर को त्याग कर जाता है, वह मेरे स्वरूप को प्राप्त होता है, इसमें संशय नहीं है । और जो पुरुष अंतकाल में मुझे ही याद करता हुआ। यह मुझे से मतलब है, उसी निर्धूम ज्योति को याद करता हुआ। ध्यान रहे, मरते वक्त उसे याद करना बहुत ही कठिन है। जिन्होंने जीवनभर शरीर को ही स्वयं समझा हो, वे मरते वक्त कैसे उसे याद कर सकेंगे! जिन्होंने जीवनभर शरीर को ही स्मरण किया हो, वे मरते वक्त उस अशरीर को कैसे स्मरण कर सकेंगे? और किसी वक्त कर भी लें, मरते वक्त तो बहुत ही मुश्किल होगा, क्योंकि जो छूट रहा है, सब छूट रहा है। हालत ऐसी है कि जो आदमी, जिसके घर में तिजोड़ी बंद है, ताले पड़े हैं, पहरेदार लगे हैं, तिजोड़ी की चाभी अपने हाथ में है, सारा इंतजाम है; जो आदमी तब भी तिजोड़ी को नहीं भूल पाता, जब कि तिजोड़ी के छिनने का कोई भी डर नहीं है । जब डाका पड़ गया हो, और उसके ही सामने उसकी तिजोड़ी तोड़ी जा रही हो, और उसके सामने ही डाकू उसकी तिजोड़ी को घसीटकर बाहर ले जा रहे हों, सब सुरक्षा की व्यवस्था टूट गई हो, क्या आप सोच सकते हैं, उस समय वह तिजोड़ी को भूलने में समर्थ हो सकेगा ? जब सारी सुरक्षा है, तब नहीं भूल पाता; तो जब सारी सुरक्षा टूट जाएगी, तब तो सिवाय तिजोड़ी के और कुछ भी याद आने वाला नहीं है। आखिरी क्षण में तो हमारा शुद्धतम जो चेहरा है, वही प्रकट होता है, सम्हालने की भी फुर्सत नहीं मिलती। ऐसे रोज तो हम सम्हाले | रहते हैं। मरते वक्त तो हमारा असली चेहरा प्रकट हो जाता है, और हमारे असली भाव प्रकट हो जाते हैं, और हमारी असली स्मृति जाहिर हो जाती है। मरते वक्त आदमी को पहचाना जा सकता है कि असल में यह आदमी क्या था । | मुल्ला नसरुद्दीन को मैंने कहा कि... पत्नी की हत्या उसने की; | मुकदमा चला और उसे सूली की सजा मिली। जिस दिन उसे सूली की सजा मिली, उसे खबर देने जेलर आया और उसने कहा मुल्ला, आने वाले सोमवार को सुबह तुम्हारी सूली हो जाने वाली है | मुल्ला ने कहा, सोमवार को ! क्या यह नहीं हो सकता कि आने वाले शनिवार को सूली दी जाए? जेलर ने कहा, इससे क्या फर्क पड़ता है तुम्हें ! तुम्हें क्या फर्क पड़ता है कि सोमवार लगी सूली कि शनिवार लगी! मुल्ला ने कहा, असल में इस बुरे मुहूर्त सप्ताह | का प्रारंभ नहीं करना चाहता हूं। सोमवार ! 24 वह अपनी दुकान की दुनिया में जी रहा है, जहां मुहूर्त चलते हैं। अब फांसी लग रही है, लेकिन वह सोच रहा है कि सोमवार को मुहूर्त करना कि नहीं! फिर फांसी हुई, तो जिस देश में वह रहता था, वहां नियम था कि बीच चौराहे पर नगर के फांसी लगती थी। हजारों लोग देखने आते थे। और फांसी जिसको दी जाती थी, उस आदमी से कहा जाता था कि उसे कुछ बोलना हो मरने के पहले, तो वह जनता के सामने बोल सकता था। ठीक फांसी के पहले नसरुद्दीन से कुछ लोग मिलने आए। और जेलर बहुत हैरान हुआ कि नसरुद्दीन और उनके बीच बड़ा मोलतोल हुआ। कुछ जेलर की समझ में भी न कि यह बात क्या हो रही है! लेकिन नसरुद्दीन ने कहा कि मैं आखिरी वक्तव्य | के संबंध में कुछ तैयारी कर रहा हूं, इसलिए आप बीच में बाधा न | दें। बड़ी देर तक चला। कुछ वे कहते, कुछ यह कहता। फिर हां, न । आखिर कुछ समझौता हुआ और उन लोगों ने कोई चीज नसरुद्दीन को दी और उसने जल्दी से खीसे में रख ली । जेलर ने भी मरते हुए आदमी को बाधा देनी ठीक न समझी। सोचा कि अभी फांसी हो जाएगी; पीछे देख लेंगे कि जेब में क्या है।
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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