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* स्वभाव अध्यात्म है
मैं बोल रहा था, तब आप सवाल तैयार कर रहे थे।
मुझसे पूछे चले जाते हैं! मैंने मृत्यु पछा, तो आप पूछने लगे कि और ऐसा भी नहीं लगता कि वे सवाल, कृष्ण जो बोलते हैं किसलिए? ध्यान पूछता हूं, तो आप पूछते हैं, किसलिए? बुद्ध उससे पैदा होते हों। वे सवाल अर्जुन के अपने ही हैं; कृष्ण का | कहते हैं, जब तक मैं यह न जान लूं कि सच में तू जानना चाहता बोलना इररेलेवेंट है, असंगत है। कृष्ण के बोलने को कहीं सुना ही | | है, तब तक मैं उतर नहीं देता हूं। नहीं जा रहा है।
___ शायद—क्योंकि बुद्ध की करुणा में कृष्ण की करुणा से रत्तीभर लेकिन फिर भी कृष्ण जैसे व्यक्ति उत्तर देते हैं, इस आशा में कि | भी भेद तो नहीं है लेकिन शायद कृष्ण और अर्जुन की बातचीत शायद किसी क्षण में थका हुआ अर्जुन का मन नए प्रश्न न खोज | का अनुभव बुद्ध के लिए काफी महंगा पड़ा है। उस अनुभव के पाए, नए सवाल न उठा पाए और शायद एक किरण भी प्रकाश की | कारण शायद अब वे राजी नहीं हैं कि इतनी लंबी गीता चले; वही उसके भीतर पहुंच जाए। उत्तर का एक छोटा-सा स्वाद भी उसे आ | | सवाल आदमी बार-बार पूछता रहे। जाए, तो वह फिर घोड़े की तरह घास के पीछे चल सकता है। इस साक्रेटीज के पास अगर कोई पूछने जाता था, तो फिर दुबारा आशा में पूरी गीता कही गई है। और कृष्ण जैसा उत्तर देने वाला पूछने नहीं जाता था। क्यों? क्योंकि साक्रेटीज उत्तर तो देता ही नहीं आदमी बहुत मुश्किल से होता है; बहुत मुश्किल से होता है। । | था। आप पूछकर अगर फंस बैठे, तो आपसे इतने प्रश्न पूछता था
बुद्ध बहुत-से प्रश्नों के लिए इनकार कर देते थे। वे कहते थे, | कि दुबारा आप कभी उस रास्ते नहीं निकलते, जहां साक्रेटीज रहता ये सवाल पूछो ही मत। मैं इनके जवाब दूंगा ही नहीं। क्योंकि वे | | है। साक्रेटीज को एथेंस के लोगों ने जहर दिया, उसमें सबसे बड़ा कहते थे, ये सवाल तुम्हारे सवाल ही नहीं हैं; ये तुम्हारे प्राणों से कारण यही था कि साक्रेटीज ने एथेंस के हर आदमी को अज्ञानी कहीं पूछे ही नहीं जा रहे हैं। तुम वही पूछो, जो सच में तुम जानना | | सिद्ध कर दिया था, प्रश्न पूछ-पूछकर। चाहते हो। मत पूछो वह, जो तुम जानना नहीं चाहते हो। | अगर आप पूछते कि ईश्वर है? तो साक्रेटीज पहले पूछता,
आदमी बद्ध के पास आता है, वह पछता है कि मत्य ईश्वर से आपका क्या अर्थ है? अब आप फंसे। आप कहेंगे, अर्थ क्या है ? बुद्ध कहते हैं, तू मृत्यु को जानना चाहता है? वह आदमी | ही मालूम होता, तो हम पूछते ही क्यों? साक्रेटीज कहता है, जिस कहता है, जानना इसलिए चाहता हूं, क्योंकि बचना चाहता हूं। और | शब्द का अर्थ ही नहीं मालूम, उसका तुम प्रश्न कैसे बनाओगे? जानने का कोई प्रयोजन नहीं है। अगर यह मृत्यु कुछ है, तो मैं जान | | एथेंस के एक-एक आदमी को उसने उलझन में डाल दिया था। लूं, ताकि बच जाऊं। पर बुद्ध कहते हैं, जानना हो तो मृत्यु में प्रवेश आखिर एथेंस गुस्से में आ गया। उस नगर ने कहा कि यह आदमी करना पड़ेगा, उसके अतिरिक्त जानने का कोई उपाय नहीं है। तो तू | इस तरह का है कि जवाब तो देता नहीं, और उलटे हम सबको छोड़; यह सवाल तू छोड़। तू कुछ और सवाल पूछ, जो तू जानना | | अज्ञानी सिद्ध कर दिया है। चाहता हो प्रवेश करके।
___ छोटी-मोटी बातों पर अज्ञान सिद्ध हो जाता है। कोई पूछता नहीं, वह आदमी जरा मुश्किल में पड़ गया है। सोच-समझकर वह इसीलिए आपका ज्ञान चलता है। इसलिए छोटे बच्चे बहुत परेशान कहता है कि ठीक, तो कुछ ध्यान के संबंध में मुझे कह दें। करने वाले मालूम पड़ते हैं। इसलिए नहीं कि वे आपसे कुछ भी __ यह मजबूरी में पूछ रहा है। अब फंस ही गए हैं। अब बुद्ध कहते अनर्गल पूछते हैं। असल में वे ऐसे सवाल पूछते हैं कि पूछते से हैं, मृत्यु के बाबत बताऊंगा नहीं, क्योंकि तू मृत्यु में घुसने को राजी ही आपके जवाब डगमगा जाते हैं। कोई पूछता नहीं है, इसलिए नहीं। छोड़। कुछ और पूछ ले। अब वह यह भी नहीं कह सकता, चलता है। इतनी भी ईमानदारी नहीं है कि अब मैं नहीं पूछना चाहता, बात संत अगस्तीन कहता था कि कई सवाल ऐसे हैं कि जब तक तुम खतम हो गई; मैं नहीं पूछंगा। यह भी नहीं है। इतनी आनेस्टी भी, | नहीं पूछते, तब तक मुझे जवाब मालूम होते हैं। तुमने पूछा कि इतना भी व्यक्तित्व का बल नहीं है कि कह दे कि नहीं। जवाब गया! वह कहता था, मुझे अच्छी तरह पता है कि व्हाट इज़
अब कहते हैं, अब मिल ही गए, तो पूछ ही लो। तो वह टाइम-समय क्या है, मैं जानता हूं। बट दि मोमेंट यू आस्क मी; पूछता है, ध्यान क्या है? बुद्ध कहते हैं, तू ध्यान किसलिए चाहता | | पूछा नहीं तुमने कि सब गड़बड़ हुआ! है? वह आदमी कहता है कि मैं आपसे पूछने आया हूं, कि आप | आप भी जानते हैं कि समय क्या है। लेकिन आपको पता होना
अब एक आदमी