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* गीता दर्शन भाग-4*
बुद्ध नास्तिक हैं और ईश्वर को नहीं मानते हैं। लेकिन बुद्ध केवल | लोगों ने कहा है कि वह आकाश जैसा है-शून्य, न होने जैसा, इसीलिए चुप रह जाते हैं कि जिस ईश्वर को हम कहेंगे है, उसे फिर | रिक्त, खाली। ऐसा हो, तो ही विनाश के बाहर हो सकता है। ऐसा नहीं भी होना पड़ेगा। इसलिए उसके संबंध में है कहना भी ठीक न हो, तो विनाश के भीतर आ जाता है। नहीं है। है कहते से ही पदार्थ प्रवेश करता है।
विनष्ट होने का कारण क्या है पदार्थ का? पदार्थ क्यों विनष्ट इस जगत में जो सच्चे आस्तिक हुए हैं, उन्होंने ईश्वर के होने के | होता है? लिए कोई प्रमाण, कोई आर्ग्युमेंट नहीं दिया है। और जिन्होंने प्रमाण पदार्थ इसलिए विनष्ट होता है कि पदार्थ डिविजिबल है, उसका दिए हैं और आर्म्युमेंट दिए हैं, उन्हें ईश्वर का कोई भी पता नहीं है। | विभाजन किया जा सकता है। हम एक पत्थर के दो टुकड़े कर जो कहते हैं कि ईश्वर है, क्योंकि उसने दुनिया को बनाया...। सकते हैं। जो चीज भी विभाजित हो सकती है, उसके कितने ही ध्यान रखें, बनाई हुई चीज भी नष्ट हो जाती है, बनाने वाले भी नष्ट टुकड़े किए जा सकते हैं, वह नष्ट हो जाएगी। जो चीज विभाजित हो जाते हैं।
होती है, उसका अर्थ है कि वह बहुत चीजों से मिलकर बनी है; नहीं; परमात्मा को न तो बनाया हुआ कहो और न बनाने वाला संयोग है, कंपाउंड है। कहो, क्योंकि ये दोनों ही बातें विनाश के जगत में प्रवेश कर जाती परमात्मा संयोग नहीं है; अस्तित्व संयोग नहीं है। अस्तित्व हैं। वह है, जैसे कि न हो। उसकी जो उपस्थिति है, उसकी जो इकट्ठा है, एक है; उसमें कोई खंड नहीं हैं। इसलिए ब्रह्म को अखंड मौजूदगी है, उसकी मौजूदगी का जो स्वभाव है, वह जस्ट लाइक | कहा है। उसके टुकड़े नहीं हो सकते। जिस चीज के टुकड़े नहीं हो एब्सेंस, जैसे गैर-मौजूद हो।
सकते, उसका विनाश नहीं हो सकता, क्योंकि विनाश की प्रक्रिया हम अपने कमरे से फर्नीचर को बाहर निकालकर फेंक सकते हैं। में खंडित होना जरूरी हिस्सा है। क्योंकि फर्नीचर है, मौजूद है, उसे बाहर किया जा सकता है। | किस चीज का खंड नहीं हो सकता? जिसकी कोई सीमा-रेखा लेकिन कमरे से हवा को निकालना हो, तो बड़ी कठिनाई होगी। न हो, उसका खंड नहीं हो सकता। जिसकी सीमा-रेखा हो, उसका क्योंकि हवा फर्नीचर की तरह ठोस नहीं है। फिर भी हवा को खंड हो सकता है। वह कितनी ही छोटी हो, कितनी ही बड़ी हो, निकाला जा सकता है. फिर भी निकाला जा सकता है। हाथ से जिसकी सीमा है. उसके हम दो हिस्से कर सकते हैं। लेकिन धक्का मारें, तो स्पर्श हो जाता है। धुआं उड़ाएं, तो हवा की रेखाएं | | जिसकी कोई सीमा नहीं है, उसके हम दो हिस्से नहीं कर सकते। बोध में आने लगती हैं। सांस खींचें, तो हवा भीतर ली जा सकती अस्तित्व असीम है और पदार्थ सदा सीमित है। इसलिए पदार्थ है। तो फिर एक पंप लगाकर सक की जा सकती है, बाहर खंडन को उपलब्ध हो सकता है। खंडन से विनाश हो जाता है। निकालकर फेंकी जा सकती है। नहीं तो है, लेकिन फिर भी काफी फिर जिस चीज को हम बना सकते हैं, वह मिटेगी। सिर्फ एक हैबाहर निकाली जा सकती है।
चीज है, जिसे हम नहीं बना सकते हैं, और वह परमात्मा है। बाकी लेकिन एक और चीज भी है कमरे के भीतर, वह है आकाश। सब चीजें हम बना सकते हैं। ऐसी कौन-सी चीज है, जो हम नहीं आकाश को बाहर बिलकुल नहीं निकाला जा सकता। पदार्थ है, बना सकते? सब बना सकते हैं। अस्तित्व भर नहीं बना सकते हैं। उसे बड़ी आसानी से निकाला जा सकता है। हवा है, वह पदार्थ | जिसे हम बना सकते हैं, वह मिट जाएगा। और हम बना सकते हैं,
और आकाश के बीच में डोलता हुआ अस्तित्व है, उसे भी निकाला | ऐसा नहीं, प्रकृति भी जिसे बना सकती है, वह मिट जाएगा। जो भी जा सकता है। लेकिन आकाश है कमरे के भीतर, स्पेस है, उसे नहीं कंस्ट्रक्ट हो सकता है, वह डिस्ट्रक्ट हो सकता है। जिसको हम बना निकाला जा सकता। क्यों? क्योंकि वह न होने के जैसा है। उसे ही नहीं सकते, वही केवल विनाश को उपलब्ध नहीं हो सकता है। निकालिएगा कैसे। निकालने के लिए कछ तो होना चाहिए. जिसे | | हमारा अनबनाया क्या है? अगर उसे हम खोज लें. तो वही ब्रह्म हम धक्का दे सकें। आकाश को हम धक्का नहीं दे सकते। | है। और जो भी बन सकता है, और बनाया जा सकता है, और
इसलिए इस जगत में सभी चीजें बनती हैं और मिटती हैं। लेकिन | बनाया जा रहा है चाहे आदमी बनाए, चाहे प्रकृति बनाए-वह आकाश? आकाश अनबना, अनमिटा मौजूद रहता है। इसलिए सब पदार्थ है। जिन लोगों ने परमात्मा के लिए निकटतम प्रतीक खोजा है, उन तो कृष्ण कहते हैं, उत्पत्ति और विनाश धर्म वाले सब पदार्थ