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________________ * स्वभाव अध्यात्म है । सुबह मेरे पास कोई आता है और कहता है, अपरिसीम आनंद बदलता है, लेकिन एक बात पता चल गई कि सिर्फ रूप ही बदलता में हूं। और उसकी बात मैं सुनता हूं और उसकी आंखों में झांकता | है। लेकिन रूप के पीछे कुछ है जरूर, जो नहीं बदलता है। उसका हूं और सोचता हूं, कितनी देर लगेगी कि यह आकर मुझे कहेगा, | कोई पता नहीं है। इसलिए विज्ञान की खोज निगेटिव है, वह उदासी फिर आ गई! ज्यादा देर नहीं लगेगी। भीतर भी मन में | नकारात्मक है। उसे एक बात पता चल गई कि जो बदलता है, वह जो बनता है. वह भी बिगडता रहता है। और हम मन के अतिरिक्त कुछ जानते नहीं। लेकिन रूप के भीतर कुछ न बदलने वाला भी सदा मौजूद है, कृष्ण कहते हैं और बड़ी छोटी परिभाषा, इससे छोटी और क्या | अन्यथा रूप भी बदलेगा कैसे? किस पर बदलेगा? बदलाहट के परिभाषा होगी-कि वह, जिसका नाश नहीं होता है, वह ब्रह्म है। | लिए भी एक न बदलने वाला आधार चाहिए। परिवर्तन के लिए भी क्या है वह जिसका नाश नहीं होता है? कहां है? कौन है? एक शाश्वत तत्व चाहिए। और दो परिवर्तन के बीच में जोड़ने के दो-तीन बातें समझ में खयाल में ले लेनी जरूरी हैं। लिए भी कोई अपरिवर्तित कड़ी चाहिए। एक तो, जहां भी आप विनाश देखें, वहां एक बात गौर से क्या आपने कभी खयाल किया कि जब पानी भाप बनता है, तो देखना, सिर्फ रूप विनष्ट होता है, रूपायित नहीं। आकार विनष्ट जरूर बीच में एक क्षण होता होगा, एक गैप, इंटरवल, जब पानी होता है, लेकिन जो आकार के भीतर था, वह नहीं। दि कंटेनर तो | भी नहीं होता और भाप भी नहीं होती। लेकिन अभी विज्ञान को उस नष्ट हो जाता है, बट दि कंटेंट, वह नष्ट नहीं होता। पानी को भाप | गैप का, उस अंतराल का कोई पता नहीं है। विज्ञान कहता है, पानी बना दो, तो पानी तो विनष्ट हो गया; लेकिन क्या सच ही पानी | हम जानते हैं; गर्म करते हैं; फिर एक क्षण आता है कि भाप को विनष्ट हो गया? तो फिर भाप में कौन है? भाप को ठंडा कर लो, | हम जानते हैं। भाप विनष्ट हो गई; लेकिन क्या सच में ही विनष्ट हो गई? क्योंकि | लेकिन पानी और भाप के बीच में कोई एक क्षण जरूरी है; अब जो पानी है, उसमें कौन है? नहीं; विनाश सिर्फ रूप होता है, क्योंकि जब तक पानी पानी है, तो पानी है; और जब वह भाप हो आकार होता है; रूपायित, रूप से जो घिरा है, वह नहीं। गया, तो भाप हो गया। लेकिन कोई एक क्षण चाहिए, जब पानी लेकिन हमें रूप ही दिखाई पड़ता है, क्योंकि इंद्रियां रूप को ही | | के भीतर की जो वस्तु है, जो कंटेंट है, जो आत्मा है, वह पानी भी देख सकती हैं। वह जो रूप में घिरा है, वह नहीं। जब आप जल | न हो। क्योंकि अगर वह पानी होगी, तो भाप न हो सकेगी। और को देखते हैं, तो आप उसको कभी नहीं देख पाते, जो जल के भीतर | | भाप भी न हो, क्योंकि अगर वह भाप हो चुकी होगी, तो पानी न छिपा है। सिर्फ रूप! फिर गर्मी दे दी, रूप बदल गया। भाप बन होगी। एक क्षण के लिए न्यूट्रल... गई। भाप को भी जब आप देखते हैं, तब फिर एक रूप, एक फार्म, __ जैसे कोई आदमी गाड़ी के गेयर बदलता है, तो अगर पहले गेयर एक आकार! फिर भी वह नहीं दिखाई पड़ता, जो भीतर छिपा है। से दूसरे गेयर में गाड़ी डालता है, तो चाहे कितनी ही त्वरा से डाले, वह जो भीतर छिपा है, वह तो विनष्ट नहीं होता। कितनी ही तेजी से डाले, चाहे आटोमैटिक ही क्यों न हो गेयर, विज्ञान कहता है, कोई भी चीज विनष्ट नहीं होती। यह बहत मजे | आदमी को डालना भी न पड़े, पर बीच में एक न्यूट्रल, एक तटस्थ की बात है। विज्ञान की तीन सौ वर्षों की खोज कहती हैं कि कोई | क्षण है, जब गेयर ऐसी जगह से गुजरता है, जहां वह पहले गेयर भी चीज विनष्ट नहीं होती। और कृष्ण कहते हैं, अर्जुन, जो विनष्ट | में नहीं होता और दूसरे में पहुंचा नहीं होता। यह जरूरी क्षण है, यह नहीं होता, वही ब्रह्म है। क्या विज्ञान को कहीं से कोई गंध मिलनी | कड़ी है। शुरू हो गई ब्रह्म की? क्या कहीं से कोई झलक विज्ञान को पकड़ लेकिन इस कड़ी का विज्ञान को अनुमान भर होता है। और वही में आनी शुरू हुई उसकी, जो विनष्ट नहीं होता? कड़ी ब्रह्म है। लेकिन इंद्रियों के द्वारा अनुमान भी हो जाए तो बहुत झलक नहीं मिली, लेकिन अनुमान मिला है। नाट ए ग्लिम्प्स, है। बट जस्ट एन इनफरेंस। एक अनुमान विज्ञान के हाथ में आ गया है। ___ कृष्ण कहते हैं, वह जो नहीं नाश को उपलब्ध होता है, वही उसको एक बात खयाल में आ गई है कि सिर्फ रूप ही बदलता है। ब्रह्म है। ध्यान रहे, विज्ञान को अभी उसका कोई पता नहीं चला जो नहीं | | कहां है वह ब्रह्म? अगर आप रूप को देखते रहेंगे, तो वह ब्रह्म
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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