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________________ * कर्ताभाव का अर्पण तो फकीर हसन ने कहा, फिर तू ठीक से समझ ले। यह हाथ में कहता हैं। तो वर्ग-संघर्ष जारी रहेगा। जो रस्सी लिए है, इस धोखे में मत पड़ना। अगर गाय भागे, तो तू | । ठीक ऐसी ही घटना भीतर भी घटती है। जब तक भीतर भी उसके पीछे भागेगा, गाय तेरे पीछे नहीं भागेगी। अगर तू गाय को | मालिक और गुलाम में बंटावट है, जब तक बंटावन है भीतर, छोड़ दे, तो गाय तेरा पता लगाती हुई नहीं आने वाली है; तू ही विभाजन है, तब तक भीतर भी एक संघर्ष, एक अंतर्संघर्ष जारी उसका पता लगाता हुआ जाएगा। तो तू इस भ्रम में है कि तू गाय | रहेगा, एक इनर कांफ्लिक्ट, एक अंतर्द्वद्व भीतर भी बना रहेगा। को बांधे हुए है। शुद्ध नहीं है वह स्थिति। जिसे हम बांधते हैं, उससे हम बंध भी जाते हैं; जीवन का यह | कृष्ण कहते हैं, शुद्ध बुद्धि। एक अनिवार्य नियम है। इसलिए जो मुक्त होना चाहता है, वह | उसका अर्थ है, जिसकी बुद्धि इतनी शुद्ध हो गई कि अब वहां किसी को बांधेगा नहीं। बांधा कि आप फिर मुक्त नहीं हो सकते। विचार की कोई तरंग भी नहीं है। एकदम निर्मल झील की तरह हो अगर आपकी वासना को आपने दबा लिया और अच्छा विचार | गई। बुरा विचार तो चला ही गया, गंदी लहर तो चली ही गई, वह आप ऊपर ले आए, तो भी वासना नीचे कुलबुलाती रहेगी, | लहर भी अब नहीं है, जिसको हम निर्मल लहर कहें, वह भी नहीं भभकती रहेगी; लपटें उसकी उठती रहेंगी। आपको रोज-रोज | है। लहर ही न रही। मन झील की तरह मौन हो गया, जिस पर कोई दबाना पड़ेगा। जिसे एक दिन दबाया है, उसे रोज-रोज दबाना भी तरंग नहीं है। पड़ेगा। और दबाने से कोई वासना मिटती नहीं है, भभक भी सकती | । यहां ठीक से समझ लें। है और तेजी से, क्योंकि दमन से रस भी पैदा होता है। और जिसे| नीति का संबंध सिर्फ इतने से है कि आपकी बुद्धि इस अर्थ में हम दबाते हैं, उसमें आकर्षण भी बढ़ जाता है। और जिसे हम दबाते शुभ हो जाए कि अशुभ दब जाए और शुभ ऊपर आ जाए। नीति की हैं, उसकी शक्ति भी इकट्ठी होती चली जाती है। फिर यह संघर्ष दौड़ इतनी है। इसलिए नीति धर्म नहीं है। धर्म और बड़ी बात है! एक सतत है। अधार्मिक आदमी भी नैतिक हो सकता है; कोई अड़चन नहीं है। एक इसलिए जिसे हम बुरा आदमी कहते हैं, वह बाहर लोगों से | | नास्तिक भी नैतिक हो सकता है; कोई अड़चन नहीं है। लड़ता रहता है; जिसे हम अच्छा आदमी कहते हैं, वह भीतर अपने नैतिकता का मतलब ही इतना है कि आप अपनी वासना को से लड़ता रहता है। जिसे हम बुरा आदमी कहते हैं, वह दूसरों को | अपने विचार के नियंत्रण में कर लिए हैं। एक संयम उपलब्ध हुआ सताने की कोशिश में लगा रहता है; जिसे हम अच्छा आदमी कहते | | है। अब आपकी वासना आपको खींच नहीं पाती। अब आप उसे हैं. वह खद को सताने की कोशिश में लगा रहता है। जिसे हम बरा रोक पाते हैं। वासना की लगाम आपके हाथ में आ गई। घोडा जिंदा आदमी कहते हैं, वह इसीलिए बुरा है कि उसको वासना के पीछे | | है, लगाम से आप उसे चला लेते हैं। लेकिन चौबीस घंटे उसको भागना पड़ता है; जिसको हम अच्छा आदमी कहते हैं, उसे | | चलाने में ही व्यय होता है, और घोड़ा पूरे समय तलाश में होता है इसीलिए अच्छा कहते हैं कि वह अपनी वासना की छाती पर सवार कि कब उसे मौका मिल जाए और वह छूटकर निकल भागे। उसके होकर बैठ जाता है। लेकिन यह बैठ जाना भी स्टैटिक है। यह बैठ | पीछे चौबीस घंटे आपको सजग चेष्टा में रत रहना पड़ता है। जाना भी मर जाना है। यह बैठ जाना भी रुक जाना है। ___ और इसलिए कोई भी आदमी चौबीस घंटे तो सतत चेष्टा नहीं एक तीसरी भी अवस्था है बुद्धि की, जब विचार और वासना कर सकता, हर चेष्टा का अनिवार्य रूप विश्राम है। कोई भी आदमी दोनों नहीं होते। उस स्थिति का नाम शुद्ध बुद्धि है। शुद्ध बुद्धि का चौबीस घंटे चेष्टारत नहीं हो सकता, विश्राम तो करना ही पड़ेगा। अर्थ है कि संघर्ष गया; जो लड़ने वाले थे, वे रहे ही नहीं। न बांधने | | जो दिनभर जागा है, उसे रात सोना भी पड़ेगा। और जिसने दिनभर वाला है अब, और न वह जिसे बांधना था। न अब कोई मालिक | | गड्ढा खोदा है, उसे हाथ-पैर को आराम भी देना पड़ेगा। है और न अब कोई गुलाम है। क्योंकि जहां मालिक और गुलाम । इसलिए नैतिक आदमी को बीच-बीच में विश्राम भी लेना पड़ता हैं, वहां एक अंतर्संघर्ष जारी रहेगा ही। | है। उसी विश्राम में उसकी अनीति प्रकट होती है। नैतिक आदमी चाहे समाज हो, जब तक समाज में मालिक और गुलाम हैं, तब को भी बीच-बीच में विश्राम लेना पड़ता है। कई बहाने खोजकर तक समाज में एक संघर्ष जारी रहेगा ही। मार्क्स उसे क्लास स्ट्रगल विश्राम लेता है। कभी कहता है, होली का उत्सव मना रहे हैं, तब 321]
SR No.002407
Book TitleGita Darshan Part 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherRebel Publishing House Puna
Publication Year1996
Total Pages392
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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