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गीता दर्शन भाग-44
दो-चार जगह से खोज करें. तो शायद खयाल में आ जाए। खड़ी हो गई थी, वह कैसी उदास लौटती है! बेकार!
मैं एक भाषा बोल रहा हूं। अगर मैं इस भाषा बोलने वाले लोगों । उसने कहा, क्या मामला है? अकेले! नसरुद्दीन ने कहा, के घर में पैदा न होता, मैं दूसरी भाषा बोलता, तीसरी बोलता। | | बिलकुल अकेला। उसने कहा, तुम अभी विवाद कर रहे थे किसी जमीन पर कोई तीन सौ भाषाएं हैं। किसी भी घर में पैदा हो सकता से? उसने कहा, किसी से कर नहीं रहा था। आज कोई बकवासी था तीन सौ भाषाओं के, तो वही भाषा बोलता।
आया ही नहीं, तो फिर चैन नहीं पड़ी। तो मैं खुद ही कर रहा था। भाषा स्वभाव नहीं है, ट्रेनिंग है, सिखाई गई है। इसलिए इस भ्रम | | उस आदमी ने कहा कि अकेले? अकेले कर रहे थे! समझ में में कोई न रहे कि अगर आपको न सिखाया जाए, तो भी आप कोई | आता है कि आदमी अकेले में कभी-कभी बातचीत करता है। तो भाषा बोलेंगे। नहीं, कोई भाषा न बोलेंगे। अगर आपको जंगल लेकिन वह भी चुपचाप करता है, क्योंकि जब दसरा है ही नहीं में छोड़ दिया जाए पैदा होते ही से और भेड़िए आपको पाल लें, तो | सुनने वाला, तो जोर से बोलने की जरूरत क्या है! भीतर ही करो, आप कोई भी भाषा नहीं बोलेंगे।
जैसा सब करते हैं! , और ऐसा नहीं कि यह मैं कल्पना से कह रहा हूं। ऐसी घटनाएं नसरुद्दीन ने कहा कि उसमें बहुत मजा नहीं आता, क्योंकि अपने घटी हैं बहुत, जब भेड़िए बच्चों को उठाकर ले गए और उन्होंने
और उन्होंने | | को पता ही नहीं चलता, क्या कह रहे हैं। सनना भी जरूरी है। और उनको बड़ा कर लिया। वे बच्चे कोई भी भाषा नहीं बोल सकते। | इधर कुछ दिन से मैं जरा कम सुनने लगा हूं। उम्र है। तो जब तक हां भेड़ियों की गुर्राहट कर सकते हैं; उतनी भाषा बोल सकते हैं। | जोर से न बोलूं, सुनाई नहीं पड़ता। क्यों? क्योंकि भाषा सीखनी पड़ती है।
तो उस आदमी ने कहा, यह भी मान लो कि तुम बहरे हो गए हो लेकिन भाषा के पीछे छिपा हुआ एक तत्व और है, वह है मौन। और जोर से सुनने के लिए बोल रहे हो, लेकिन इसमें विवाद की मौन सीखना नहीं पड़ता। इसलिए भाषा कृत्रिम है; मौन स्वभाव है। कहां गुंजाइश है, क्योंकि दूसरा तो मौजूद ही नहीं है!
यह मैं उदाहरण के लिए कह रहा हूं। इस तरह एक-एक चीज | नसरुद्दीन ने कहा कि मुझे दोनों रोल अदा करने पड़ रहे हैं। इधर की पर्त भीतर है। एक चीज सीखी हुई है-कई चीजें सीखी हुई हैं | | से भी बोल रहा हूं, उधर से भी बोल रहा हूं। ऊपर-भीतर कहीं खोजने पर वह जगह मिल जाएगी, जो | फिर भी उस आदमी ने कहा कि होगा, दोनों तरफ से बोलो, फिर स्वभाव है।
भी इतनी तेजी की क्या जरूरत है? तुमको पता ही है कि तुम्हीं दोनों मौन स्वभाव है। इसलिए मौन साधना बन गया। क्योंकि वह तरफ हो! स्वभाव में ले जाने का मार्ग है, हो सकता है। लेकिन अगर आप | नसरुद्दीन ने कहा कि मैं किसी बकवासी की बातें कभी नहीं सुन चुप बैठकर भीतर भी बोलते चले जाएं, जैसा कि हम करते हैं। और | | पाता। और जब उस तरफ से मैं बकवास करता हूं, तो इस तरफ से आमतौर से जब कोई नहीं होता, तब हम जितने जोर से बोलते हैं, | क्रोध आ जाता है। और जब इस तरफ से बकवास करता हूं, तो उतना जब कोई होता है, तो नहीं बोलते। क्योंकि दूसरे का भी थोड़ा | उस तरफ से क्रोध आ जाता है! तो लिहाज रखना ही पड़ता है।
सभी लोग यही कर रहे हैं। अकेले में भी, वह जो मौन लेकर मुल्ला नसरुद्दीन एक दिन अपने कमरे में जोर से किसी से विवाद | | बैठा हुआ है, वह भीतर इतनी बकवास और इतने विवाद में पड़ा कर रहा है। बाहर से उसका एक मित्र निकल रहा है। उसने खिड़की हुआ है, जिसका हिसाब नहीं। से झांककर देखा। विवाद काफी रोचक है और तेजी पर आ गया मौन का अर्थ? मौन का अर्थ यह नहीं कि होंठ बंद हो गए। मौन है, और मारपीट होगी, ऐसे आसार हैं। मारपीट छोड़कर तो कोई | का अर्थ है, भीतर भाषा बंद हो गई, भाषा गिर गई। जैसे कोई भाषा नहीं जा सकता कहीं, हालांकि वह मित्र मस्जिद जा रहा था। तो | ही पता नहीं है। और अगर आदमी स्वस्थ हो, तो जब अकेला हो, उसने सोचा, जाने भी दो आज। आकर दरवाजा खटखटाया। अंदर उसे भाषा पता नहीं होनी चाहिए। क्योंकि भाषा दूसरे के साथ जाकर देखा तो मुल्ला अकेला है! बड़ी निराशा हुई। जैसी कि सभी | | कम्युनिकेट करने का साधन है, अकेले में भाषा के जानने की को होती है। अगर दो आदमी लड़ रहे हों और फिर लड़ाई न हो | | जरूरत नहीं है। अगर वह भाषा गिर जाए, तो जो मौन भीतर बनेगा, और दोनों अचानक अहिंसात्मक हो जाएं, तो देखा है, भीड़ जो वह स्वभाव है, वह किसी ने सिखाया नहीं है।
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