SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 32
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गीता दर्शन भाग-4 चाहिए, आइंस्टीन भी उत्तर नहीं दे सकता कि व्हाट इज़ टाइम? समय क्या है? और आप सब जानते हैं कि समय क्या है। हम सबको पता है। समय से ट्रेन पर पहुंचते हैं, समय से घर आते हैं, दफ्तर जाते हैं। कौन ऐसा आदमी होगा जिसको पता नहीं कि समय क्या है! लेकिन आइंस्टीन भी जवाब नहीं दे सकता कि समय क्या है। पूछ लो, तो मुश्किल खड़ी हो जाती है। अज्ञान छिपा- छिपा चलता है, जब तक कोई पूछता नहीं।' पूछना कोई शुरू कर दे, अज्ञान के अतिरिक्त हाथ में कुछ नहीं रह जाता। सुकरात ने लोगों को पूछकर दिक्कत में डाल दिया। जवाब तो दिए नहीं। शायद सुकरात बुद्ध से भी ज्यादा अनुभवी हो चुका था। उसने सोचा कि इसके पहले कि तुम पूछो, बेहतर है कि हम ही पूछ लें ! लेकिन कृष्ण इस लिहाज से अदभुत हैं। शायद गैर-अनुभव के कारण ही, क्योंकि वे ज्यादा प्राचीन हैं। वे उत्तर दिए चले जाते हैं। वे अर्जुन को टोकते भी नहीं कि तू क्या पूछ रहा है? क्यों पूछ रहा है? और इसका जवाब मैं दे चुका हूं। नहीं, वे फिर से उत्तर देने को राजी हो जाते हैं। कृष्ण ने जो उत्तर दिया है, वह हम समझें। अर्जुन का पहला प्रश्न है, ब्रह्म क्या है ? कृष्ण ने कहा, जिसका कभी नाश न हो । फिर तो साफ हो गई बात कि इस जगत में ब्रह्म कहीं भी नहीं है। यहां तो जो भी है, सभी का नाश है। आपने कोई ऐसी चीज देखी है, जिसका कभी नाश न हो? कभी कोई ऐसी चीज सुनी है, जिसका कभी नाश न हो? कभी कोई ऐसा अनुभव हुआ है, जिसका कभी नाश न हो ? यहां तो जो भी है, सभी नाशवान है। यहां तो होने की शर्त ही विनाश है । होने की एक ही शर्त है, न होने की तैयारी। जन्म होने के साथ मृत्यु के साथ समझौता करना पड़ता है। जन्म के साथ ही दस्तखत कर देने होते हैं मौत के सामने कि मरने को तैयार हूं। यहां तो कुछ पाया कि खोने के अतिरिक्त और अब कुछ होने वाला नहीं है। यहां तो कोई मिला, तो बिछुड़ना होगा। यहां गले मिलने का इंतजाम, सिर्फ गले को अलग कर लेने के लिए है। यहां सभी कुछ नाशवान है। यहां जो बनता हुआ दिखाई पड़ रहा है, एक तरफ से देखो तो मालूम होता है बन रहा है, दूसरी तरफ से देखो मालूम होता है कि बिगड़ रहा है। एक धर्मगुरु के एक छोटे लड़के ने उससे पूछा है एक दिन कि यह आदमी कैसे बना? और यह आदमी जब मिटता है, तो क्या हो 6 जाता है? तो उस धर्मगुरु ने कहा, डस्ट अनटु डस्ट; मिट्टी में मिट्टी मिल जाती है। मिट्टी से ही आदमी बनता है, मिट्टी में ही आदमी गिर जाता है। दूसरे ही दिन सुबह वह धर्मगुरु अपने तख्त पर बैठकर अपनी किताब पढ़ता है। उसका छोटा बेटा आया, तख्त के नीचे घुस गया, और उसने वहां से चिल्लाया कि पिताजी, जरा नीचे आइए। ऐसा लगता है कि या तो कोई बन रहा है, या तो कोई मिट रहा है! एक मिट्टी का ढेर लगा हुआ है। तख्त के नीचे धूल इकट्ठी हो गई है। बेटे ने कहा कि या तो कोई बन रहा है, या कोई मिट रहा है; जल्दी | नीचे आइए! धूल के ढेर को अगर आदमी सिर्फ धूल है, तो दोनों तरह से देखा जा सकता है - या तो कोई बन रहा है, या कोई मिट रहा है। असल जब भी कोई बन रहा है, तभी कोई मिट भी रहा है। और कहीं दूर नहीं, वहीं। जहां बनना चल रहा है, वहीं मिटना चल रहा है। यहां तो सभी कुछ विनाश है। यहां ठहराव नहीं है। यहां तो सभी कुछ नदी की धार की तरह बह रहा है। छू भी नहीं पाते किनारा कि छूट जाता है। मिलन हो भी नहीं पाता कि विदा की घड़ी आ जाती है। और कृष्ण कहते हैं, वह जिसका विनाश नहीं है, वह है ब्रह्म । अर्जुन शायद ही समझ पाए। असल में अर्जुन तो मान ही यह रहा है कि मैं इन लोगों को अगर मारूं जो सामने खड़े हैं, तो विनाश के लिए मैं जिम्मेवार हो जाऊंगा। लेकिन कृष्ण यह कह रहे हैं कि यहां तो जो है, वह सभी विनाशवान है। और अगर तू अविनाश में ठहरना चाहता है कि तुझसे विनाश न हो, तो तुझे ब्रह्म में ठहरना पड़ेगा। लेकिन वह ब्रह्म कहां है? वह कहीं दिखाई नहीं पड़ता; क्योंकि आंख जिसे देख सकती है, वह नष्ट होगा। वह कहीं सुनाई नहीं पड़ता; क्योंकि कान जिसे सुन सकते हैं, वह खो जाएगा। उसका कहीं स्पर्श नहीं होता; क्योंकि हाथ जिसे छू सकते हैं, वह नष्ट होगा ही। इंद्रियां जिसे जान सकती हैं, वह विनाश का क्षेत्र है। असल में इंद्रियां जान ही उसे सकती हैं, जो बन रहा है या मिट रहा है। उसे नहीं, जो है, दैट व्हिच इज़; उसे नहीं, जो है। अगर उस है को जानना है, तो उसे जानने का उपाय इंद्रियां नहीं हैं। स्वयं के अंतस में उस जगह को खोज लेना है, जहां इंद्रियों की कोई गति नहीं होती है। लेकिन वह कहां है? भीतर भी अगर हम देखने जाएं, तो भी तो वह नहीं मिलता। भीतर देखने जाएं, तो मन दिखाई पड़ता है, वह भी विनाशवान है।
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy