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________________ गीता दर्शन भाग-4 मुझसे इसका कुछ लेना-देना नहीं है ! तो अर्जुन जो करना चाहता है, उसे कर ले। लेकिन कृष्ण जैसे लोग थकते नहीं । यद्यपि यह बिलकुल चमत्कार है। अर्जुन जैसे थकाने वाले लोग हों, तो कृष्ण जैसे व्यक्ति को भी थक ही जाना चाहिए। लेकिन कृष्ण जैसे व्यक्ति थकते नहीं हैं। और क्यों नहीं थकते हैं? न थकने का कुछ राज है, वह मैं आपसे कहूं, फिर हम कृष्ण के उत्तर पर चलें। न थकने का एक राज तो यह है कि कृष्ण यह भलीभांति जानते हैं कि अर्जुन, तुझे तेरे प्रश्नों से कोई भी संबंध नहीं है। और अगर अर्जुन इस दौड़ में लगा है कि हम प्रश्न खड़े करते चले जाएंगे, ताकि किसी जगह तुम्हें हम अटका लें कि अब उत्तर नहीं है। कृष्ण भी उसके साथ-साथ एक कदम आगे चलते चले जाते हैं कि हम तुझे उत्तर दिए चले जाएंगे। कभी तो वह क्षण आएगा कि तेरे प्रश्न चुक जाएंगे और उत्तर तेरे जीवन में क्रांति बन जाएगा। कृष्ण को भलीभांति पता है, अर्जुन को प्रश्नों से प्रयोजन ज्यादा नहीं है, अन्यथा वे कहते कि यह तो तू पूछ चुका । कृष्ण जानते हैं। कि अर्जुन का सवाल सवाल नहीं है, अर्जुन की बीमारी है । उसे जवाब नहीं चाहिए, उसे रूपांतरण चाहिए, उसे ट्रांसफार्मेशन चाहिए; उसका आमूल जीवन बदले, ऐसी घड़ी चाहिए। लेकिन उस स्थिति तक लाने के लिए भी उसे फुसलाना पड़ेगा, उसे राजी करना पड़ेगा; अर्जुन की ही भाषा में बोलना पड़ेगा। "सुना है मैंने कि एक गांव में पहली ही बार कुछ लोग एक घोड़े को खरीदकर ले आए थे। उस देश में घोड़ा नहीं होता था और उस गांव के लोगों ने घोड़ा देखा भी नहीं था। जो लोग ले आए थे परदेश से, वे घोड़े के शरीर से, उसकी दौड़ से, उसकी गति से प्रभावित होकर आए थे। लेकिन उन्हें घोड़े के संबंध में कुछ भी पता नहीं था। एक बात पक्की थी, उन्हें घोड़े की भाषा बिलकुल पता नहीं थी। बहुत मुश्किल में पड़ गए। घोड़े को उन्होंने चलते देखा था हवा की रफ्तार से। गांव में लाकर उन्होंने पाया कि चार आदमी आगे से खींचें और चार आदमी पीछे से धकाएं, तब कहीं वह मुश्किल से कुछ-कुछ चलता है। बड़ी मुश्किल में पड़ गए कि अगर घोड़े को चलाने के लिए आठ आदमियों की जरूरत पड़े, तो यह घोड़ा है किसलिए! बहुत उन्होंने कहा कि हमने देखा था तुझे हवा से बातें करते! घोड़ा खड़ा सुनता रहा, वैसे ही जैसे अर्जुन सुनता रहा होगा । कृष्ण की भाषा और है। एंड देअर इज़ सच ए बिग गैप आफ लैंग्वेज, ऐसा बड़ा अंतराल है कि घोड़ा भी आदमी की भाषा समझ 4 | ले, कृष्ण की भाषा समझना अर्जुन को मुश्किल है। घोड़े और आदमी के बीच इतना अंतराल नहीं है। कुछ लोग तो कहते हैं, उतना ही अंतराल है, जितना गधे और घोड़े के बीच होता है। मगर उनकी बात सही न भी हो, फिर भी आदमी और घोड़े के बीच बहुत अंतराल नहीं है। कृष्ण और अर्जुन के बीच अंतराल ज्यादा है। पर मुश्किल में तो पड़ ही गए, अंतराल कम हो तो भी। और घोड़ा रोज सूखने लगा और दुबला होने लगा, क्योंकि उन्होंने पूछा ही नहीं था कि उसे भोजन भी देना है! अब चलना रोज-रोज मुश्किल होता चला गया। चार की जगह आठ और आठ की जगह दस और दस की जगह बारह, रोज-रोज आदमी बढ़ाने पड़ते जब उस घोड़े को चलाना पड़ता । पूरा गांव दिक्कत में पड़ गया। लोगों | ने कहा, तुम यह क्या ले आए हो? ऐसा वक्त आ जाएगा जल्दी कि पूरे गांव को चलाना पड़ेगा! लेकिन फिर चलाने से फायदा क्या है? ठीक था; एक दिन तमाशा हो गया; लोगों ने चलाकर भी देख लिया, फिर क्या करेंगे? गांव में एक अजनबी उस रात रुका था, उसने भी देखा यह खेल कि पूरा गांव धक्का देता है, घोड़े को चलाता है, घोड़ा चलता नहीं। | उसने कहा कि पागलो, क्या तुम्हें घोड़े की भाषा बिलकुल भी पता | नहीं ? उन्होंने कहा, हम इसी मुश्किल में पड़े हैं। वह आदमी सिर्फ घोड़े के सामने घास का एक छोटा-सा पूला लेकर चलने लगा। और घोड़ा इतना कमजोर था, तो भी तेजी से उसने गति पकड़ ली। वह आदमी दौड़ने लगा, तो घोड़ा दौड़ने लगा। घास का एक छोटा-सा पूला हाथ में लेकर ! घोड़े को घास का पूला समझ में आया। कृष्ण जैसे लोग भी हजार तरह की कोशिश करते हैं अर्जुन जैसे व्यक्तियों के सामने, जो उनकी समझ में आ जाए, उसे रखने की। लेकिन अर्जुन होशियार घोड़ा है, जल्दी उलझाव में नहीं आता। वह | कहता है, होगा । यह ठीक है। लेकिन अभी कुछ और सवाल बाकी हैं, अभी उनका जवाब चाहिए। वह असल में ध्यान नहीं देता कि | कृष्ण उसके सामने क्या रख रहे हैं। शायद वह अपने को बचाने के लिए ही यह कर रहा है। कहीं कृष्ण की बात सुनाई न पड़ जाए, इसलिए वह जल्दी सवाल पूछता है। वह इतने जल्दी सवाल पूछता है, जितने जल्दी कृष्ण जवाब भी नहीं दे पाते। इधर कृष्ण का जवाब समाप्त नहीं होता और अर्जुन के सवाल खड़े हो जाते हैं। यह बिलकुल असंभव है। अगर मैं आपसे कुछ बोलूं, बोल भी न पाऊं और आपका सवाल खड़ा हो जाए, तो इसका मतलब सिर्फ एक हुआ कि जब
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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