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________________ क्षणभंगुरता का बोध आत्मगौरव नहीं गंवा सकता है। चौथी कोटि है ब्राह्मण की । ब्राह्मण से अर्थ है, जो आत्मा से भी पार हट जाए और ब्रह्म में जीए । उसके लिए अब न शरीर का कोई मूल्य है, न मन का कोई मूल्य है, न आत्मा का कोई मूल्य है, उसके लिए सिर्फ परमात्मा ही मूल्यवान रह गया। ये चार टाइप हैं, इनका जाति से फिलहाल कोई संबंध न जोड़ें। ये चार मनस- प्रकार हैं। कृष्ण कहते हैं कि पहले दो प्रकार वाले लोग भी मुझे उपलब्ध हो जाते हैं, तो बाद के दो प्रकार वाले लोगों का क्या कहना ! अगर वे मेरा स्मरण करें, तो वे मुझे उपलब्ध हैं ही। अगर मन के प्रकार की तरह समझें, तो इस सूत्र में कोई कठिनाई न रह जाएगी। लेकिन भारत ने यह प्रयोग भी किया था । कि ये जो मन के प्रकार हैं, इनको जन्म से जोड़ने की एक अभूतपूर्व चेष्टा की थी। असफल गया वह प्रयोग, लेकिन बड़ा प्रयोग था । और इतना बड़ा था कि सफल होना संभव नहीं मालूम पड़ता था । जितनी बड़ी बात हो, उतनी असफलता की संभावना ज्यादा हो जाती है। और जब कोई बहुत बड़ी बात असफल होती है, तो बड़े गड्ढे में गिरा जाती है। हमने एक अनूठा प्रयोग किया था। वह प्रयोग यह था कि न केवल व्यक्ति का मन अलग-अलग है, न केवल उसकी चेतना के ढांचे अलग-अलग हैं, क्या यह नहीं हो सकता कि प्रत्येक चेतना के ढांचे के व्यक्ति को जन्म भी इस भांति मिले कि वह जन्म से ही अपने ढांचे के अनुकूल पैदा हो सके ? एक व्यक्ति मरता है, तो उसकी आत्मा भटकती है नए जीवन की तलाश में। हर कहीं आकस्मिक जन्म नहीं होता । आत्मा खोजती अपने अनुकूल, अपने अनुकूल गर्भ को खोजती है। और जब अनुकूल गर्भ मिलता है, तो जन्म लेती है। अपने तो जन्म की घटना में दो घटनाएं घटती हैं, मां और पिता का गर्भ निर्माण करना और उस निर्मित गर्भ में एक चेतना का प्रवेश । वह चेतना का प्रवेश उस चेतना के अपने समस्त कर्मों का फल है। उसके अनुकूल वह खोजती है। यह खोज बहुत सचेतन नहीं है, कांशस नहीं है, अनकांशस है। अनकांशस खोज का मतलब यह है कि जैसे हम पानी को बहाते हैं, तो वह गड्ढे को खोज लेता है। भाषा में हम कहेंगे, पानी गड्ढे को खोज लेता है। लेकिन पानी कोई सचेतन रूप से खोजता नहीं, सिर्फ स्वभाव अनुसार वह गड्ढे की तरफ बहता है, जहां नीचाई है, वहां बहता है। पानी ऊपर की तरफ नहीं बह सकता, गड्ढे की तरफ बह सकता है। इसलिए जो सबसे बड़ा गड्ढा है, वहां पहुंच जाता है। कमरे में जहां गड्डा है, पानी पहुंच जाता है। यह खोज अचेतन है। पानी के स्वभाव से हो जाती है। ठीक ऐसे ही, प्रत्येक आत्मा अचेतन खोज करती है। जहां उसके अनुकूल गर्भ होता है, वहीं गड्डा बन जाता है, वहीं आत्मा प्रवेश कर जाती है। भारत ने यह कोशिश की कि क्या यह नहीं हो सकता कि शूद्र आत्माओं के लिए हम एक वर्ग ही नियत कर दें, जहां शूद्र आत्माएं पैदा हो जाएं! क्या यह नहीं हो सकता कि ब्राह्मण आत्माओं के लिए हम ब्राह्मण का एक वर्ग ही नियत कर दें, जहां ब्राह्मण आत्माएं पैदा हो जाएं! यह बड़ा कठिन प्रयोग था, बहुत मुश्किल प्रयोग था । शायद भविष्य में बायोलाजी कुछ इस तरह के प्रयोग करना शुरू करे । लेकिन वे किसी दूसरे ढांचे पर होंगे। क्योंकि विज्ञान अब यह कह रहा है कि हम इस बात की कोशिश जरूर करेंगे आज नहीं कल, कि ज्यादा सुंदर लोग पैदा किए जा सकें, और निर्णायक बना जाँ सके कि ज्यादा सुंदर व्यक्ति पैदा हों। विज्ञान यह भी कह रहा है कि अब यह कठिनाई नहीं रही कि हम अगर पुरुष पैदा करना चाहें, तो पुरुष पैदा करें; और स्त्री पैदा करना चाहें, तो स्त्री पैदा करें। विज्ञान अब यह भी कह रहा है कि हम यह भी तय कर लेंगे कि जो बच्चा पैदा हो, उसका बुद्धि अंक, उसका आई. क्यू. कितना हो, यह हम पहले तय कर लेंगे। हम यह भी तय कर लेंगे कि उसके शरीर का | रंग कैसा हो, उसकी उम्र कितनी हो। हम ये सारी बात तय करेंगे। यह तय करेंगे, तो हमें ब्रीडिंग को नियत करना पड़ेगा। फिर हर कोई, हर किसी से संबंध नहीं बना सकेगा । तब संबंध हमें सीमित करने पड़ेंगे, ताकि वे ही लोग संबंधित हों, जो नियमानुसार एक व्यक्ति को जन्म दे सकें। ठीक वैसे ही प्रयोग भारत ने किसी और दिशा से किए थे, और समाज को चार हिस्सों में बांट दिया था। इन चार हिस्सों में बांटने का प्रयोजन यह था कि शूद्र शूद्र से ही विवाह करे; और यह पीढ़ी दर पीढ़ी ब्राह्मण ब्राह्मण से ही विवाह करे। तो पचास पीढ़ियों के गुजरने के बाद, यह दो ब्राह्मणों का जो विवाह होगा और इन ब्राह्मणों से जो गर्भ निर्मित होगा, वह निर्मित गर्भ किसी ब्राह्मण | आत्मा को आकर्षित करने में ज्यादा संभव होगा, बजाय किसी और | गर्भ के । यह बिलकुल वैज्ञानिक है और तर्कयुक्त है। अगर यह हो सकता है, तो यह बिलकुल तर्कयुक्त है। 351
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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