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* गीता दर्शन भाग-42
मां हि पार्थ व्यपाश्रित्य येऽपि स्युः पापयोनयः । मनुष्य की परम स्थिति तो एक है, लेकिन उसकी बीच की स्थितियां स्त्रियो वैश्यास्तथा शूद्रास्तेऽपि यान्ति परां गतिम् । । ३२ ।। भिन्न-भिन्न हैं। मनुष्य आत्यंतिक रूप से तो समान है, लेकिन
किं पुनर्ब्राह्मणाः पुण्या भक्ता राजर्षयस्तथा। अलग-अलग स्थितियों में बहुत असमान है। अनित्यमसुखं लोकमिमं प्राप्य भजस्व माम् ।। ३३ ।। मनुष्य का विभाजन जो भारतीय बुद्धि ने किया है, वह पहला
मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु।। विभाजन है स्त्री और पुरुष में। लेकिन ध्यान रहे, स्त्री से अर्थ है मामेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायणः ।। ३४ ।।
स्त्रैण। स्त्री से अर्थ स्त्री ही हो, तो यह वचन बहुत बेहूदा है। स्त्री क्योंकि हे अर्जुन, स्त्री, वैश्य, शूद्रादिक तथा पाप योनि वाले से अर्थ है स्त्रैण। और जब मैं कहता हूं, स्त्री से अर्थ है स्त्रैण, तो भी जो कोई हों, वे भी मेरे शरण होकर परम गति को ही उसका अर्थ यह है कि पुरुषों में भी ऐसे व्यक्ति हैं, जो स्त्री जैसे हैं, प्राप्त होते हैं।
स्त्रैण हैं; स्त्रियों में भी ऐसे व्यक्तित्व हैं, जो पुरुष जैसे हैं, पौरुषेय फिर क्या कहना है कि पुण्यशील ब्राह्मणजन तथा राजऋषि हैं। पुरुष और स्त्री प्रतीक हैं, सिंबालिक हैं। उनके अर्थ को हम भक्तजन परम गति को प्राप्त होते हैं। इसलिए तू सुखरहित ठीक से समझ लें। और क्षणभंगुर इस लोक को प्राप्त होकर निरंतर मेरा ही गुह्य विज्ञान में, आत्मा की खोज में जो चल रहे हैं, उनके लिए भजन कर।
स्त्रैण से अर्थ है ऐसा व्यक्तित्व, जो कुछ भी करने में समर्थ नहीं केवल मुझ परमात्मा में ही अनन्य प्रेम से अचल मन वाला है; जो प्रतीक्षा कर सकता है, लेकिन यात्रा नहीं कर सकता; जो राह हो, और मुझ परमेश्वर को ही निरंतर भजने वाला हो, तथा देख सकता है, लेकिन खोज नहीं कर सकता। इसे स्त्रैण कहने का मेरी श्रद्धा, भक्ति और प्रेम से विह्वलतापूर्वक पूजन करने कारण है।
वाला हो और मुझ परमात्मा को ही प्रणाम कर। स्त्री और पुरुष का जो संबंध है, उसमें खोज पुरुष करता है, स्त्री इस प्रकार मेरे शरण हुआ तू आत्मा को मेरे में एकीभाव केवल प्रतीक्षा करती है। पहल भी पुरुष करता है, स्त्री केवल बाट करके मेरे को ही प्राप्त होवेगा।
जोहती है। प्रेम में भी स्त्री प्रतीक्षा करती है, राह देखती है। और अगर कभी कोई स्त्री प्रेम में पहल करे, इनिशिएटिव ले, तो
आक्रामक मालूम होगी, बेशर्म मालूम होगी। और अगर पुरुष ट स सूत्र को सुनकर आधुनिक मन को बहुत धक्का | प्रतीक्षा करे, पहल न कर सके, तो स्त्रैण मालूम होगा। र लगेगा। चाह होगी कि यह सूत्र न होता तो अच्छा था। लेकिन विगत पांच हजार वर्षों में, गीता के बाद, सिर्फ आधुनिक
आज का विचार इस सूत्र को बड़ी कठिनाई पाएगा | युग में कार्ल गुस्ताव जुंग ने स्त्री और पुरुष के इस मानसिक भेद समझने में।
को समझने की गहरी चेष्टा की है। जुंग ने इधर इन बीस-पच्चीस कृष्ण ने कहा है, क्योंकि हे अर्जुन, स्त्री, वैश्य, शूद्र आदि तथा | | पिछले वर्षों में एक अभूतपूर्व बात सिद्ध की है, और वह यह कि पाप योनि वाले भी जो कोई भी हों, वे भी मेरी शरण होकर परम | कोई भी पुरुष पूरा पुरुष नहीं है और कोई भी स्त्री पूरी स्त्री नहीं है। गति को प्राप्त होते हैं।
| और हमारा अब तक जो खयाल रहा है कि हर व्यक्ति एक सेक्स __बहुत अजीब मालूम पड़ेगा। बहुत कड़वाहट भी मालूम पड़ेगी। से संबंधित है, वह गलत है। प्रत्येक व्यक्ति बाइ-सेक्सुअल है, स्त्री को, वैश्य को, शूद्र को, पाप योनि को समझने में हमें कई तरह दोनों यौन प्रत्येक व्यक्ति में मौजूद हैं। जिसे हम पुरुष कहते हैं, की कठिनाइयां हैं।
उसमें पुरुष यौन की मात्रा अधिक है, स्त्री यौन की मात्रा कम है। पहली कठिनाई कि हमने इन शब्दों से जो कुछ समझा है, वह इन | ऐसा समझें कि वह साठ प्रतिशत पुरुष है और चालीस प्रतिशत स्त्री शब्दों से अभिप्रेत नहीं है। और इन शब्दों का हमारे मन में जो अर्थ | | है। जिसे हम स्त्री कहते हैं, वह साठ प्रतिशत स्त्री है और चालीस है, वह कृष्ण का अर्थ नहीं है। तो इन शब्दों की ठीक से व्याख्या में प्रतिशत पुरुष है। प्रवेश करना जरूरी होगा, तभी इस सूत्र को समझा जा सके। लेकिन ऐसा कोई भी पुरुष खोजना संभव नहीं है, जो सौ
मनुष्य की आत्मा तो एक है, लेकिन उसके मन अनेक हैं। और प्रतिशत पुरुष हो; और ऐसी कोई स्त्री खोजनी संभव नहीं है, जो
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