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* क्षणभंगुरता का बोध *
सौ प्रतिशत स्त्री हो। यह है भी उचित। क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति का अगर हम स्त्री के मन को ठीक से समझें, तो वह किसी ऐसे जन्म स्त्री और परुष से मिलकर होता है। इसलिए दोनों ही उसके प्रतीक में प्रकट होगा. द्वार खोलकर दरवाजे पर बैठी हई. किसी की भीतर प्रवेश कर जाते हैं। चाहे स्त्री का जन्म हो, चाहे पुरुष का जन्म | प्रतीक्षा में रत; खोज में चली गई नहीं, प्रतीक्षा में। और पुरुष अगर हो, दोनों के जन्म के लिए स्त्री और पुरुष का मिलन अनिवार्य है! दरवाजा खोलकर और किसी की प्रतीक्षा करते दीवाल से टिककर और स्त्री-पुरुष दोनों के ही कणों से मिलकर, जीवाणुओं से मिलकर | बैठा हो, तो हमें शक होगा कि वह पुरुष कम है। उसे खोज पर व्यक्ति का जन्म होता है। दोनों प्रवेश कर जाते हैं। जो फर्क है, वह | जाना चाहिए। मात्रा का होता है। जो फर्क है, वह निरपेक्ष नहीं है, सापेक्ष है। | जिसकी प्रतीक्षा है, उसे खोजना पड़ेगा, यह पुरुष चित्त का - इसका अर्थ यह हुआ कि जो व्यक्ति ऊपर से पुरुष दिखाई पड़ता | लक्षण है। जिसकी खोज है, उसकी प्रतीक्षा करनी होगी, यह स्त्री है, उसके भीतर भी कुछ प्रतिशत मात्रा स्त्री की छिपी होती है; जो चित्त का लक्षण है। स्त्री और पुरुष से इसका कोई संबंध नहीं है। स्त्री दिखाई पड़ती है, उसके भीतर भी कुछ मात्रा पुरुष की छिपी | कृष्ण कहते हैं, जो स्त्रैण हैं, वे भी अर्जुन, मुझे पाने में समर्थ हो होती है। और इसलिए ऐसा भी हो सकता है कि किन्हीं क्षणों में स्त्री | | जाते हैं। पुरुष जैसा व्यवहार करे और किन्हीं क्षणों में पुरुष स्त्री जैसा फिर कहते हैं, वैश्य और शूद्र भी। ये दो शब्द भी समझ लेने व्यवहार करे। ऐसा भी हो सकता है कि किन्हीं क्षणों में जो भीतर | जैसे हैं। है, वह ऊपर आ जाए; और जो ऊपर है, नीचे चला जाए। __ मैंने कहा, हमारे मन अलग-अलग हैं, हमारी आत्माएं एक हैं।
आप पर एकदम से हमला हो जाए, घर में आग लग जाए, तो और मन के अलग-अलग होने के कारण हमारे शरीर भी आप कितने ही बहादुर व्यक्ति हों, एक क्षण में अचानक आप अलग-अलग हैं। क्योंकि शरीर मन के द्वारा ही निर्मित होता है, पाएंगे, आप स्त्री जैसा व्यवहार कर रहे हैं। रो रहे हैं, बाल नोंच रहे | शरीर को हम पाते हैं मन के द्वारा ही। हैं, चिल्ला रहे हैं, घबड़ा रहे हैं! अगर एक मां के बच्चे पर हमला | चार प्रकार के व्यक्तित्व भारत ने विभाजित किए हैं, ब्राह्मण, हो जाए, तो मां भी खूख्वार हो जाएगी, और ऐसा व्यवहार करेगी, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र। इन चारों का भी कोई संबंध आपके जन्म . इतना कठोर, इतना हिंसात्मक, जैसा कि पुरुष भी न कर पाए। यह | से नहीं है। इन चारों का भी गहरा संबंध आपके व्यक्तित्व के ढांचे संभावना है, क्योंकि भीतर एक मात्रा निरंतर छिपी हुई है। वह किसी | से है। हमने यह भी कोशिश की थी कि व्यक्तित्व का ढांचा और भी क्षण प्रकट हो सकती है।
जन्म की व्यवस्था में ताल-मेल हो जाए। हमने अकेले ही इस जुंग ने स्त्री और पुरुष के नए अर्थ को फिर से प्रकट किया है। जमीन पर यह प्रयोग किया था कि जन्म में और व्यक्तित्व के ढांचे कृष्ण का भी अर्थ वही है। जब वे कहते हैं, स्त्रियां भी मुझे उपलब्ध में कोई एक इनर हार्मनी, एक आंतरिक संबंध खोज लिया जाए। हो जाती हैं, तो उनका अर्थ यह है,कि वे, जो एक कदम भी नहीं हम थोड़ी दूर तक सफल भी हुए थे। लेकिन वह प्रयोग पूर्ण रूप चलते हैं, मात्र प्रतीक्षा करते हैं, वे भी मुझे पा लेते हैं अर्जुन! जिनके | से सफल नहीं हो पाया। वह टूट गया। टूट जाने के कारण थे, मन में आक्रमण ही नहीं है; परमात्मा की खोज में भी जो आक्रामक, उनकी मैं आपसे पीछे बात करूं। पहले आपको यह कह दूं कि ये एग्रेसिव नहीं हो सकते, वे भी मुझे पा लेते हैं। जो इंचभर भी नहीं चार शब्द व्यक्तित्व के प्रतीक हैं। चार तरह के व्यक्तित्व होते हैं। चलते, सिर्फ मेरा स्मरण ही करते हैं, सिर्फ अनन्य भाव से मुझे शूद्र हम उस व्यक्ति को कहते हैं, जो शरीर के इर्द-गिर्द जीता पुकारते ही हैं, जो बदले में कुछ भी चुकाने को तैयार नहीं होते, जो | है। शरीर से ज्यादा जिसे अस्तित्व में कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता। मुकाबले में कुछ भी दांव पर नहीं लगाते, अगर मैं उनके दरवाजे | शरीर ही जिसका परमात्मा है। शरीर सुख में रहे, तो वह प्रसन्न है; पर भी खड़ा हूं, तो वे दरवाजे तक उठकर भी नहीं आते, मुझे ही शरीर दुख में हो जाए, तो वह दुखी है। शरीर की मांग पूरी हो जाए, उन तक जाना पड़ता है, वे भी मझे पा लेते हैं।
| तो सब मांगें समाप्त हो गईं; शरीर की मांग पूरी न हो, तो उसके स्त्रैण से अर्थ है, ऐसा मन, जो कुछ भी करने में समर्थ नहीं है; जीवन में व्यथा और संताप है। उसके व्यक्तित्व का केंद्र शरीर है। ज्यादा से ज्यादा समर्पण कर सकता है; ग्राहक मन, रिसेप्टिविटी, | | बहुत अनूठी बात भारतीय शास्त्रों ने कही है कि सभी व्यक्ति द्वार खोलकर प्रतीक्षा कर सकता है।
| जन्म से शूद्र होते हैं! एक अर्थ में सही है। सभी व्यक्ति जन्म से
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