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________________ *गीता दर्शन भाग-4* यह प्रयोग एक महत प्रयोग किया गया। हर प्रयोग के खतरे भी | | करते वक्त उसे एक शूद्र के घर में ही योग्य मौका मिला, वह शूद्र होते हैं। खतरा हुआ। यह प्रयोग तो संभव नहीं हो सका; समाज | | के घर पैदा हो जाता है। तो उसे ब्राह्मण की पूरी शिक्षा नहीं मिल चार हिस्सों में बंट गया। यह प्रयोग तो टूटा; लेकिन समाज चार सकेगी, उसे ब्राह्मण का पूरा वातावरण नहीं मिल सकेगा। हो शत्रुओं के हिस्सों में टूट गया। और धीरे-धीरे शूद्र व्यक्तित्व का | सकता है, वह पचास वर्ष का हो जाए, तब इस योग्य हो, जिस विचार न रहा, जाति का लक्षण हो गया। और तब कोई आदमी | योग्य का वह ब्राह्मण के घर में पैदा होकर पांच वर्ष में हो जाता! ये ब्राह्मण पैदा हो गया, तो चाहे वह बिलकुल शूद्र के व्यक्तित्व का | पैंतालीस वर्ष उसके व्यर्थ खो जाएंगे। हो, तो भी सिर पर बैठ गया। और तब कोई अगर शूद्र घर में पैदा ___ भारत ने एक जीवन की गहरी इकॉनामिक्स की चिंता की थी, हुआ और अगर वह ब्राह्मण की योग्यता का था, तो भी उसे किसी | समय कम से कम उपयोग में लाया जा सके और अधिक से अधिक मंदिर में पूजा की जगह न मिली! यह खतरा हुआ। परिणाम हो सकें और व्यक्ति में जो गहनतम छिपा है, वह प्रकट हर प्रयोग का खतरा है। वैज्ञानिकों ने अणु बम की खोज की, हो सके। उसे मां-बाप भी, परिवार भी, वातावरण भी, सब कुछ तब सोचा नहीं था कि अणु बम का परिणाम हिरोशिमा और | ब्राह्मण का मिल सके। शूद्र को शूद्र का मिल सके, वैश्य को वैश्य नागासाकी होगा। तब उन्होंने सोचा था कि अणु की ऊर्जा हमारे | | का मिल सके। इसलिए जातियां विभाजित हुईं। हाथ में लग जाएगी, तो हम सारी जमीन को खुशहाल कर देंगे; | लेकिन यह महान प्रयोग नहीं हो सका। जिन्होंने किया था, वे कोई भूखा नहीं होगा, कोई गरीब नहीं होगा। इतनी बड़ी शक्ति | खो गए। और जिनके हाथ में यह महान प्रयोग दे गए, उन्होंने केवल हमारे हाथ में लगेगी कि हम सारे जीवन को रूपांतरित कर डालेंगे; | समाज को विभाजित करके शोषण का एक उपाय किया।. पृथ्वी स्वर्ग हो जाएगी। तब शूद्र शोषित हो गया। तब ब्राह्मण छाती पर बैठ गया। तब लेकिन यह नहीं हुआ। यह हो सकता था, लेकिन यह नहीं | | क्षत्रिय ने तलवार हाथ में ले ली और लोगों के ऊपर प्रभुसत्ता कायम हुआ। हुआ-हिरोशिमा और नागासाकी कब्रगाह बन गए। एक कर ली। और तब वैश्य धन इकट्ठा करके बैठ गया। और इन चारों लाख आदमी एक क्षण में जलकर राख हो गए। और अभी सारी | | वर्गों ने एक-दूसरे के साथ गहरी शत्रुता ठान ली। जो फायदा होता, दुनिया के पास अणु बम और हाइड्रोजन बम इकट्ठे हैं। किसी भी | वह तो नहीं हुआ, नुकसान यह हुआ कि शूद्र के घर अगर कोई पैदा . दिन पूरी दुनिया राख की जा सकती है! | हो गया, तो उसके विकास का उपाय ही न रहा। आइंस्टीन मरते वक्त कहकर मरा है कि हमने सोचा भी नहीं था पांच हजार साल में अगर डा अंबेदकर को छोड़ दें तो शदों में कि इतनी महान ऊर्जा का ऐसा महान दुरुपयोग हो सकेगा। | एक भी बुद्धिमान आदमी पैदा नहीं हो सका। और ये डाक्टर लीनियस पालिंग ने, जो कि अणु की खोज में बड़े वैज्ञानिकों में एक अंबेदकर भी हमारी वजह से पैदा नहीं हुए। यह एक आदमी है, था, आखिरी वक्त सारी दुनिया के वैज्ञानिकों से अपील की कि अब | जिसको ब्राह्मण की हैसियत का कहा जा सके। इसलिए ब्राह्मणों से दुबारा कोई बड़ी शक्ति आदमी के हाथ में खोजकर मत देना! | नाराज भी थे वे। ब्राह्मणों से नाराज होना बिलकुल स्वाभाविक था, क्योंकि हम खोजते हैं पता नहीं किसलिए और आदमी उसका क्या क्रोध स्वाभाविक था। उपयोग करता है! पांच हजार वर्षों में शूद्रों की कितनी प्रतिभाएं खो गईं, इसका हमें इस मुल्क में इस मुल्क के मनीषियों ने भी एक बहुत अदभुत | | कोई पता नहीं है! प्रयोग गलत निकल गया, गलत आदमियों के सूत्र खोजा था। और वह सूत्र यह था कि प्रत्येक आत्मा को हम | । हाथों में पड़ गया। और कितने शूद्र जैसे ब्राह्मण हमारे मुल्क की उसके जीवन के चुनाव में भी मार्ग-निर्देश कर सकें। आत्मा ऐसे | | छाती पर छाए चले गए और कितना गहन नुकसान पहुंचा गए, ही भटककर कहीं भी, किसी भी तरह पैदा न हो। हम उसे | | उसका भी अब हिसाब लगाना मुश्किल है। सुनिश्चित मार्ग दे सकें, व्यवस्थित मार्ग दे सकें ताकि ज्यादा से | ___ यह मैंने इसलिए कहा, ताकि आपको कृष्ण का अर्थ साफ हो ज्यादा उपयोग थोड़े से थोड़े जीवन का किया जा सके। | सके। कृष्ण के समय में यह महान प्रयोग गतिमान था, यह प्रयोग और अगर एक व्यक्ति पिछले जन्म में ब्राह्मण था, समझें, और . चल रहा था, इस प्रयोग की आधारशिलाएं रखी जा रही थीं। कृष्ण उसने ब्राह्मण की एक ऊंचाई पाई। लेकिन इस बार जन्म की खोज को पता भी नहीं है कि इस प्रयोग का क्या परिणाम आज हो गया! 352
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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