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* गीता दर्शन भाग-4 *
है ? जिसके ऊपर यह शरीर की सारी आकृतियां बदलती रहती हैं, उसकी आकृति क्या है ?
अगर आप उसकी आकृति को खोजने उतरें, तो धीरे-धीरे सब आकृतियां खो जाएंगी और निराकार में आप खड़े हो जाएंगे। उस निराकार में स्वभाव है।
शरीर की आकृतियों में सब कृत्रिमता है। यह मां-बाप से दी गई आकृति है आपको। आपको शायद पता न हो, लेकिन जरूर अच्छा होगा जान लेना। अभी तो जमीन पर एक ही शक्ल आदमी नहीं होते। ठीक जुड़वां बच्चों में भी थोड़ा-सा फर्क होता है। एक अंडे से हुए दो बच्चों में भी थोड़ा-सा फर्क होता है। लेकिन वैज्ञानिक कहते हैं कि अब हम डुप्लीकेट कापी तैयार कर सकते हैं। अब हर आदमी की नकल तैयार की जा सकती है; क्योंकि फार्मूला खयाल में आ गया है। फार्मूला बहुत कठिन नहीं था; खयाल : नहीं था ।
जिन अणुओं से बच्चे का निर्माण होता है मां के पेट में, ठीक अणुओं को दो हिस्सों में काटा जा सकता है, पहले ही अंडे में । और एक अंडे के दो अंडे बनाए जा सकते हैं अब । तब उन दोनों में से बिलकुल एक-सी आकृति के दो आदमी पैदा होंगे, बिलकुल एक-सी ।
यह तो वैज्ञानिकों की जरूरत है फिलहाल अभी । क्योंकि वे कहते यह हैं कि हर एक आदमी को आने वाले पचास सालों में कम से कम उन लोगों को, जिनकी लोगों को ज्यादा जरूरत होगी — उसकी एक कापी हम, डुप्लीकेट कापी, जैसे ही वह मां के पेट में पहुंचेगा पहले दिन, उसी क्षण निकालकर, आधे हिस्से को काटकर, अलग तैयार कर लेंगे मशीन में। उधर मां के पेट में जो बच्चा बड़ा होगा, ठीक ऐसा ही बच्चा मशीन में बड़ा होता जाएगा। इस बच्चे को बड़ा करके, फ्रीज करके रख दिया जाएगा। यह करीब-करीब मुर्दा ही रहेगा।
इसे इसलिए रख दिया जाएगा कि आने वाली दुनिया में दुर्घटनाएं रोज बढ़ती चली जाएंगी जैसे-जैसे विज्ञान विकसित होगा; और लोगों को रोज ही स्पेयर पार्ट्स की जरूरत पड़ती रहेगी, तो उसकी खोज नहीं करनी पड़ेगी। यह उनकी डिपाजिट जो कापी है, इसमें से कभी भी एक आदमी का हाथ टूट गया, तो उसका हाथ काटकर इसमें लगा दिया जाएगा। वह बिलकुल फिट हो जाएगा, क्योंकि वह इसका ही हाथ है। गर्दन भी कट गई, तो उसकी गर्दन इस पर बिठाई जा सकेगी। एक जैसे दस-बारह आदमी भी तैयार
किए जा सकते हैं, कापी की जा सकती है, कोई हर्जा नहीं ।
लेकिन फिर भी फर्क कायम रहेंगे। क्योंकि शरीर एक जैसे हो | सकते हैं। वह जो भीतर है, वह बहुत यूनीक है, वह बहुत बेजोड़ | है । इसलिए अगर दो कापी भी विज्ञान बना लेता है, तो शरीर बिलकुल एक जैसे होंगे, लेकिन व्यक्ति बिलकुल अलग-अलग होंगे।
वह कौन है भीतर, जो अलग है शरीर से ? और दो शरीर भी एक जैसे हो जाएं, तो भी भीतर अलग होता है !
शरीर को भूलकर, इसका थोड़ा खयाल करें। इस खयाल को दो तरह से कर सकते हैं, और स्वभाव की थोड़ी सी झलक मिल | सकती है, वही अध्यात्म है। तो एक छोटा-सा प्रयोग आपको कहता हूं।
कभी जब चित्त बहुत प्रसन्न हो, कभी जब चित्त बहुत प्रसन्न हो, तो द्वार - दरवाजे बंद करके अपने कमरे में लेट जाएं नग्न होकर; आंख बंद कर लें। और एक मिनट तक अपने माथे पर हाथ रखकर दोनों आंखों के बीच में एक मिनट तक रगड़ते रहें। चित्त अगर प्रसन्न हो, तो माथे पर रगड़ते ही सारी प्रसन्नता माथे पर इकट्ठी हो जाएगी।
ध्यान रहे, जब आदमी उदास होता है, तो अक्सर माथे पर रखता है। माथे पर हाथ रखने से उदासी बिखरती है और प्रसन्नता इकट्ठी होती है। हालांकि प्रसन्नता में कोई नहीं रखता, उसका खयाल नहीं है।
जब आदमी उदास होता है, दुखी होता है, चिंतित होता है, तो माथे पर हाथ रखता है। उससे चिंता बिखर जाती है; उस जगह जो | इकट्ठा है, वह बिखर जाता है। निगेटिव कुछ होगा, तो माथे पर हाथ रखने से बिखर जाता है । पाजिटिव कुछ होगा, तो माथे पर | हाथ रखने से इकट्ठा हो जाता है।
इसलिए मैंने कहा, जब प्रसन्न क्षण हो मन का कोई, लेट जाएं, माथे पर एक क्षण रगड़ लें जोर से हाथ से, अपने ही हाथ से । वह | जगह बीच में जो है, वह बहुत कीमती जगह है। शरीर में शायद सर्वाधिक कीमती जगह है। वहां अध्यात्म का सारा राज छिपा है। थर्ड आई कोई कहता है उसे, कोई शिवनेत्र; उसे कोई भी कुछ नाम | देता हो, पर वहां राज छिपा है। उस पर हाथ रगड़ लें। उस पर हाथ रगड़ने के बाद जब आपको लगे कि प्रसन्नता सारे शरीर से दौड़ने लगी है उस तरफ, आंख बंद रखें और सोचें कि मेरा सिर कहां है ! खयाल करें आप आंख बंद करके कि मेरा सिर कहां है!
आपको बराबर पता चल जाएगा कि सिर कहां है। सबको पता
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