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* मृत्यु-क्षण में हार्दिक प्रभु-स्मरण *
इसलिए बाहर के यज्ञों से कुछ भी न होगा। वहां तो धुआं रहेगा अलग, पदार्थ अलग। बीच से जैसे ही अर्ध-चेतना गिर जाती ही। और जो आग हमने जलाई है, वह बुझेगी ही। उस आग को | खोजना पड़ेगा, जो हमने जलाई ही नहीं, जो सदा से जल ही रही | यह अर्ध-चेतना दो तरह से गिर सकती है। या तो आप बिलकुल है। और जो आग हमने जलाई है, उसमें ईंधन का किया है उपयोग। | बेहोश हो जाएं पदार्थ में जाकर, तो ब्रह्म बिलकुल भूल जाता है; जहां होगा ईंधन, जहां होगा पदार्थ, वहां धुआं होगा ही। और जहां बेहोशी पूरी हो जाती है। या आप पूर्ण होश में आ जाएं, ब्रह्म के होगा ईंधन, वहां आग चुक ही जाएगी। हमें उस आग को खोजना भीतर आकर, उस पूर्ण होश में भी यह बीच की चेतना विलुप्त हो पड़ेगा, जहां कोई ईंधन नहीं है। बिना ईंधन के अगर कोई आग मिल | जाती है। जाए, तो फिर नहीं बुझेगी। बुझने का कोई कारण न रहा। मनुष्य को दो ही तरह के आनंद संभव हैं। एक आनंद—जो कि
ध्यान रहे, आग नहीं बुझती, ईंधन बुझता है। ईंधन बुझ जाता है, | भ्रम ही है, आनंद नहीं-वह आनंद है पूर्ण मूर्छा का। इसलिए आग विलुप्त हो जाती है। ईंधनरहित अगर कोई आग हो, तो उसमें | नींद में सुख मिलता है। बड़ी हैरानी की बात है! जिन्हें जागने में धुआं पैदा नहीं होगा। क्योंकि धुआं भी आग से पैदा नहीं होता, | सुख का पता नहीं चलता, वे कहते हैं जागकर सुबह कि नींद में गीले ईंधन से पैदा होता है। सखा ईंधन हो, तो कम पैदा होता है। सख मिला। जिनको जागकर भी सख नहीं मिलता है. उन्हें नींद में ज्यादा सूखा हो, और कम होता है। ज्यादा गीला हो, और ज्यादा | | कैसे मिलता होगा? होता है।
___ मुल्ला नसरुद्दीन एक रात सोया है। और एक चोरों का गिरोह ईंधन से धुआं पैदा होता है, आग से नहीं। अगर बिना ईंधन के | उसके घर में घुस गया। वे बड़ी खोजबीन कर रहे हैं। आखिर मुल्ला कोई आग संभव है, तो कृष्ण कहते हैं, वही आग मैं हूं—दैट से न रहा गया, उसने कहा कि भाइयो, अगर कुछ मिल जाए, तो फायर—वही अधियज्ञ मैं हूं। इस देह में मैं ही अधियज्ञ हूं। मुझे भी खबर कर देना! उन चोरों ने कहा, कुछ मिल जाए, खबर .. कृष्ण ने तीन पर्तों के अस्तित्व को पूरा कहा। एक पर्त है पदार्थ कर देना! मतलब? मुल्ला ने कहा, दिनभर वर्षों से खोज-खोजकर की। व्यक्ति की देह में भी ऐसा ही है, पदार्थ की एक पर्त। फिर हमें कुछ न मिला इस मकान में, तो रात के अंधेरे में तुम्हें कैसे क्या चेतना का एक धुआं-धुआं, अर्ध-जाग्रत, अर्ध-सोया हुआ | मिलेगा? कुछ मिल जाए तो खबर कर जाना। विस्तार। और फिर केंद्र पर वह ज्योति, जो अनिर्मित, ईंधनरहित, | जिन्हें दिन के जागरण में कोई सुख नहीं मिला, वे रात के बाद धुएं से मुक्त, शाश्वत और नित्य है। कृष्ण कहते हैं, वही मैं हूं। | सुबह उठकर कहते हैं, बड़ा सुख मिला! जरूर कहीं कोई भूल हो
यह व्यक्ति के तल पर; और इसे ही विराट के तल पर भी समझ | रही है। सिर्फ दिनभर में जो दुख वे पैदा करते थे, वे भर पैदा नहीं लें। व्यक्ति जो है, वह विराट का ही बहुत छोटा प्रतिरूप है। इस कर पाए; और कुछ मामला नहीं है। वे जो दिनभर में दुख पैदा कर विराट ब्रह्म की इस विराट ब्रह्मांड को भी देह समझें। तो पहली पर्त | लेते थे, नींद की कृपा से, बेहोशी के कारण, वे दुख पैदा नहीं कर पदार्थ की; दूसरी पर्त चैतन्य की, अर्ध-चैतन्य की; और तीसरी पर्त पाए; एक। ज्योतिर्मय ब्रह्म की। व्यक्ति के तल पर या विराट के तल पर. ये __ दूसरा, नींद में दुख भी पैदा हुए हों, तो वे उन्हें पता नहीं चल तीन सर्किल, ये तीन वृत्त, ठीक से याद रख लें। पहला पदार्थ का, | | पाए। तीसरा, कल के जागने और आज के जागने के बीच में वह दूसरा अर्ध-चेतना का, और तीसरा शुद्ध अग्नि का, शुद्ध प्रकाश | | जो आठ-दस घंटे का अंधेरा गुजर गया, उससे श्रृंखला टूट गई। का, मात्र प्रकाश का, शुद्ध चैतन्य का।
| सुबह उठकर वे कहते हैं, बड़ा सुखद मालूम हो रहा है! वस्तुतः वह जो शुद्ध चैतन्य है भीतर वह और बाहर वह जो शुद्ध | नींद में हमें सुख मिलता है। शराब पी लेते हैं, तो सुख मिलता पदार्थ है वह, ये दोनों जहां ओवरलैप करते हैं, जहां एक-दूसरे की | है। कामवासना में उतर जाते हैं, तो सुख मिलता है। वह सब सीमा पर छा जाते हैं, वहीं हमारी अर्ध-चेतना पैदा होती है। | बेहोशी है। फिल्म देखने तीन घंटे एक आदमी बैठ जाता है, तो
जब कोई व्यक्ति पूर्ण रूप से भीतर सरक जाता है, तो | अपने को भूल जाता है। वह बेहोशी है। फिल्म में उलझ जाता है अर्ध-चेतना विलुप्त हो जाती है। और बीच में वह अंतराल पैदा हो | | इतना कि अपनी याद रखने की सुविधा नहीं रहती। जाता है, जहां देखा जा सकता है कि मैं अलग, देह अलग; ब्रह्म ___ जहां-जहां हमें बेहोशी मिलती है, वहां-वहां थोड़ी देर को हमें