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* मृत्यु-क्षण में हार्दिक प्रभु-स्मरण *
अधिभूत हैं, वे भौतिक हैं, फिजिकल हैं। और पुरुष अधिदैव है। | | तब आप परमात्मा के मंदिर के बहुत निकट होते हैं। और जब आप
यह पुरुष कौन है? इस पदार्थ के बीच में जो जीता है और पदार्थ | बेहोश होते हैं किसी भी क्षण में, तब आप पदार्थ के बहुत निकट के प्रति होश से भर जाता है, उसे कृष्ण पुरुष कहते हैं। होते हैं।
पदार्थ को स्वयं का कोई बोध नहीं है। पत्थर पड़ा है आपके द्वार | कब आप बेहोश होते हैं? कब आप होश में होते हैं? पर, तो पत्थर को कोई पता नहीं कि वह है। और पत्थर को यह भी कभी आपने खयाल किया कि जब आप क्रोध से भरते हैं, तो पता नहीं कि आप भी हैं। ये दोनों बोध आपको हैं। पत्थर है, यह होश खो जाता है। इसलिए अक्सर क्रोध के बाद आदमी कहता है भी आपका बोध है; और आप हैं, पत्थर से भिन्न, यह भी आपका | | कि समझ नहीं पड़ता, यह मैंने कैसे किया! यह मुझसे कैसे हो बोध है।
सका! यह तो मैं कभी नहीं कर सकता हूं। ___पुरुष शब्द का अर्थ होता है, नगर के बीच में रहने वाला, पुर | | वह ठीक कहता है। अब उसका थर्मामीटर होश के करीब है, के बीच में रहने वाला। यह पदार्थ का जो पुर है, पदार्थ का जो यह | इसलिए वह कह रहा है कि यह मैं कभी नहीं कर सकता हूं। उसने महानगर है, इसके बीच में जो रहता है। वह अपने प्रति भी होश से | | यह किया भी नहीं। अगर इतना होश होता, तो वह करता भी नहीं। भरा हुआ होता है, इस नगर के प्रति भी होश से भरा हुआ होता है। लेकिन जब उसने किया, तो बेहोशी के करीब था। क्रोध शरीर में
इस हिरण्यमय को कृष्ण कहते हैं, यह पुरुष अधिदैव है। यही जहर छोड़ देता है। मार्फिया की तरह, सब भीतर चेतना को कुंद कर चैतन्य है, यही परम चैतन्य है, यही परम दिव्यता है। | देता है। फिर आप कुछ भी कर गुजरते हैं। उस कर गुजरने में
चेतना का लक्षण है, होश, अवेयरनेस। इसलिए सारे धर्मों ने | | बेहोशी है। शराब का, बेहोशी का विरोध किया है, सिर्फ एक कारण से; कोई ___ इसलिए जब कोई आदमी किसी की हत्या करता है, तो पुरुष की
और कारण नहीं है। सिर्फ एक कारण, कि जितने आप बेहोश होते | | हैसियत से कोई कभी किसी की हत्या नहीं करता, पदार्थ की हैं, उतने आप पदार्थ हो जाते हैं, पुरुष नहीं रह जाते। और सारे धर्मों | | हैसियत से ही हत्या करता है। और वस्तुतः समस्त धर्मों ने अगर ने ध्यान का समर्थन किया है, सिर्फ एक कारण से, कि जितने आप | हत्या का विरोध किया है, तो इसलिए नहीं कि दूसरा मर जाएगा; ध्यानस्थ होते हैं, उतने पदार्थ कम हो जाते हैं और पुरुष ज्यादा हो | | क्योंकि धर्म भलीभांति जानते हैं कि दूसरा कभी नहीं मरता है। फिर जाते हैं।
भी विरोध किया है, और विरोध का कारण यह है कि हत्या करते जिस दिन कोई व्यक्ति पूर्ण ध्यान को उपलब्ध होता है, सिर्फ | वक्त हत्या करने वाला मर जाता है और पदार्थ हो जाता है। उसके शुद्ध चेतना रह जाता है, उस दिन वह परम पुरुष हो जाता है, | भीतर सारा होश खो जाता है। पुरुषोत्तम हो जाता है।
बुराई में और कोई बुराई नहीं है। और भलाई में और कोई भलाई और जिस दिन कोई व्यक्ति पूर्ण मूर्छा को उपलब्ध हो जाता है, | | नहीं है। बुराई में एक ही बुराई है कि हम पदार्थवत हो जाते हैं। और कि उसके हाथ-पैर काट डालो, तो भी उसे पता नहीं चलता। | भलाई में एक ही भलाई है कि हम पुरुषवत हो जाते हैं। यह जो उसकी छाती में छुरा भोंक दें, तो भी उसे पता नहीं चलता। उसे यह | भीतर चैतन्य है, यह जो चेतना की ज्योति है, इसको जितना बढ़ा भी पता नहीं है कि वह है। इस परम मूर्छा में वह करीब-करीब | | लें, उतना अधिदैव के निकट होने लगते हैं। इसे जितना घटा लें, पदार्थ हो जाता है, जड़ हो जाता है।
धुआं-धुआं हो जाए, अंधेरा छा जाए, उतना अधिभूत के निकट हो इन दोनों के बीच में कहीं हम डोलते रहते हैं। पदार्थ और | जाते हैं। शायद, जिसे हम पदार्थ कहते हैं, वह सोया हुआ अधिदैव परमात्मा के होने के बीच में हमारा डोलना चलता रहता है। हम | | है। और जिसे हम अधिदैव कहते हैं, वह जागा हुआ पदार्थ है। चौबीस घंटे में कई बार पदार्थ के करीब पहुंच जाते हैं और कई बार | लेकिन अर्जुन ने जो पूछा है, कृष्ण एक-एक की व्याख्या दे रहे हम परमात्मा के निकट पहुंच जाते हैं।
लेकिन एक सूत्र खयाल रहे, तो आप पता रख सकते हैं कि | - हे देहधारियों में श्रेष्ठ अर्जुन, इस शरीर में मैं ही अधियज्ञ हूं। आपकी चेतना का थर्मामीटर कब पदार्थ से परमात्मा की तरफ यह बहुत मजे की बात कृष्ण कहते हैं, हे देहधारियों में श्रेष्ठ अर्जुन! डोलता रहता है। जब आप होश से भरे होते हैं किसी भी क्षण में, अर्जुन को कृष्ण देहधारियों में श्रेष्ठ क्यों कहते होंगे? कोई