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* स्वभाव अध्यात्म है *
कृष्ण कहते हैं, वही है ब्रह्म, जिसका कभी नाश नहीं होता। छोड़ती; वह असर्ट करती है। तब फिर रूप का संघर्ष शुरू हो जाता रूप का नाश है, अरूप का नाश नहीं, अरूप है ब्रह्म। ऐसा | है। किसी तरह बामुश्किल जिंदगी के साथ ठहर नहीं पाते कि मौत सच्चिदानंद, विनाश जिसका नहीं होता, वही ब्रह्म है। दरवाजे पर दस्तक दे देती है कि चलो, वक्त हो गया। इधर अभी
निश्चित ही, बार-बार कृष्ण जैसे लोग कहते हैं कि वह ब्रह्म हम आ भी नहीं पाए थे, उधर जाने का वक्त हो गया। ठहर भी नहीं सच्चिदानंद है, परमानंद है, अंतिम आनंद है। यह क्यों दोहराते हैं! | पाए थे कि तंबू उखाड़ो। अभी बल्लियां गाड़ ही रहे थे, अभी
असल में जहां-जहां रूप है, वहां-वहां मत्य होगी। क्योंकि एक | खूटियां लगाई ही थीं, अभी तंबू पूरा फैल भी नहीं पाया था। रूप दूसरे रूप में बदलेगा। और जहां-जहां रूप है, वहां विनाश | __ किसका तंबू कब पूरा फैल पाता है! खूटियां गड़ी रह जाती हैं, होगा। विनाश होगा, तो पीड़ा होगी, बीमारी होगी, संताप होगा, उखड़ने का वक्त आ जाता है। इधर हम तैयारी कर रहे थे कि और चिंता होगी। हम एक रूप को पकड़ लेंगे, फिर दूसरा रूप आएगा। खूटियां कैसे गाड़ें, कि खबर आती है, उखाड़ो, वक्त जाने का हो हम बचपन को पकड़ लेंगे, फिर जवानी आने लगेगी, तो बचपन का | गया। तंबू समेटो! रूप नष्ट होगा। फिर बच्चे को पीड़ा होगी। वह तकलीफ में पड़ेगा। ___ एक रूप बन नहीं पाता कि दूसरा रूप भीतर से आकर खबर देता
पश्चिम के मनोवैज्ञानिक अनुभव कर रहे हैं कि वह जो | | है कि चलने की तैयारी है। इसलिए रूप के साथ कभी भी आनंद एडॉलसेंस है, वह जो एक उम्र है दस साल से चौदह साल के बीच नहीं हो सकता। आकार के साथ कभी आनंद नहीं हो सकता। दुख की, वह बड़ी पीड़ा की है। क्योंकि बच्चा छोड़ नहीं पाता अपने | ही होगा, संताप ही होगा, एंग्विश ही होगी, नर्क ही होगा। पुराने फार्म को, अपनी पुरानी आकृति को, और नई आकृति उसमें | | इसलिए कृष्ण जैसे लोग बार-बार दोहराते हैं कि वह जो अरूप बनने लगती है। तो वह काम बच्चों जैसे भी करता है और अकड़ | है, वह जो शाश्वत है, वह जो नहीं विनष्ट होता है, वह परम आनंद बड़ों जैसी भी दिखाता है। यह बड़े लोगों को भी, मां-बाप को भी | भी है। समझ में नहीं आती है। दोनों बातें एक साथ करने लगता है। पुराना और अपना स्वरूप अर्थात स्वभाव अध्यात्म है। रूप भी उससे छोड़ा नहीं जाता, तो अपनी मां की साड़ी का पुछल्ला बड़ी कीमत का सूत्र कहा है। यह एक सूत्र भी गीता को गीता पकड़कर भी घूमना चाहता है; और मां अगर जरा डांट दे, तो वह बना देने के लिए काफी है। बाकी सब फेंक दिया जाए, तो चलेगा। पूरा सिर ऊंचा उठाकर खड़ा हो जाता है, तो बाप की ऊंचाई का हो स्वभाव अध्यात्म है—काफी है। जाता है। और मां के सामने घूरकर देख ले, तो मां भी घबड़ा जाती . लाओत्से ने अपनी जिंदगीभर इस सूत्र के अतिरिक्त किसी सूत्र है। और ये दोनों उसमें होते हैं।
की व्याख्या नहीं की स्वभाव अध्यात्म है। इसलिए एडॉलसेंस जो है, वह बड़ी पीड़ा का वक्त है। पुराना नहीं, लेकिन गीता पढ़ने वाले को भी इस सूत्र पर ज्यादा ध्यान — रूप छूटता नहीं, नया रूप असर्ट करता है, तोड़ता है। जैसे बीज | नहीं जाता कि स्वभाव अध्यात्म है। क्या मतलब है?
टूटता हो, तो पीड़ा तो होगी। फिर एक आदमी बामुश्किल इसमें __ स्वभाव अध्यात्म है का अर्थ है कि अपने भीतर उसकी तलाश प्रवेश कर जाता है। काफी वक्त लगता है। किसी तरह प्रवेश कर | कर लेनी है, जो सदा से है और मेरा बनाया हुआ नहीं है। स्वभाव जाता है। फिर जवानी के साथ ठहर जाता है। तो थोड़े ही दिनों में | | अध्यात्म है, इसका अर्थ है, मुझे उसे खोज लेना है, जिसके द्वारा बुढ़ापा धक्के देने लगता है। तो बड़ी मुश्किल होती है; फिर बड़ी | | मेरा सब कुछ बना है और जो स्वयं अनबना है, अनक्रिएटेड है। मुश्किल होती है।
लेकिन हम सब तो इतने कृत्रिम हैं कि उस स्वभाव का पता मुल्ला नसरुद्दीन से किसी ने पूछा है; एक दिन शराबघर से | | लगाना बहुत मुश्किल होगा। हम तो कृत्रिम होने की एक इतनी बड़ी लौटता है, एक मित्र ने उससे कहा कि नसरुद्दीन, बुढ़ापे के लक्षण | | भीड़ हैं कि हम कौन हैं, हमें इसका ही पता नहीं है। शुरू हो गए। तुम्हारे बाल सफेद पड़ने लगे। नसरुद्दीन ने कहा, स्वभाव अध्यात्म है। फिक्र छोड़ो बालों की। बाल हो जाएं सफेद, दिल तो अभी भी | ___ मैं कौन हूं, यह मुझे पता नहीं! ऐसा नहीं कि मुझे पता नहीं कि काला है।
मैं कौन हूं। कौन हूं, बहुत कुछ मुझे पता है, लेकिन वह कोई भी बाल जब सफेद हो जाते हैं, तब भी जवानी पीछा तो नहीं | | स्वभाव नहीं है। वह सब सीखा हुआ है, कल्टिवेटेड है। जरा कुछ