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* नीति और धर्म *
संकल्प मत करें। जो पूरे न हो सकें, उनको छुएं ही मत; जो पूरे हो सकें, उनको ही छुएं।
मेरे एक मित्र हैं, सिगरेट से परेशान हैं। चेन स्मोकर हैं। दिनभर पीते रहेंगे ! भले आदमी हैं, साधु-संन्यासियों के पास जाते हैं। न मालूम कितनी बार कसमें खा आए। सब कसमें टूट गईं। कई बार तय कर लिया, घंटे दो घंटे नहीं में भी चलाई हालत। लेकिन फिर नहीं चल सका ! कभी दिन दो दिन भी खींच लिया। लेकिन तब खींचना इतना भारी हो गया कि उससे तो सिगरेट पी लेना ही बेहतर था। सब काम-धाम रोककर अगर इतना ही काम करना पड़े कि सिगरेट नहीं पीएंगे, तो भी जिंदगी मुश्किल हो जाए।
रात नींद न आए, दिन में काम न कर सकें, चिड़चिड़ापन आ जाए, हर किसी से झगड़ने और लड़ने को तैयार हो जाएं! तो मैंने कहा, इससे तो सिगरेट बेहतर थी। यह झगड़ा-झांसा चौबीस घंटे का! हरेक के ऊपर उबल रहे हैं। जैसे उन्होंने कोई भारी काम कर लिया है; क्योंकि सिगरेट नहीं पी है ! और हरेक की गलतियां देखने लगें। जब भी वे सिगरेट छोड़ दें दिन दो दिन के लिए, तो सारी दुनिया में उनको पापी नजर आने लगें ! स्वभावतः, उन्होंने इतना ऊंचा काम किया है, तो उनको खयाल में आएगा ही। बहु उपाय करके थक गए। फिर उन्होंने मान लिया कि यह नहीं छूटेगी। लेकिन बड़ी दीनता छा गई मन पर कि एक छोटा-सा काम नहीं कर पाए। मुझसे वे पूछते थे कि क्या करूं? मैंने कहा कि मुझसे तुम मंत पूछो। कितनी सिगरेट पीते हो, मुझे संख्या बताओ !
उन्होंने कहा कि मैं अंदाजन कोई तीस सिगरेट तो हर हालत में दिनभर में पी जाता हूं।
तो मैंने कहा, कसम खाओ कि साठ पीएंगे कल से, लेकिन एक कम नहीं।
उन्होंने कहा, आप पागल हैं!
मैंने कहा कि तुमने जो संकल्प किया, वह हमेशा टूट गया, उससे बड़ा नुकसान पहुंचा। एकाध तो पूरा करके दिखाओ | साठ पीयो कल से। लेकिन एक कम अगर पी, तो ठीक नहीं; फिर मेरे पास दुबारा मत आना।
उन्होंने कहा, क्या कहते हैं! चित्त उनका बड़ा प्रसन्न हो गया। ऊपर से तो कहने लगे कि आप क्या कहते हैं ! लेकिन उनकी आंखें, उनका चेहरा, सब आनंदित हो गया। कि आप आदमी कैसे! आप कहते क्या हैं ! साठ !
लेकिन आप साठ से अगर एक भी कम हुई, तो दुबारा मेरे पास
मत आना।
उन्होंने साठ सिगरेट पीनी शुरू की। कठिन था मामला । कठिन था मामला, क्योंकि जबर्दस्ती उनको तीस सिगरेट और पीनी पड़ती थीं। नहीं पीनी थीं और पीनी पड़ती थीं। और जब भी कोई चीज न पीनी हो और पीनी पड़े, तो अरुचि बढ़ जाती है; और जब पीनी हो और न पीनी पड़े, तो रुचि बढ़ जाती है। आदमी का मन बहुत अदभुत है।
तीन-चार दिन बाद आकर मुझसे बोले कि यह संकल्प कब तक पूरा करना पड़ेगा? मैंने कहा कि यह मेरे हाथ में है, तुम जारी रखो । यह, जब मैं कहूंगा, तब इसको तुड़वा देंगे।
उन्होंने कहा, यह बहुत मुश्किल मामला मालूम पड़ता है। जारी रखो ! एक काम तो जिंदगी में मुश्किल करके दिखाओ | सातवें दिन वे हाथ-पैर जोड़ने लगे। उन्होंने कहा कि मैं बिलकुल, मुझे ऐसा पागलपन लगता है कि मुझे पीना नहीं है और मैं पी रहा हूं और आपने मेरी बाकी तीस सिगरेट भी खराब कर दीं। अब ये साठों ही बेकार लग रही हैं !
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अभी पीयो ! और एक-दो सप्ताह चलने दो। यह बिलकुल जब नर्क हो जाए; और जैसा तुम पहले छोड़कर लोगों पर चिड़चिड़ा थे, जब इसको पीकर चिड़चिड़ाने लगो और झगड़ने लगो और उपद्रव करने लगो, तब देखेंगे।
तीन सप्ताह में उनकी हालत पागलपन की हो गई। तीन सप्ताह | बाद वे आए। मैंने कहा कि अब कोई दिक्कत नहीं है, छोड़ दो। | मैंने उनसे कहा कि इस समय तुम्हें कैसा लगता है? छोड़ पाओगे ?
उन्होंने कहा, क्या आप कह रहे हैं! किसी तरह भी छुटकारा हो जाना चाहिए इससे ।
छूट गई सिगरेट | वह मुझसे अब पूछते हैं - वर्षभर बाद मुझे मिले, तो मुझसे पूछते हैं — इसका राज क्या है? मैंने कहा, राज कुछ भी नहीं है। एक संकल्प जीवन में तुम्हारा पूरा हुआ। तुम्हारी आत्म-ऊर्जा जगी । तुम्हें लगा, मैं भी कुछ पूरा कर सकता हूं! गलत ही सही, पूरा तो कर सकता हूं। तुमने जिंदगी में कभी कुछ पूरा नहीं किया था।
ध्यान रहे, जो भी संकल्प लें, वह पूरा हो सके, तो ही लें; अन्यथा मत लें; न लेना बेहतर है। एक दफा उनका टूटना, खतरनाक छेद छूट जाते हैं। और हर बच्चे की जिंदगी में जो इतने छेद बन जाते हैं, उसके लिए हम जिम्मेवार हैं; शिक्षक, मां-बाप, समाज, सब जिम्मेवार हैं। न मालूम क्या-क्या उनको करवाने की