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गीता दर्शन भाग-4
कभी भी दिखाई नहीं पड़ेगा। लेकिन अरूप को कैसे देखें ? कहां देखें ?
पानी दिखता है, भाप दिखती है, बीच का वह अरूप तो दिखाई नहीं पड़ता। अगर उसे देखना हो, तो सबसे पहले व्यक्ति को स्वयं में ही उस अरूप को देखना पड़ता है।
जब आपका एक विचार जाता है और दूसरा आता है, तो दोनों विचारों के बीच में भी फिर वही कड़ी होती है, जब कोई विचार नहीं होता । विचार एक रूप है, दूसरा विचार दूसरा रूप है - थाट फार्म है— विचार की अपनी आकृतियां हैं।
यह जानकर आप हैरान होंगे कि विचार भी आकृतिहीन नहीं हैं। जब आप क्रोध में होते हैं, तब आपके चित्त की आकृति भिन्न होती है। जब आप प्रेम में होते हैं, तब आपके चित्त की आकृति भिन्न होती है।
कभी आपने खयाल किया, जब आप कंजूसी से भरे होते हैं, तो सिर्फ कंजूसी नहीं होती, भीतर भी कोई चीज सिकुड़ जाती है। जब आप किसी को प्रेम से कुछ देते हैं, तो सिर्फ देना बाहर ही नहीं घटता, भीतर भी कुछ फैल जाता है। आकार है। जब हम कहते हैं। कंजूस, तो उस शब्द में भी सिकुड़ने का भाव है; कोई चीज सिकुड़ गई है। जब हम कहते हैं दानी, वाला, प्रेमी, बांटने वाला, तो कोई चीज बंटती है और फैल जाती है।
प्रत्येक विचार का आकार है । और आपके भीतर प्रतिपल आकार बदलते रहते हैं। आपके चेहरे पर भी आकार छप जाते हैं। जो आदमी निरंतर क्रोध करता है, वह जब नहीं भी क्रोध करता है, तब भी लगता है, क्रोध में है। वह निरंतर क्रोध की जो आकृति है, उसके चेहरे पर स्थायी हो जाती है और फिर चेहरा उसको छोड़ता नहीं। क्योंकि चेहरे पता है कि कभी भी अभी थोड़ी देर में फिर जरूरत पड़ेगी। वह पकड़े रखता है, जस्ट टु बी इफिशिएंट, कुशल होने की दृष्टि से । अब ठीक है, जब बार- बार जरूरत पड़ती है, तो उसको हटाने की आवश्यकता भी क्या है! जब तक हटाएंगे, तब तक पुनः आवश्यकता आ जाएगी। तो रहने दो। तो फिक्स्ड इमेज बैठ जाती है चेहरे पर, सभी लोगों के। और कभी-कभी तो ऐसा हो जाता है कि पीछा ही नहीं छोड़ता ।
हजरत मूसा के संबंध में सुना है। हजरत मूसा दुनिया के उन थोड़े-से लोगों में एक हैं, कृष्ण या बुद्ध या महावीर जैसे एक सम्राट ने अपने चित्रकार को कहा कि तू जा और हजरत मूसा का एक चित्र बना ला। हजरत मूसा जिंदा थे। वह चित्रकार गया और
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चित्र बना लाया।
सम्राट ने चित्र देखा और उसने कहा कि जो कुछ हजरत मूसा के संबंध में मैंने सुना है उसमें और इस चित्र में बहुत फर्क मालूम पड़ता है। यह चित्र देखकर मालूम पड़ता है कि किसी बहुत दुष्ट, हिंसक, क्रोधी आदमी का चित्र है। इसमें हजरत मूसा की खबर नहीं मिलती।
उस चित्रकार ने कहा कि आश्चर्य ! आपने कभी हजरत मूसा को | देखा? उस सम्राट ने कहा, मैंने देखा नहीं है, सुना है उनके बाबत ; और उनसे मेरा लगाव भी बन गया। इसीलिए तो चित्र बनाने तुझे भेजा। तो उसने कहा कि मैं देखकर आ रहा हूं। महीनों बैठकर इस चित्र को मैंने बनाया है। इसमें रत्तीभर भूल नहीं है। और हजरत मूसा से पूछकर आया हूं कि चित्र ठीक बन गया जनाब ! उन्होंने कहा कि बिलकुल ठीक है। तब आया हूं।
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सम्राट ने कहा, लेकिन कहीं न कहीं कुछ न कुछ भूल है । और मालूम होता है कि हजरत मूसा या तो दयावश तुझसे कह दिए कि ठीक है, या उन्होंने अपनी शक्ल कभी आईने में न देखी होगी। और कोई कारण नहीं हो सकता। लेकिन सम्राट की यह जिद्द, जिसने देखा न हो मूसा को हैरानी की थी। चित्रकार ने कहा, फिर चलिए ।
और हजरत मूसा के पास चित्रकार और सम्राट पहुंचे। सम्राट भी थोड़ा हैरान हुआ चेहरे को देखकर। चित्रकार ही ठीक मालूम | पड़ता है। बाजी हार गया मालूम हुआ उसे। फिर भी पूरी बाजी हार | जाने के बाद सम्राट ने मूसा से कहा कि एक सवाल मैं पूछने आया
हूं। एक बाजी हार गया इस चित्रकार के साथ। पूछना मुझे यही है। | कि जो कुछ मैंने आपके संबंध में सुना है, उसे सुनकर मैंने आपकी एक आकृति बनाई थी, लेकिन इस आकृति में वह बात नहीं है। हजरत मूसा ने कहा, यह आकृति मेरी पुरानी है और पीछा नहीं | छोड़ती। आज से बीस साल पहले ही हुआ करता था। जो कुछ इस चित्र में है, वही हुआ करता था। ऐसा ही क्रोधी, ऐसा ही दुष्ट ऐसा ही हिंसा से भरा हुआ। अब सब बदल गया, लेकिन चेहरे पर पुराने चिह्न रह गए हैं।
चिह्न छूट जाते हैं। विचार भी आकृति रखता है, भाव भी आकृति | रखता है। इन आकृतियों के बीच में अगर आप देख पाएं, तो अरूप का दर्शन होता है। दो विचार के बीच में खड़े जाएं, दो विचार के बीच में झांक लें, दो विचार के बीच में जो खाली जगह छूटे, स्पेस बने, उसमें डूब जाएं और आपको अरूष का दर्शन हो जाए। भीतर अगर हो जाए, तो फिर आप बाहर भी दो आकारों के बीच में कद सकते हैं और निराकार को जान सकते हैं।