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________________ *गीता दर्शन भाग-4* कोशिश करते हैं, जो वे नहीं कर पाएंगे। उनका संकल्प टूट जाएगा। छेद-छेद आत्मा हो जाएगी। फिर दृढ़ संकल्प होना बहुत मुश्किल है। और दूसरी बात; दृढ़ संकल्प बनाने की दिशा में बढ़ें। छोटे-छोटे संकल्प करें, उन्हें पूर्ण करें। धीरे-धीरे आप पाएंगे कि आप भी कुछ कर सकते हैं। और कोई जरूरत नहीं है कि बहुत बड़े-बड़े काम में लगें, बहुत छोटे-से काम में लगें, कि एक मिनट तक मैं इस अंगुली को ऊपर ही रखूंगा, नीचे नहीं गिराऊंगा। एक अमेरिकी युवती पिछले माह मेरे पास थी। उसे मैंने लिखा था... तीन बार मेरे पास आकर गई है। दो वर्ष से निरंतर उसका आना-जाना हुआ है, लेकिन संकल्प की क्षीणता तकलीफ दे रही थी । उतने दूर से आती है; फिर जो मैं कहता हूं, वह नहीं कर पाती; फिर सब द्वंद्व में पड़ जाती है; वापस लौट जाती है। इस बार उसने मुझे लिखा, तो मैंने उसे लिखा कि इस बार एक बात पक्की करके आना, जो भी मैं कहूं, उसमें नो, नहीं नहीं कह सकोगी; उसमें यस ही कहना पड़ेगा; जो भी मैं कहूं! यह बेशर्त है। अन्यथा आना मत। भी मैं कहूं, उसमें हां कहने की तैयारी हो, तो आना। स्वभावतः, उसे सोचना पड़ा कि पता नहीं मैं क्या कहूंगा? उसे खयाल आया कि जिस मकान में मैं रहता हूं, वह छब्बीस मंजिल मकान है। कहीं मैं छब्बीसवीं मंजिल से कूदने के लिए कहूं, तो मेरी क्या तैयारी है? उसने तय किया कि अगर मैं कूदने के लिए कहूंगा, कूद जाऊंगी। हां कहूंगी। उसे खयाल आया, स्त्री है, उसे खयाल आया कि मैं अगर कहूं कि जाओ, भरे बाजार नग्न, चौपाटी तो का एक चक्कर लगा आओ, तो मैं लगाऊंगी? उसने तय कर लिया कि लगाऊंगी। वह तय करके आई। तय करने से ही बदल गई। मुझे न उसे छब्बीस मंजिल मकान से कुदवाना पड़ा और न चौपाटी पर नग्न चक्कर लगवाना पड़ा। यह जो निर्णय है - कि ठीक - यह निर्णय ही बदल गया। करना पड़ता है; कृष्ण कहते हैं, ऐसा गहरा संकल्प जिसका हो, और इस संकल्प को वह मेरे भजन में लगा दे, मेरे स्मरण में लगा दे; यह जो संकल्प की धारा है, यह मेरी तरफ बहने लगे। अब इसमें कोई कठिनाई नहीं है। लेकिन आप पाएंगे, एक मिनट में पच्चीस दफे मन होगा कि क्या कर रहे हो ? नीचे कर लो ! . क्या फायदा? कोई देख न ले कि यह अंगुली ऊंची क्यों रखे हुए हो ! कोई यह न समझ जाए कि पागल हो गए हो ! एक दूसरे प्रतीक से हम समझ लें। हम ऐसी नदी हैं, जो कई दिशाओं में बह रही है। तो सागर तक हम नहीं पहुंचते; हर जगह रेगिस्तान आ जाता है। अगर गंगा भी कई दिशाओं में बहे, तो सागर तक नहीं पहुंचेगी; सब जगह रेगिस्तान में पहुंच जाएगी। जहां भी पहुंचेगी, वहीं रेगिस्तान होगा। सागर तक पहुंचती है, क्योंकि एक दिशा में बहती है। मेरे पास लोग आते हैं संन्यास के लिए, वे कहते हैं कि गेरुआ कपड़ा न पहनें तो ? माला बाहर न रखें तो ? मैं उनसे कहता हूं, बाहर ही रखना । माला का मतलब नहीं है। लेकिन किसके डर से भीतर कर रहे हो? इतना भी काफी है कि तुम माला पहनकर, गेरुआ कपड़ा पहनकर बाजार में निकल जाओगे, तो भी तुम्हारा संकल्प बड़ा होगा। | ये सब छोटी बातें हैं, लेकिन इनका मूल्य है। मूल्य इनका संकल्प के लिहाज से है, और कोई मूल्य नहीं है। और कोई मूल्य नहीं है। ध्यान रखें, बदलने के लिए और कुछ ' एक गहरा निर्णय, और बदलाहट हो जाती है। | दूसरा ध्यान रख लें कि आपकी चेतना अगर बहुत दिशाओं में बहती रहे, तो आपकी जिंदगी एक मरुस्थल हो जाएगी, एक रेगिस्तान । सब सूख जाएगा, और सब जगह मार्ग खो जाएगा। लेकिन अगर एक दिशा में बह सके, तो किसी दिन, सागर पहुंच ' सकती है। अनन्य भाव से जो मुझे स्मरण करता है, अनन्य भाव से मेरा भक्त हुआ...। इसका केवल इतना ही अर्थ है कि चाहे वह कुछ भी करता हो, लेकिन उसकी चेतना की धारा मेरी ओर उन्मुख बनी रहती है। वह कुछ भी करता हो । 340 कभी आप देखें किसी घर में, मां अंदर खाना बना रही है; खाना बनाती है, बर्तन मल रही है, बुहारी लगा रही है, लेकिन उसकी | चेतना की धारा उसके बच्चे की तरफ लगी रहती है। शोरगुल हो रहा हो, तूफान हो, बाहर आंधी हो, हवा चल रही हो, बैंड-बाजे बज रहे हों, बादल गरज रहे हों, बिजली कड़क रही हो, लेकिन बच्चे की जरा सी रोने की आवाज उसे सुनाई पड़ जाती है। रात मां सोई हो - मनसविद भी बहुत हैरान हुए हैं— मां सोई हो, तो आकाश में बादल गरजते रहें, उसकी नींद नहीं टूटती ! और बच्चा | जरा-सा कुनमुन कर दे, और उसकी नींद टूट जाती है! बात क्या होगी? क्या होगा इसका कारण ?
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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