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* गीता दर्शन भाग-44
सफलता, चाहे जन्मों-जन्मों तक भटकना पड़े, निर्णय नहीं | नहीं है। बदलेगा। खोज जारी रहेगी। सब खो जाए बाहर, लेकिन भीतर और यह बड़े मजे की बात है कि बुरे आदमियों के पास एक तरह खोजने वाला संकल्प नहीं खोएगा। वह जारी रहेगा। सब विपरीत का निश्चय होता है, जो भले आदमियों के पास नहीं होता। बुरे हो जाए, सब प्रतिकुल पड़ जाए, कोई साथी न मिले, कोई संगीन आदमी अपनी बुराई में बड़े जिद्दी होते हैं। और बरे आदमी अपनी मिले, कोई अनुभव की किरण भी न मिले, अंधेरा घनघोर हो, टूटने बुराई में बड़े पक्के होते हैं। और बुरा आदमी अपनी बुराई का इस की कोई आशा न रहे, तब भी।
| तरह पीछा करता है, जैसा कोई भला आदमी अपनी भलाई का कभी कीर्कगार्ड ने इस दृढ़ निश्चय की परिभाषा में कहा है, वन हू कैन | नहीं करता। और बुरा आदमी अपनी बुराई से सब तरह के कष्ट होप अगेंस्ट होप। जो आशा के भी विपरीत आशा कर सके, वही पाता है, फिर भी बुराई में अडिग बना रहता है; और भला आदमी दृढ़ निश्चय वाला है।
कष्ट नहीं भी पाता, फिर भी डांवाडोल होता रहता है! दृढ़ निश्चय का अर्थ है, जब सब तरह से आशा टूट जाए, बुद्धि | । कहीं ऐसा तो नहीं है, जिसे हम भला आदमी कहते हैं, वह सिर्फ कोई जवाब न दे कि कुछ होगा नहीं अब; रास्ता समाप्त है, आगे भय के कारण भला होता है; उसके पास दृढ़ निश्चय नहीं होता? कोई मार्ग नहीं है; शक्ति चुक गई; श्वास लेने तक की हिम्मत नहीं | | ऐसा तो नहीं है कि जो चोरी नहीं करता, वह इसलिए चोरी न करता है; एक कदम अब उठ नहीं सकता और मंजिल कोसों तक कोई हो, क्योंकि पकड़े जाने का डर है। ऐसा तो नहीं है कि इसलिए चोरी पता नहीं है, तब भी भीतर कोई प्राण कहता चला जाए कि मंजिल न करता हो कि नर्क में कौन भुगतेगा! ऐसा तो नहीं है कि इसलिए है, और चलूंगा; और चलता रहूंगा। यह जो आत्यंतिक संकल्प है, चोरी न करता हो कि बदनामी हो जाएगी। कहीं ऐसा तो नहीं है कि इसका नाम दृढ़ निश्चय है।
चोरी न करना, केवल गहरे में कायरता हो। कहीं ऐसा तो नहीं है और कृष्ण कहते हैं, दृढ़ निश्चय साधु का लक्षण है। कि वह आदमी अहिंसक बनकर बैठ गया है। वह कहता है, हम दुराचरण-आचरण की चिंता छोड़ देते हैं। अब इसे थोड़ा हम किसी को मारना नहीं चाहते; क्योंकि गहरे में वह जानता है कि गहरे में समझेंगे. तो हमें खयाल में आएगा कि उनके छोडने का मारोगे तो पिटने की तैयारी होनी चाहिए। क्योंकि कोई भी आदमी कारण क्या है?
मारने जाए और मार खाने की तैयारी न रखता हो, तो कैसे जाएगा? क्योंकि ध्यान रहे, दुराचरण का मौलिक कारण क्या है? तो कहीं ऐसा तो नहीं है कि सारी अहिंसा केवल भीतर की कायरता सदाचरण की आकांक्षा सभी में पैदा होती है, लेकिन निश्चय ही का बचाव हो; कि न मारेंगे, न मारे जाएंगे। कहीं ऐसा तो नहीं है कभी दृढ़ नहीं हो पाता, तो दुराचरण पैदा होता है। दुराचरण गहरे | कि मार खाकर भी अपने को बचा लेने की तरकीब हो, कि तुम में निश्चय की कमी है।
| कितना ही मारो, हम तो अहिंसक हैं, हम जवाब न देंगे। ऐसा आदमी खोजना मुश्किल है, जिसने न चाहा हो कि क्रोध भला आदमी जिसे हम कहते हैं, सौ में नब्बे मौके पर कमजोरी से छुटकारा मिल जाए, जिसने न चाहा हो कि झूठ बोलना बंद | | के कारण भला होता है। इसीलिए तो भलाई इतनी कमजोर है दुनिया करूं। क्योंकि झूठ स्वयं को भी गहरे में पीड़ा देता है; और क्रोध में और बराई इतनी मजबत है। और बरे आदमी को दो सजाएं. और खुद को ही जलाता है; और निंदा अपने ही मन को गंदा कर जाती | | बुरे आदमी को अपराध में दंड दो, जेलखानों में रखो, फांसियां है; और अनीति जिसे हम कहते हैं, वह भीतर एक कुरूपता को, लगाओ। और बुरा आदमी है कि परसिस्ट करता है, अपनी बुराई एक कोढ़ को पैदा करती है। तो कौन है जिसने न चाहा हो? पर मजबूत रहता है। एक बात का तो आदर करना ही पड़ेगा कि
लेकिन चाह से कुछ भी नहीं होता, क्योंकि चाह संकल्प नहीं उसकी मजबूती गहरी है; उसकी बुराई बुरी है, लेकिन उसकी बन पाती। चाहते हैं बहुत, चाहते हैं बहुत, और समय पर सब मजबूती बड़ी गहरी है और बड़ी अच्छी है। बिखर जाता है। भीतर संकल्प नहीं होता है, तो चाह सिर्फ चाह रह तो कृष्ण कहते हैं कि अगर कोई आदमी दृढ़ निश्चय वाला है और जाती है, निश्चय नहीं बन पाती।
दुराचारी भी है, तो भी उसे साधु समझना; क्योंकि अगर वह अपने तो कृष्ण कहते हैं कि अगर कोई दुराचारी भी हो, तो चिंता नहीं | दृढ़ निश्चय को मेरी ओर लगा दे, तो सब रूपांतरण हो जाएगा। है; असली सवाल यह है कि उसके पास एक दृढ़ निश्चय है या । इसलिए अक्सर ऐसा हुआ है कि कोई वाल्मीकि, सब तरह से
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