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*स्वभाव अध्यात्म है
मैं किसी भी भाषा वाले घर में पैदा हो जाऊं, हिंदी बोलूं कि | ___ एक उदाहरण से मैंने कहा, भाषा न हो, तो मौन स्वभाव हो मराठी कि गुजराती, कुछ भी बोलूं, लेकिन जिस दिन मैं मौन में || जाएगा। एकाध और खयाल ले लें, तो यह बात साफ, जाऊंगा, उस दिन मेरा मौन न गुजराती होगा, न हिंदी होगा, न | शायद-शायद-साफ हो जाए। मराठी होगा। सिर्फ मौन होगा; वह स्वभाव है।
कभी आपने आंख बंद करके यह खयाल किया कि मेरे शरीर . हम इतने लोग यहां बैठे हैं। अगर हम शब्दों में जीएं, तो हम | | की आकृति को छोड़ दं, तो मेरी आकृति क्या है? कभी आपने सब अलग-अलग हैं। और अगर हम मौन में जीएं, तो हम सब | | खयाल किया कि आंख बंद करके बैठ गए हों, और सोचा हो कि एक हैं। अगर इतने बैठे हुए लोग यहां मौन हो जाएं क्षणभर को, | शरीर का खयाल छोड़ दूं कि शरीर की आकृति क्या है, मेरी आकृति तो यहां इतने लोग नहीं, एक ही व्यक्ति रह जाएगा। एक ही!| क्या है? इस शरीर के भीतर जो मेरा होना है, उसकी आकृति, बिकाज लैंग्वेज इज़ दि डिवीजन। भाषा तोड़ती है। मौन तो जोड़ | उसका आकार, उसका रूप क्या है? देगा। हम एक ही हो जाएंगे।
नहीं, हम शरीर के ही रूप को अपना रूप समझते हैं। हालांकि और ऐसा ही नहीं कि हम व्यक्तियों से एक हो जाएंगे। भाषा के | | शरीर रोज अपना रूप बदल रहा है, फिर भी हमें खयाल नहीं कारण हम मकान से एक नहीं हो सकते। भाषा के कारण हम वृक्ष | आता। अगर आपके सामने तस्वीर रख दी जाए आपकी ही, एक से एक नहीं हो सकते। भाषा के कारण हम चांद-तारों से एक नहीं | | दिन के जीवन की, जब आप एक दिन के हुए थे उस दिन की, आप हो सकते। लेकिन मौन में तो हम उनसे भी एक हो जाएंगे। आखिर पहचान नहीं सकेंगे कि आपकी तस्वीर है। हालांकि उस दिन आपने मौन में क्या बाधा है कि मैं चांद से बोल लूं! मौन में क्या बाधा है। माना होगा कि यह मेरा रूप है। आज जो आपकी तस्वीर है, आप कि चांद से हो जाए बातचीत-बातचीत मुझे कहनी पड़ रही बीस साल बाद नहीं पहचान पाएंगे कि यह मेरी तस्वीर है। यह मैं है कि चांद से हो जाए संवाद, मौन में! भाषा में तो नहीं हो | हूं! लेकिन आज आप कह रहे हैं, मैं हूं। बीस साल बाद दूसरी सकता; मौन में हो सकता है।
| तस्वीर को कहेंगे कि मैं हूं। यह तस्वीरों की श्रृंखला, इसे आप इसलिए जो लोग गहरे मौन में गए, जैसे महावीर। इसलिए कहते हैं, मैं हूँ! महावीर का जो सर्वाधिक प्रख्यात नाम बन गया, वह बन गया मुनि, झेन फकीर कहते हैं, फाइंड आउट योर ओरिजिनल फेस, अपना महामुनि। मौन में गए। इसलिए आज भी महावीर का संन्यासी जो | | असली चेहरा खोजो। वे कहते हैं, इस चेहरे को भूलो, जो तुमने है. मनि कहा जाता है, हालांकि मौन में बिलकुल नहीं है। आईने में देखा।
महा मौन में चले गए। और इसीलिए महावीर कह सके कि जिस चेहरे को देखने के लिए भी आईने की जरूरत पड़ती है, वनस्पति को भी चोट मत पहुंचाना। रास्ते पर चलते वक्त कीड़ी भी | वह चेहरा अपना नहीं हो सकता। कम से कम अपना चेहरा तो बिना न दब जाए, इसका खयाल रखना। यह महावीर को पता कैसे चला | | आईने के दिखाई पड़ जाना चाहिए। अपना! उसे भी देखने के लिए कि कीड़ी की इतनी चिंता करनी चाहिए!
आईना चाहिए? वह भी उधार; वह भी वापस रिफ्लेक्टेड; आईना जो भी आदमी मौन में जाएगा, उसके संबंध चींटी से भी उसी
जो कहेगा! तरह जुड़ जाते हैं, वृक्ष से भी उसी तरह जड़ जाते हैं, पत्थर से भी और ध्यान रखें, कोई आईना सच नहीं कह सकता। कोई आईना उसी तरह जुड़ जाते हैं, जैसे आदमियों से जुड़ते हैं। अब उसके लिए | | सच नहीं कह सकता। आईना अपनी भाषा में कुछ कहेगा; आईने जीवन सर्वव्यापी हो गया। अब सबमें एक का ही विस्तार हो गया। | के ढंग से कहेगा। तो आपने आईने देखे होंगे, जिनमें आप लंबे हो अब यह चींटी नहीं है, जो दब जाएगी, जीवन है। और यह वृक्ष | गए हैं, मोटे हो गए हैं, दुबले हो गए हैं, चेहरा कुरूप हो गया है। नहीं है, जो कट जाएगा, जीवन है। अब जहां भी कुछ घटता है, | वे आईने अपनी-अपनी भाषा में बोल रहे हैं। एक हमने कामन वह जीवन पर घटता है। और मौन में होकर जिसने इस विराट आईना बना रखा है, सबको धोखा देने के लिए। उसके सामने हम जीवन को अनुभव किया, जब भी कहीं कुछ कटता है, तो मैं ही खड़े हो जाते हैं; समझ लेते हैं, यही मेरा चेहरा है; यही। कटता हूं फिर, फिर कोई दूसरा नहीं कटता है।
नहीं, भीतर कभी चुप और मौन होकर आंख बंद करके शरीर कृष्ण कहते हैं, स्वभाव अध्यात्म है।
को कहें कि ठीक, तेरी यह आकृति है, मान गए। मेरी आकृति क्या