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नीति और धर्म *
बुरा है; हत्यारा है, चोर है, लुटेरा है, डाकू है; और फिर अचानक महर्षि हो जाता है! जरा-सी घटना, इतनी-सी घटना से इतनी बड़ी क्रांति कैसे होती होगी? क्योंकि आचरण जन्मों-जन्मों का बुरा हो, तो क्षणभर में सदाचरण कैसे बन जाएगा ?
एक ही बात हो सकती है कि उस दुराचरण के पीछे जो दृढ़ संकल्प था, वह दृढ़ संकल्प अगर अब सदाचरण के पीछे लग जाए, तो क्षणभर में क्रांति हो जाएगी। क्योंकि वह दुराचरण भी उस संकल्प के कारण ही चलता था। बुरे आदमी मजबूत होते हैं; पागल होते हैं; जो करते हैं, उसको बिलकुल पागलपन से करते हैं।
हिटलर जैसा साधु खोजना अभी भी मुश्किल है। बहुत मुश्किल है। स्टैलिन जैसा साधु खोजना अभी भी मुश्किल है। अगर स्टैलिन को एक धुन सवार थी, तो एक करोड़ आदमियों की हत्या वह कर सकता है! अगर हिटलर को एक खयाल सवार था, तो सारी दुनिया
आग में डाल सकता है; खुद जल सकता है, सारी दुनिया को जला डाल सकता है। इतना बल, बुराई के लिए, जिससे कि अंततः दुख के सिवाय कुछ भी हाथ नहीं आता है, निश्चित ही एक गहरी बात है। कहना चाहिए, इस तरह के व्यक्तियों के पास एक तरह की आत्मा है; एक पोटेंशियल, एक बीज-रूप आत्मा है !
हिटलर के पास बड़ी आत्मा है बजाय उस आदमी के, जो डर के मारे साधु बना बैठा है। क्योंकि भय तो आत्मा को जंग मार देता है । हिटलर बुरा है, बिलकुल बुरा है; शैतान; जितना शैतान हो सकता है, उतना शैतान है। लेकिन इस शैतान के पास भी एक आत्मा है, एक संकल्प है। और यह संकल्प जिस दिन भी बदल जाए, उस दिन यह आदमी क्षणभर में क्रांति से गुजर जाएगा। किसी भी जन्म में, कहीं भी, इस हिटलर को किसी दिन जब संकल्प का रूपांतरण होगा, तो इसकी आत्मा से एक बहुत महान तेजस्वी व्यक्तित्व का जन्म हो जाएगा एक क्षण में। क्योंकि यह धारा कोई पतली धारा नहीं है, कोई नदी नाला नहीं है। यह महासागर की धारा है। अगर बुराई की तरफ जाती थी, तो बुराई की तरफ सारा जगत बहेगा इसके साथ। अगर भलाई की तरफ जाएगी, तो इतना ही बड़ा प्रचंड झंझावात भलाई की तरफ भी बहने लगेगा।
कृष्ण कहते हैं, दुराचार असली सवाल नहीं है, असली सवाल यह है कि वह जो भीतर संकल्प की क्षमता है, दृढ़ निश्चय है। एक । और दूसरी बात; अकेला दृढ़ निश्चय ही हो, तो काफी नहीं है; क्योंकि दृढ़ निश्चय से आप बुरा भी कर सकते हैं, भला भी कर सकते हैं। दृढ़ निश्चय तो तटस्थ शक्ति है। इसलिए दूसरी शर्त है,
अनन्य भाव से मेरा भक्त हुआ निरंतर मुझे भजता है; वह साधु मानने योग्य है। और शीघ्र ही धर्मात्मा हो जाएगा। शीघ्र ही धर्मात्मा जाएगा।
यह जो दृढ़ निश्चय की चेतना है, इसका क्या अर्थ है ? अगर | हम अपनी चेतना को समझें, तो हमारी चेतना ऐसी है, जैसे किसी | कुएं में बाल्टी डालें, और छेद ही छेद वाली बाल्टी हो । फिर कुएं से खींचें पानी को, तो पानी भरेगा तो जरूर पहुंचेगा नहीं। भरेगा | तो जरूर; और जब तक बाल्टी पानी में डूबी रहेगी, पूरी भरी मालूम पड़ेगी, लबालब; और जैसे ही पानी से खींचना शुरू हुआ कि बाल्टी खाली होनी शुरू हो जाएगी। बड़ा शोरगुल मचेगा कुएं में, | क्योंकि सब धाराओं से पानी नीचे गिरेगा। आवाज बहुत होगी, हाथ | कुछ भी न आएगा। हाथ खाली बाल्टी लौट आएगी।
हमारी चेतना ऐसी है। इतने छिद्र हैं हमारे संकल्प में कि कई बार भर लेते हैं बिलकुल, और ऐसा लगता है कि सब ठीक हो गया। बस, पानी में डूबी रहे, तभी तक पानी में डूबी रहने का अर्थ, जब तक कल्पना में डूबी रहे, तब तक। तब तक सब ठीक हो जाता है। आज सांझ तय कर लेते हैं, तब लगता है कि बिलकुल साधु हो गया मैं अब, अब कुछ कारण नहीं रहा। रात बिलकुल साधु की तरह सो | जाता हूं। और सुबह हाथ खाली बाल्टी ! बड़ा रातभर शोरगुल होता है, बड़ी आवाजें आती हैं कि भरकर बाल्टी आ रही है।
ध्यान रहे, जब भरकर बाल्टी आती है, तो आवाज बिलकुल नहीं होती; और जब खाली बाल्टी आनी होती है, तो आवाज बहुत होती है।
हमारे मन में कितनी आवाज चलती है। रोज-रोज निर्णय करते हैं, रोज-रोज बिखर जाते हैं। और धीरे-धीरे हम भलीभांति जान जाते हैं कि हमारे निर्णय का कोई भी मूल्य नहीं है। जिस दिन हमें
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यह अनुभव हो जाता है कि हमारे निर्णय का कोई भी मूल्य नहीं है, हमारे संकल्प की कोई क्षमता नहीं है, उसी दिन समझना आपकी मृत्यु हो गई। शरीर कुछ दिन चलेगा, वह अलग बात है, आप मर |गए, आत्मिक रूप से आप मर गए। लाशें जी सकती हैं, जीती हैं; | मुर्दे चल सकते हैं, चलते हैं; लेकिन जिस दिन पता आपको चल | गया कि आपके पास कोई संकल्प नहीं है, उसी दिन आप मर गए। तो हम अपने को धोखा देते रहते हैं; यह भी पता नहीं चलने देते। रोज-रोज नए संकल्प करते रहते हैं। और क्षुद्रतम संकल्प भी कभी पूरे होते नहीं दिखाई पड़ते । बहुत क्षुद्र संकल्प करिए, और आपकी छिद्रों वाली बाल्टी उसको बहाकर रख देगी!
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